भक्ति सुधा -करपात्री महाराज
श्रीरासलीलारहस्य
परन्तु उसकी तो एक ही टेक रहती है। क्या उसे जल की कमी है? नहीं, परन्तु यदि उसे अमृत भी दिया जाय तो भी वह अपना नियम भंग नहीं कर सकता।
यही दशा मीन की है। वह तो एक क्षण के लिये भी अपने प्राणाधार जल का वियोग सहन नहीं कर सकता। इसी विषय में किसी की उत्पेक्षा है-
‘अरे सर! इस समय तो तुममें बड़े दिव्यातिदिव्य पुष्प विद्यमान हैं। इसी से तेरे बहुत से साथी बने हुए हैं। परन्तु तू क्षीण हो जायगा, तुझमें खिले हुए कमल कुम्हिला जायँगे तब ये हंस तुझे छोड़कर गगनमण्डल में विहार करने लगेंगे और ये भ्रमर जो तेरे परम प्रेमी बने हुए हैं वे भी तुझे छोड़कर रसाल-मुकुल का ही आश्रय लेंगे। परन्तु बता, यह मीन कहाँ जायगा? इसे तेरे साथ ही-नहीं, नहीं, तुझसे भी पहले सूख जाना होगा।’ इस प्रकार प्रेमास्वादन करने वालों में प्रधान तो चातक और मीन ही हैं। अन्य प्रेमियों में तो इस तरह का एकांगी प्रेम प्रायः देखा नहीं जाता। लोक में यह कहावत प्रसिद्ध ही है कि ‘एक हाथ से ताली नहीं बजती’ वहाँ तो प्रेम के बदले में प्रेम किया जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
क्रम संख्या | विषय | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज