नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
31. अश्विनी कुमार-कर्ण-वेध
'लाल! मुझे छिद्र करना कहाँ आता है।' मैया किसी प्रकार टालना चाहती है। 'आता है!' यह कैसे मान लें कि कोई काम ऐसा भी है जो मैया को नहीं आया। 'तू छिद्रकर!' 'ऐसे कहीं छिद्र किया जाता है!' श्रीव्रजेश्वरी स्नेहमयी समझती हैं- 'तेरे बाबा महर्षि शाण्डिल्य को बुलावेंगे। वे पूजन करावेंगे, तब कोई वैद्यराज कहीं से बुलाये जायँगे और वे छिद्र करेंगे।' 'बाबा, तुम महर्षि को बुलाओ!' इन नन्दनन्दन को सदा शीघ्रता रहती है। अब दौड़े-दौड़े आकर व्रजराज के अंक में बैठ गये हैं और उनके श्मश्रु में अंगुलियाँ उलझाते मचलने लगे हैं- 'मैं कुण्डल पहिनूँगा।' 'अभी तो तेरे कान छोटे-छोटे हैं!' व्रजराज अपने कुमार की नन्हीं, सुकुमार कर्णपल्ली धीरे से स्पर्श करते हैं- 'तू कुछ और बड़ा हो जा तो तेरा कर्ण-वेध करा दूँगा।' 'नहीं, तुम चलो महर्षि के समीप!' अब इनको तो त्वरा है और जब महर्षि को मुहूर्त निश्चित करना है तो बाबा क्यों टालते है। महर्षि तो कभी कुछ कहने पर देर नहीं करते। उनके समीप ही चलना ठीक है- 'मैं भी चलूँगा!' व्रजराज जानते हैं कि उनके ये लाल कितने हठी हैं। ये अभी मचलकर भूमि पर लेटेंगे और रोने लगेंगे। इनका रुदन तो देखा नहीं जा सकता। महर्षि की बात शीघ्र मान लेते हैं, अत: वहीं चलना उत्तम है। महर्षि शाण्डिल्य जैसा सर्वज्ञ, समर्थ नहीं जानेगा कि मुहूर्त किसके संकेत पर चलते हैं। उन्होंने सुनते ही कह दिया- 'मैं स्मरण ही कराने वाला था कि श्रीकृष्ण को तीसरा वर्ष लग गया है। इस वर्ष के पञ्चम अथवा सप्तम मास में कर्णवेध होना चाहिये। यह शरद ऋतु है, शुक्लपक्ष है अत: श्यामसुन्दर ठीक कहता है। आप आज ही स्वर्णकार को शला का निर्माण आदेश दे दो। परसों द्वादशी को सौम्यवासर में कर्ण-वेध का उत्तम मुहूर्त है। मैं सुर-वैद्यों का आह्वान कर लूँगा!' हम लोगों को आह्वान की आवश्यकता कहाँ थी। हम तो व्रजराज के विदा होते ही महर्षि के सम्मुख प्रकट हुए और उनके पदों में प्रणत हो गये। उन परम तेजस्वी ने सस्मित बदन आशीर्वाद देकर आदेश दे दिया- 'लीलामय ने कर्णवेध की सेवा लेना निर्णय किया है आपसे और हम सबको उनकी इच्छा का ही अनुगमन करना है।' उनके सौन्दर्यघन श्रीविग्रह में- कोमल कर्णपल्ली में शलाका-वेध बहुत निर्मम कार्य है यह अब ध्यान में आया। हम सुरों के शरीर में स्वेद, कम्पादि बिकार नहीं होते; किंतु श्रीकृष्ण की कर्णपल्ली में छिद्र करते करकम्पित नहीं होंगे, यह आश्वासन तो हमारे हृदय में नहीं है। भगवान चन्द्रमौलि गंगाधर ही हमारे आराध्य हैं, अब तो उन्हीं की आराधना-चिन्तन करना है इस समय में। वे सर्वेश इतनी शक्ति दें कि हमारे कर स्थिर रह सकें! |
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