- महाभारत द्रोण पर्व में द्रोणाभिषेक पर्व के अंतर्गत दसवें अध्याय में संजय ने धृतराष्ट्र के द्वारा युद्ध शोक से व्याकुल होकर पूछे गये युद्ध विषयक प्रश्नों का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना
वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! सूतपुत्र संजय से इस प्रकार प्रश्न करते-करते हार्दिक शोक से अत्यन्त पीड़ित हो अपने पुत्रों की विजय की आशा टूट जाने के कारण राजा धृतराष्ट्र अचेत से होकर पृथ्वी पर गिर पड़े। उस समय अचेत पड़े हुए राजा धृतराष्ट्र को उनकी दासियाँ पंखा झलने लगीं और उनके ऊपर परम सुगन्धित एवं अत्यन्त शीतल जल छिड़कने लगी। महाराज को गिरा देख धृतराष्ट्र की बहुत-सी स्त्रियाँ उन्हें चारों ओर से घेरकर बैठ गयीं और उन्हें हाथों से सहलाने लगीं। फिर उन सुमुखी स्त्रियों ने राजा को धीरे-धीरे धरती से उठाकर सिंहासन पर बिठाया। उस समय उनके नेत्रों से आँसू झर रह थे और कण्ठ गद्गद हो रहे थे। सिंहासन पर पहुँचकर भी राजा धृतराष्ट्र मूर्छा से पीड़ित हो निश्चेष्ट हो गये। उस समय सब ओर से उनके ऊपर व्यजन डुलाया जा रहा था। फिर धीरे-धीरे होश में आने पर काँपते हुए राजा धृतराष्ट्र ने पुन: सूत जातीय संजय से युद्ध का यथावत समाचार पूछा।[1]
धृतराष्ट्र का पांडवों के विषय में प्रश्न करना
धृतराष्ट्र बोले- जो उगते सूर्य की भाँति अपनी प्रभा से अन्धकार दूर कर देते हैं, उन अजातशत्रु युधिष्ठिर को द्रोण के समीप आने से किसने रोका था? जो मद की धारा बहाने वाले, हथिनी के साथ समागम के समय आये हुए विपक्षी हाथी पर आक्रमण करने वाले तथा गजयूथपतियों के लिये अजेय मतवाले गजराज के समान वेगशाली और पराक्रमी हैं, कौरवों के प्रति जिनका क्रोध बढ़ा हुआ है, जिन पुरुषप्रवर वीर ने रणक्षेत्र में बहुत से वीरों का संहार किया है, जो महापराक्रमी, धैर्यवान एवं सत्यप्रतिज्ञ हैं और अपनी भयंकर दृष्टि से अकेले ही दुर्योधन की सम्पूर्ण सेना को भस्म कर सकते हैं, जो क्रोध भरी दृष्टि से ही शत्रु का संहार करने में समर्थ हैं, विजय के लिये प्रयत्नशील, अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले, जितेन्द्रिय तथा लोक में विशेष सम्मानित हैं, उस प्रसन्नवदन धनुर्धर युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य के सामने आते देख मेरे पक्ष के किन शूरवीरों ने रोका था? जो धर्म से कभी विचलित नहीं होते हैं, उन महाधनुर्धर दुर्धर्ष वीर पुरुष सिंह कुन्तीकुमार राजा युधिष्ठिर पर मेरे किन योद्धाओं ने आक्रमण किया था? जिन्होंने वेग से ही पहुँचकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण किया था, जो शत्रु के समक्ष महान पराक्रम प्रकट करते हैं, जो महाबली, महाकाय और महान उत्साही हैं तथा जिनमें दस हजार हाथियों के समान बल है, उन भीमसेन को आते देख किन वीरों ने रोका था? जो मेघ के समान श्यामवर्ण वाले परम पराक्रमी महारथी अर्जुन विद्युत की उत्पत्ति करते हुए बादलों के समान भयंकर वज्रास्त्र का प्रयोग करते हैं, जो जल की वर्षा करने वाले इन्द्र के समान बाणसमूहों की वृष्टि करते हैं तथा जो अपने धनुष की टंकार और रथ के पहिये की घरघराहट से सम्पूर्ण दिशाओं को शब्दायमान कर देते हैं, वे स्वयं भयंकर मेघ स्वरूप जान पड़ते हैं। धनुष ही उनके समीप विद्युत्प्रभा के समान प्रकाशित होता है। रथियों की सेना उनकी फैली हुई घटाएँ जान पड़ती हैं। रथ के पहियों की घरघराहट मेघ-गर्जना के समान प्रतीत होती है। उनके बाणों की सनसनाहट वर्षा के शब्द की भाँति अत्यन्त मनोहर लगती है। क्रोधरूपी वायु उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। वे मनोरथ की भाँति शीघ्रगामी और विपक्षियों के मर्मस्थलों को विदीर्ण कर डालने वाले हैं। बाण धारण करके वे बड़े भयानक प्रतीत होते और रक्तरूपी जल से सम्पूर्ण दिशाओं को आप्लावित करते हुए मनुष्यों की लाशों से धरती को पाट देते हैं।[1]
जिस समय भयंकर गर्जना करने वाले रौद्ररूपधारी बुद्धिमान अर्जुन ने युद्ध में गाण्डीव धारण करके सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए गृध्रपंखयुक्त बाणों द्वारा दुर्योधन आदि मेरे पुत्रों और सैनिकों को घायल करना आरम्भ किया, उस समय तुम लोगों के मन की कैसी अवस्था हुई थी? वानर के चिह्न से युक्त श्रेष्ठ ध्वजा वाले अर्जुन जब आकाश को अपने बाणों से ठसाठस भरते हुए तुम लोगों पर चढ़ आये थे, उस समय उन्हें देखकर तुम्हारे मन की कैसी दशा हुई थी? जिस समय अर्जुन ने भयंकर सिंहनाद करते हुए तुम लोगों का पीछा किया था, उस समय गाण्डीव की टंकार सुनकर हमारी सेना भाग तो नहीं गयी थी? उस अवसर पर पार्थ ने अपने बाणों द्वारा तुम्हारे सैनिकों के प्राण तो नहीं ले लिये थे? जैसे वायु वेगपूर्वक चलकर मेघों की घटा को छिन्न-छिन्न कर देती है, उसी प्रकार अर्जुन ने वेग से चलाये हुए बाण-समूहों द्वारा विपक्षी नरेशों को घायल कर दिया होगा। सेना के प्रमुख भाग में जिनका नाम सुनकर ही सारे सैनिक विदीर्ण हो जाते (भाग निकलते) हैं, उन्हीं गाण्डीवधारी अर्जुन का वेग रणक्षेत्र में कौन मनुष्य सह सकता है? जहाँ सारी सेनाएँ काँप उठी, समस्त वीरों के मन में भय समा गया, वहाँ किन वीरों ने द्रोणाचार्य का साथ नहीं छोड़ा और कौन-कौन से अधम सैनिक भय के मारे मैदान छोड़कर भाग गये? मानवेतर प्राणियों (देवताओं और दैत्यों) पर भी विजय पाने वाले वीर अर्जुन को युद्ध में अपने प्रतिकूल पाकर किन वीरों ने वहाँ अपने शरीरों को निछावर करके मृत्यु को स्वीकार किया? मेरे सैनिक श्वेतवाहन अर्जुन के वेग और वर्षाकाल के मेघ की गम्भीर गर्जना की भाँति गाण्डीव धनुष की टंकार ध्वनि को नहीं सह सकेंगे। जिसके सारथि भगवान श्रीकृष्ण और योद्धा वीर धनंजय हैं, उस रथ को जीतना मैं देवताओं तथा असुरों के लिये भी असम्भव मानता हूँ। सुकुमार, तरुण, शूरवीर, दर्शनीय (सुन्दर), मेधावी, युद्धकुशल, बुद्धिमान और सत्यपराक्रमी पाण्डुपुत्र नकुल जब युद्ध में जोर-जोर से गर्जना करके समस्त सैनिकों को पीड़ित करते हुए द्रोणाचार्य पर चढ़ आये, उस समय किन वीरों ने उन्हें रोका था? विषधर सर्प के समान क्रोध में भरे हुए तथा तेज से दुर्जय सहदेव जब युद्ध में शत्रुओं का संहार करते हुए द्रोणाचार्य के सामने आये, उस समय श्रेष्ठ व्रतधारी अमोघ बाणों वाले लज्जाशील और अपराजित वीर सहदेव को आते देख किन शूरवीरों ने उन्हें रोका था?[2]
धृतराष्ट्र द्वारा अन्य योद्धाओं के विषय में प्रश्न करना
धृतराष्ट्र कहते हैं- संजय! जिन्होंने सौवीरराज की विशाल सेना को मथकर उनकी सर्वांग सुन्दरी कमनीय कन्या भोजा को अपनी रानी बनाने के लिये हर लिया था, उन पुरुष शिरोमणि सात्यकि में सत्य, धैर्य, शौर्य और विशुद्ध ब्रह्मचर्य आदि सारे सद्गुण विद्यमान रहते हैं। वे सात्यकि बलवान, सत्यपराक्रमी, उदार, अपराजित युद्ध में वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण के समान शक्तिशाली, अवस्था में उनसे कुछ छोटे, अर्जुन से ही शिक्षा पाकर बाणविद्या में श्रेष्ठ अस्त्रों के संचालन में कुंतीकुमार अर्जुन के तुल्य यशस्वी हैं। उन वीरवर सात्यकि को किसने द्रोणाचार्य के पास आने से रोका? वृष्णि वंश के श्रेष्ठ शूरवीर सात्यकि सम्पूर्ण धनुर्धरों में उत्तम हैं। वे अस्त्र-विधा, यश तथा पराक्रम में परशुराम जी के समान हैं। जैसे भगवान श्रीकृष्ण में तीनों लोक स्थित हैं, उसी प्रकार सात्वतवंशी सात्यकि में सत्य, धैर्य, बुद्धि, शौर्य तथा परम उत्तम ब्रह्मास्त्र विद्यमान हैं। इस प्रकार सर्वसद्गुणसम्पन्न महाधनुर्धर सात्यकि को रोकना देवताओं के लिये भी अत्यन्त कठिन है। उनके पास पहुँचकर किन शूरवीरों ने उन्हें आगे बढ़ने से रोका? पांचालों मे उत्तम श्रेष्ठ कुल एवं ख्याति के प्रेमी, सदा सत्कर्म करने वाले, संग्राम में उत्तम आत्मबल का परिचय देने वाले, अर्जुन के हितसाधन में तत्पर, मेरा अनर्थ करने के लिये उद्यत रहने वाले, यमराज, कुबेर, सूर्य, इन्द्र और वरुण के समान तेजस्वी, विख्यात महारथी तथा भयंकर युद्ध में अपने प्राणों को निछावर करके द्रोणाचार्य से भिड़ने के लिये सदा तैयार रहने वाले वीर धृष्टद्युम्न को किन शूरवीरों ने रोका?[2]
जिसने अकेले ही चेदि देश से आकर पाण्डव पक्ष का आश्रय लिया है, उस धृष्टकेतु को द्रोण के पास आने से किसने रोका? जिस वीर ने अपरान्त पर्वत के द्वारदेश में स्थित दुर्जय राजकुमार का वध किया, उस केतुमान को द्रोणाचार्य के पास आने से किसने रोका? जो पुरुषसिंह स्त्री और पुरुष दोनों शरीरों के गुण अवगुण को अपने अनुभव द्वारा जानता है, युद्धस्थल में जिसका मन कभी म्लान (उत्साह शून्य) नहीं होता, जो समरांगण में महात्मा भीष्म की मृत्यु में हेतु बन चुका है, उस द्रुपदपुत्र शिखण्डी को द्रोणाचार्य के सम्मुख आने से किन वीरों ने रोका था? जिस वीर में अर्जुन से भी अधिक मात्रा में समस्त गुण मौजूद हैं, जिसमें अस्त्र, सत्य तथा ब्रह्मचर्य सदा प्रतिष्ठित हैं, जो पराक्रम में भगवान श्रीकृष्ण, बल में अर्जुन, तेज में सूर्य और बुद्धि में बृहस्पति के समान है, वह महामना अभिमन्यु जब मुँह फैलाये हुए काल के समान द्रोणाचार्य के सम्मुख जा रहा था, उस समय किन शूरवीरों ने उसे रोका था? तरुण अवस्था और तरुण बुद्धि वाले शत्रुवीरों के हन्ता सुभद्राकुमार ने जब द्रोणाचार्य पर धावा किया था, उस समय तुम लोगों का मन कैसा हो रहा था? पुरुषसिंह द्रौपदीकुमार समुद्र की ओर जाने वाली नदियों की भाँति जब द्रोणाचार्य पर धावा कर रहे थे, उस समय युद्ध में किन शूरवीरों ने उनको रोका था? इन द्रौपदीकुमारों ने बारह वर्षों तक खेल-कूद छोड़कर अस्त्रों की शिक्षा पाने के लिये उत्तम ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए भीष्म के समीप निवास किया था। क्षत्रंजय, क्षत्रदेव तथा दूसरों को मान देने वाले क्षत्रवर्मा ये धृष्टद्युम्न के तीन वीर पुत्र हैं। उन्हें द्रोण के पास आने से किन वीरों ने रोका था? जिन्हें युद्ध के मैदान में वृष्णिवंशियों ने सौ वीरों से भी अधिक माना है, उन महाधनुर्धर चेकितान को द्रोण के पास आने से किसने रोका? वृद्धक्षेम के पुत्र उदारचित्त अनाधृष्टि ने युद्धस्थल में कलिंगराज की कन्या का अपहरण किया था। उन्हें द्रोण के पास आने से किसने रोका? केकय देश के सत्यपराक्रमी, धर्मात्मा पाँच वीर राजकुमार लाल रंग के कवच, आयुध और ध्वज धारण करने वाले हैं तथा उनके शरीर की कान्ति भी इन्द्रगोप के समान लाल रंग की है; वे पाण्डवों की मौसी के बेटे हैं। वे जब पाण्डवों की विजय के लिये द्रोणाचार्य को मारने के लिये उन पर चढ़ आये, उस समय किन वीरों ने उन्हें रोका था? वारणावत नगर में सब राजा लोग मार डालने की इच्छा से क्रोध में भरकर छ: महीनों तक युद्ध करते रहने पर भी योद्धाओं में श्रेष्ठ जिस वीर को परास्त न कर सके, धनुर्धरों मे उत्तम, शौर्य सम्पन्न, सत्यप्रतिज्ञ, महाबली, उस पुरुषसिंह युयुत्सु को द्रोणाचार्य के पास आने से किसने रोका? जिसने काशीपुरी में काशिराज के महारथी पुत्र को, जो स्त्रियों के प्रति आसक्त था, समरभूमि में भल्ल नामक बाण द्वारा रथ से मार गिराया; जो कुन्तीकुमारों की गुप्त मन्त्रणा को सुरक्षित रखने वाला तथा दुर्योधन का अनर्थ करने के लिये उद्यत रहने वाला है तथा जिसकी उत्पति द्रोणाचार्य के वध के लिये हुई है; वह महाधनुर्धर धृष्टद्युम्न जब रणक्षेत्र में योद्धाओं को अपने बाणों की अग्नि से जलाता और सब ओर से सारी सेना को विदीर्ण करता हुआ द्रोणाचार्य के सम्मुख आ रहा था, उस समय किन शूरवीरों ने उसे रोका था?[3]
जो द्रुपद की गोद में पला हुआ था और शस्त्रों द्वारा सुरक्षित था, अस्त्र वेत्ताओं में श्रेष्ठ उस शिखण्डीपुत्र को द्रोणाचार्य के पास आने से किन वीरों ने रोका? जैसे चमड़े को अंगों में लपेट लिया जाता है, उसी प्रकार जिन्होंने अपने रथ के महान घोष द्वारा इस सारी पृथ्वी को व्याप्त कर लिया था, जो प्रधान-प्रधान शत्रुओं का वध करने वाले और महारथी वीर थे, जिन्होंने प्रजा का पुत्र की भाँति पालन करते हुए सुन्दर अन्न, पान तथा प्रचुर दक्षिणा से युक्त एवं विघ्नरहित दस अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान किया और कितने ही सर्वमेध यज्ञ सम्पन्न किये, वे राजा उशीनर के वीर पुत्र सर्वत्र विख्यात है, गंगा जी के स्त्रोत में जितने सिकता कण बहते हैं, उतनी ही अर्थात असंख्य गौएँ उशीनरकुमार ने अपने यज्ञ में ब्राह्मणों को दी थीं। राजा जब उस दुष्कर यज्ञ का अनुष्ठान पूर्ण कर चुके, तब सम्पूर्ण देवताओं ने यह पुकार-पुकार कर कहा कि ऐसा यज्ञ पहले के और बाद के भी मनुष्यों ने कभी नहीं किया था। स्थावर जंगमरूप तीनों लोकों मे एकमात्र उशीनरपौत्र शैव्य को छोड़कर दूसरे किसी ऐसे राजा को न तो हम इस समय उत्पन्न हुआ देखते हैं और न भविष्य में किसी के उत्पन्न होने का लक्षण ही देख पाते हैं, जो इस महान भार को वहन करने वाला हो। इस मर्त्यलोक के निवासी मनुष्य उनकी गति को नहीं पा सकेंगे। उन्हीं उशीनर का पौत्र शैब्य सावधान हो जब द्रोणाचार्य के सम्मुख आ रहा था, उस समय मुँह फैलाये हुए काल के समान उस वीर को किसने रोका? शत्रुघाती मत्स्यराज विराट की रथसेना को, जो द्रोणाचार्य को नष्ट करने की इच्छा से खोजती हुई आ रही थी, किन वीरों ने रोका था? जो भीमसेन से तत्काल प्रकट हुआ तथा जिससे मुझे महान भय बना रहता है, वह महान बल और पराक्रम से सम्पन्न मायावी राक्षस वीर घटोत्कच कुन्तीकुमारों की विजय चाहता है और मेरे पुत्रों के लिये कंटक बना हुआ है, उस महाकाय घटोत्कच को द्रोणाचार्य के पास आने से किसने रोका? संजय! ये तथा और भी बहुत से वीर जिनके लिये युद्ध में प्राण त्याग करने को तैयार हैं, उनके लिये कौन-सी ऐसी वस्तु होगी, जो जीती न जा सके। शांर्ग धनुष धारण करने वाले पुरुषसिंह भगवान श्रीकृष्ण जिनके आश्रय तथा हित चाहने वाले हैं, उन कुन्तीकुमारों की पराजय कैसे हो सकती है? भगवान श्रीकृष्ण सम्पूर्ण जगत के परम गुरु हैं, समस्त लोकों के सनातन स्वामी हैं, संग्रामभूमि में सबकी रक्षा करने वाले दिव्य स्वरूप, सामर्थ्यशाली, दिव्य नारायण हैं। मनीषी पुरुष जिनके दिव्य कर्मों का वर्णन करते हैं, उन्हीं भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का अपने मन की स्थिरता के लिये भक्ति पूर्वक वर्णन करूँगा।[4]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 1-18
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 19-42
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 43-62
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 63-77
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| द्रौपदी के पुत्रों द्वारा शल का वध
| भीमसेन द्वारा अलम्बुष की पराजय
| घटोत्कच द्वारा अलम्बुष का वध
| द्रोणाचार्य और सात्यकि का युद्ध
| युधिष्ठिर का सात्यकि को कौरव सेना में प्रवेश करने का आदेश
| सात्यकि और युधिष्ठिर का संवाद
| सात्यकि की अर्जुन के पास जाने की तैयारी और उनका प्रस्थान
| सात्यकि का भीम को युधिष्ठिर की रक्षा हेतु लौटाना
| सात्यकि का पराक्रम
| सात्यकि का द्रोणाचार्य से युद्ध
| सात्यकि का कृतवर्मा से युद्ध
| धृतराष्ट्र का संजय से विषादयुक्त वचन
| संजय का धृतराष्ट्र को दोषी बताना
| कृतवर्मा का भीमसेन से युद्ध
| कृतवर्मा का शिखण्डी से युद्ध
| सात्यकि द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| सात्यकि द्वारा त्रिगर्तों की गजसेना का संहार
| सात्यकि द्वारा जलसंध का वध
| सात्यकि का पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्मा की पुन: पराजय
| सात्यकि और द्रोणाचार्य का घोर युद्ध
| सात्यकि द्वारा द्रोण की पराजय और कौरव सेना का पलायन
| सात्यकि द्वारा सुदर्शन का वध
| सात्यकि और उनके सारथि का संवाद
| सात्यकि द्वारा काम्बोजों और यवन आदि सेना की पराजय
| सात्यकि द्वारा दुर्योधन की सेना का संहार
| दुर्योधन का भाइयों सहित पलायन
| सात्यकि द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना का संहार
| दु:शासन का सेना सहित पलायन
| द्रोणाचार्य का दु:शासन को फटकारना
| द्रोणाचार्य द्वारा वीरकेतु आदि पांचालों का वध
| द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न से घोर युद्ध तथा उनका मूर्च्छित होना
| धृष्टद्युम्न का पलायन और द्रोणाचार्य की विजय
| सात्यकि का घोर युद्ध और दु:शासन की पराजय
| कौरव-पांडव सेना का घोर युद्ध
| पांडवों के साथ दुर्योधन का संग्राम
| द्रोणाचार्य द्वारा बृहत्क्षत्र का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा धृष्टकेतु का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा जरासन्धपुत्र सहदेव तथा क्षत्रधर्मा का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा चेकितान की पराजय
| अर्जुन और सात्यकि के प्रति युधिष्ठिर की चिन्ता
| युधिष्ठिर का भीमसेन को अर्जुन और सात्यकि का पता लगाने के लिए भेजना
| भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश
| भीमसेन द्वारा द्रोणाचार्य के सारथि सहित रथ को चूर्ण करना
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीमसेन का द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंकना
| भीमसेन की गर्जना सुनकर युधिष्ठिर का प्रसन्न होना
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को द्यूत का परिणाम दिखाकर युद्ध हेतु वापस भेजना
| युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय
| भीमसेन और कर्ण का घोर युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध
| कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन
| धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन
| भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध
| भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध
| भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध
| पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय
| अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन
| सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध
| सात्यकि का अद्भुत पराक्रम
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना
| सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता
| भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध
| अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद
| भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर
| भूरिश्रवा का आमरण अनशन
| सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण
| वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा
| अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप
| अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध
| कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| अर्जुन का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध
| अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद
| कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय
| अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना
| युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति
| युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन
| दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध
| दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय
| रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध
| भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध
| सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय
| द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध
| अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार
| अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध
| सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत
| कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना
| कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान
| अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना
| पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम
| अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध
| अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध
| अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम
| भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन
| सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश
| कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय
| सात्यकि द्वारा भूरि का वध
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन
| कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय
| शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय
| अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन
| शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय
| वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय
| प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध
| नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय
| शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध
| सात्यकि और कर्ण का युद्ध
| कर्ण की दुर्योधन को सलाह
| शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण
| सात्यकि से दुर्योधन की पराजय
| अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय
| धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय
| दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध
| अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण
| कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय
| कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट
| श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना
| घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध
| घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन
| कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम
| अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन
| भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप
| कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध
| घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना
| कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन
| धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर
| युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना
| उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना
| दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर
| पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध
| धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध
| युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन
| नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य का घोर कर्म
| ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश
| अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा
| द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध
| सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा
| उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना
| कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना
| धृतराष्ट्र का प्रश्न
| अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य
| कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना
| अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन
| भीमसेन के वीरोचित उद्गार
| धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन
| सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना
| भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग
| नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद
| श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा
| भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण
| श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना
| अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना
| अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय
| सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना
| सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध
| अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध
| भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता
| व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना
| व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना
| द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल
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