नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
58. विशाल-सखा-समूह
अंशु तो दाऊ दादा की दूसरी मूर्ति ही है। यह अर्जुन का अनुज दाऊ के समान ही नील वस्त्र पहिनता है। तेज स्वभाव है; किंतु कन्हाई के साथ ही लगा रहता है। तोक कृष्ण छोटा भाई तो है भद्र का; किंतु शरीर के वर्ण, वस्त्र, स्वरूप में गोपियों को भी इसे देखकर बहुधा श्याम का भ्रम हो जाता है। सबसे छोटा है सखाओं में। कन्हाई इसे इतना मानता है कि यह रूठे तो कनूँ रूठा धरा है। इसपर अतिशय स्नेह है श्याम का और यह भी उसी के संग रहता है। 'लाल! तू अब केवल नाम बतला दे!' मुनि महाराज ने कहा- 'मुझे मध्याहन-सन्ध्या के लिये स्नान करना है। फिर आऊँगा और तुझसे तेरे सब सखाओं का वर्णन सुनूँगा। तू अभी जिनका वर्णन कर गया है, उनके साथ रहने वाले, उनके दल के सखाओं के नाम ही मुझे गिनाता जा।' 'ऋषभ, अर्जुन, मैं, वरूपथ- हम सबकी कोई रुचि नहीं है दल बनाने में।' मैंने मुनि महाराज को बतलाया- 'ऐसे ही अंशु, तेजस्वी, तोक इतने छोटे हैं कि ये मण्डली नहीं बनाते। ये सब तो कन्हाई की मण्डली में ही मिले रहते हैं।' भद्रसेन की मण्डली है। उसमें सुभद्र, मण्डलीभद्र, भद्रवर्धन, वीरभद्र, गोभट, भद्रांग यक्षेन्द्रभट, विजय प्रमुख हैं। इनमें भी मण्डलीभद्र ही वस्तुतः दलनायक है। भद्रसेन कहाँ दल बनाता है। सब दल उसी के हैं। आप श्यामवर्ण, पाटलवस्त्र, मयूरमुकुटी, मोटा लकुट लिये मण्डलीभद्र को देखते ही पहिचान लोगे। देवप्रस्थ प्राय: अपने सिर पर पाश लपेटता है। इसे गेण्डुर लिए आप देख सकते हैं। मरन्द, कुसुमपीड़, मणिबन्ध, करन्धम को इसके दल में कह सकते हैं। श्रीदाम अनेक बार पीतवस्त्र पहिनता है; किंतु उष्णीष सदा ताम्रवर्ण बाँधता है। इसके हाथ में श्रृंग प्राय: रहता है। इसके दल में वसुदाम, दाम, सुदाम, किंकिणीदाम, विलासी, पुण्डरीक, विटकांक्ष, कलविंक हैं। वैसे तो यह तोक, अंशु, भद्रसेन को भी अपने ही दल में गिनता है; क्योंकि ये सब नियुद्ध और लाठी चलाने की क्रीड़ा में रुचि लेते हैं। |
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