नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
19. नाना सुमुख-अन्नप्राशन
यह उज्ज्वल कौशेय का मण्डप, कदली के सफल स्तम्भ। सुरभित धूप से परिपूर्ण हैं दिशाएँ मेरे नेत्र धन्य हो गये। नन्दराय मेरे इस नीलोज्वल कमल लोचन दौहित्र को अंक में लिए आ गये हैं। आज इसकी घुँघराली काली अलकों में मयूरपिच्छ लगा दिया है इसकी माता ने। अलकें सुमनग्रथित हैं। यह भाल पर कज्जलविंदु लगाये कजरारे दीर्घ दृगों से इधर-उधर देखता हाथ हिला रहा है। नन्दराय की दक्षिण भुजा से सटकर उनके अंक में ही दाऊ आ बैठा है और भद्र, विशाल, ॠषभ, अर्जुन- सब शिशु इनकी ही गोद में- पास आ गये हैं। आज सारे गोकुल के शिशुओं का पितृत्व केवल नन्दराय को करना है। मैं यों ही तो नहीं कहता कि सब-के-सब मेरे ही दौहित्र हैं। 'बाबा! सबसे पहिले मैं।' भगवती पूर्णमासी का यह अवधूत मधुमंगल बढ़ने के स्थान पर क्या छोटा हो रहा है? मैंने देखा था यह आया तब यह लगभग पाँच वर्ष का था और अब दाऊ से दो वर्ष बड़ा कठिनाई से लगता है। कितना आग्रह किया सबने कि यह ब्राह्मणों के साथ भोजन कर ले; किंतु तब इसने किसी की नहीं सुनी और अब कह रहा है- 'मैं सबसे बड़ा हूँ! मेरा अन्न-प्राशन पहिले करा दो!' कितना प्यारा है यह। इसे पुकार लूँ कि यह मेरे हाथ से मौदक खाले? मेरी मानता तो है- 'आ लाल! तेरा अन्न-प्राशन मैं कराऊँगा।' यह मेरे अंक में आ गया है। महर्षि शाण्डिल्य ने अग्निदेव का पूजन करा दिया। रसेश वरुणदेव पूजित हो गये। अन्न के अधिष्ठाता को उनका भाग प्राप्त हो गया। अब मंगलगान, शंख-ध्वनि, स्वस्तिपाठ जयनाद के मध्य नन्दराय ने नन्हा-सा ग्रास उठाकर दाऊ के अधरों से लगा दिया है; किंतु दाऊ तो अधर फड़काने लगा है। कुछ भूमि पर और कुछ उदर पर इसने गिरा लिया है। यह तो देखने लगा है नन्दराय के मुख की ओर जैसे उलाहना देता हो- 'बाबा! यह क्या दे दिया मुख में तुमने? कुछ नवनीत, दधि देते! यह क्या अद्भुत स्वाद!' |
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