नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
65. महर्षि पुलस्त्य-गोवर्धन-धारण
मैया को तो अब बहुत कुछ लाना है। उसका नीलमणि यहाँ वर्षा से सुरक्षित है तो उसे इसके लिये बहुत कुछ लाना पड़ेगा अब यहीं। केवल सखाओं को नहीं लौटाया- 'तुम सब अपने लकुट तो लगाओ बलपूर्वक!' हँसकर कह दिया और सब सखा लकुट की टेक लगाकर स्थान-स्थान पर खड़े हो गये। गोपों-गोपियों ने छकड़े भरे और अपना-अपना गोधन हाँक दिया। गायें, वृषभ, बछड़े, बछड़ियाँ पूँछ उठाये दौड़तीं पहिले आ गयीं। उन्होंने शरीर हिलाया और पर्वत के नीचे खड़ीं हो गयीं। छकड़े भी पहुँचे, वे भी पर्वत के नीचे चले गये। इन्द्र चिल्लाया- 'इस पर्वत को बहा दो! मैं इसे चूर्ण-चूर्ण कर दूँगा।' फिर मेरे मन में आया कि समीप जाकर कह दूँ- 'वत्स शतक्रतु! तू सहस्राक्ष है? तनिक देख तो सही कि जब सब गोप-गोपियाँ नन्दभवन जा रहे थे, जब नन्दभवन से व्रजराजकुमार के पीछे भागते पर्वत तक आये, जब पर्वत से घरों तक लौटे और अन्त में घरों में पूरा पशुधन लेकर छकड़े हाँकते आये हैं- इस चार बार में खुले गगन के नीचे तू उनमें एक के अंग पर एक भी उपल-कण पहुँचा सका है? तेरे व्रजपात से यहाँ के किसी श्वान का भी अनिष्ट हुआ है? अब भी वृन्दावन में तो पशु-पक्षी, कपि हैं उनका तू कोई रोम तोड़ सका है या किसी तरु-लता के पत्र ही गिरा पाया है? अब तू वर्षा, उपलवृष्टि, वज्रपात पर्वत पर केन्द्रित करके क्या आशा करता है?' मुझे आशंका हुई- यह प्रलयवृष्टि पृथ्वी पर अनर्थ फैलावेगी; किंतु नीचे पर्वत-शिखर पर देखकर तो स्वयं अपना शरीर ही विस्मृत हो गया। वहाँ श्रीहरि का सहस्रार सुदर्शन चक्र सम्पूर्ण तेज के साथ प्रज्वलित था। पर्वत सूखा पड़ा था। जल-धाराएँ पड़तीं भी तो इस चक्र की असह्य अग्नि में वाष्प वन जातीं; किंतु चक्र की नाभि पर दोनों पद स्थिर धरे खड़े थे मेरे परमाराध्य भगवान पुरारि अपना जटाजाल फैलाये और वर्षा का सम्पूर्ण जल अब तक उन प्रलंयकर की जटाओं का कोई अंश आर्द्र नहीं कर सका था। अब यदि इन्द्र अन्धा हो गया है तो जो कर सकता हो, कर ले। इसके मेघों में पानी ही कितना है जो मेरे विश्वरूप प्रभु के मस्तक से टपक पावेगा। अब उत्कंठा हुई अदृश्य रहकर पर्वत के नीचे झांक लेने की। वहाँ का दृश्य अदभुत था। छकड़े जैसे भरे आये थे, वैसे लदे खड़े थे पंक्तिबद्ध। सब पशु परस्पर सटे चारों ओर बाहर की ओर पीठ किये स्थिर देख रहे थे श्रीनन्दनन्दन की ओर। गोप, गोपियाँ, बालिकाएँ सब एक टक देख रही थीं। |
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