- संजय धृतराष्ट्र को द्रोणाचार्य के द्वारा युद्ध में पांडव सेना के संहार करने का सारा वृतांत सुनाते हुए उनके द्रोण के वध के विषय में बताते हैं जिसे सुनकर धृतराष्ट्र शोक में लीन हो जाते हैं, जिसका वर्णन महाभारत द्रोण पर्व में द्रोणाभिषेक पर्व के अंतर्गत नवें अध्याय मेंं दिया गया है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
द्रोणाचार्य की मृत्यु का समाचार सुनकर धृतराष्ट्र का शोक करना
धृतराष्ट्र बोले– संजय! रणक्षेत्र में द्रोणाचार्य क्या कर रहे थे कि पाण्डव तथा सृंजय उन पर चोट कर सके? वे तो सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ और अस्त्र-विद्या में निपुण थे। उनका रथ टूट गया था बाणों का प्रहार करते समय धनुष ही खण्डित हो गया था अथवा द्रोणाचार्य असावधान थे, जिससे उनकी मृत्यु हो गयी? तात! द्रोणाचार्य तो शत्रुओं के लिये सर्वथा दुर्जय थे। वे सुवर्णमय पंख वाले बाणसमूहों की बारंबार वर्षा करते थे। उनके हाथों में फुर्ती थी। वे विचित्र रीति से युद्ध करने वाले और विद्वान थे। दूर तक बाण मारने वाले और अस्त्र-युद्ध में पारंगत थे। फिर उन जितेन्द्रिय दिव्यास्त्रधारी और अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होने वाले द्विजश्रेष्ठ द्रोणाचार्य को पांचाल राजकुमार धृष्टद्युम्न ने कैसे मार दिया? वे तो रणक्षेत्र में कठोर कर्म करने वाले, विजय के लिये प्रयत्नशील और महारथी वीर थे। निश्चय ही पुरुषार्थ की अपेक्षा दैव ही प्रबल है, ऐसा मेरा विश्वास है; क्योंकि द्रोणाचार्य जैसे शूरवीर महामना धृष्टद्युम्न के हाथ से मारे गये। जिन वीर सेनापति में चार प्रकारक अस्त्र प्रतिष्ठित थे, उन धनुर्धरों के आचार्य द्रोण को तुम मुझे मारा गया बता रहे हो। व्याघ्रचर्म से आच्छादित सुवर्णमय रथ पर आरूढ़ हो सुनहरा शिरस्त्राण[2] धारण करने वाले द्रोणाचार्य को मारा गया सुनकर आज मैं अपने शोक को किसी प्रकार दूर नहीं कर पाता हूँ। संजय! निश्चय ही कोई भी दूसरे के दु:ख से नहीं मरता है, तभी तो मैं मन्दबुद्धि मनुष्य द्रोणाचार्य को मारा गया सुनकर भी जी रहा हूँ। मैं तो दैव को ही श्रेष्ठ मानता हूँ। पुरुषार्थ तो अनर्थ का ही कारण है। निश्चय ही मेरा यह अत्यन्त सुदृढ़ हृदय लोहे का बना हुआ है, जिससे द्रोणाचार्य को मारा गया सुनकर भी इसके सौ टुकड़े नहीं हो जाते।
गुणार्थी ब्राह्मण तथा राजकुमार ब्राह्म और दैव अस्त्रों के लिये जिनकी उपासना करते थे, उन्हें मृत्यु कैसे हर ले गयी? द्रोण का रणभूमि में गिराया जाना समुद्र के सूखने, मेरु पर्वत के चलने-फिरने और सूर्य के आकाश से टूटकर गिरने के समान है। मैं इसे किसी प्रकार सहन नहीं कर पाता। शत्रुओं को संताप देने वाले द्रोणाचार्य दुष्टों को दण्ड देने वाले और धार्मिकों के रक्षक थे। उन्होंने मुझ कृपण के लिये अपने प्राण तक दे दिये। मेरे मूर्ख पुत्रों को जिनके ही पराक्रम के भरोसे विजय की आशा बनी हुई थी तथा जो बुद्धि में बृहस्पति और शुक्राचार्य के समान थे, वे द्रोणाचार्य कैसे मारे गये? जिनके रंग लाल थे, जो विशाल एवं दृढ़ शरीर वाले थे, जिन्हें सोने की जालियों से आच्छादित किया जाता था, जो रथ में जोते जाने पर वायु के समान वेग से चलते थे, संग्राम में सब प्रकार के शस्त्रों द्वारा किये जाने वाले प्रहार को बचा जाते थे, जो बलवान, सुशिक्षित और रथ को अच्छी तरह वहन करने वाले थे, रणभूमि में जो दृढ़तापूर्वक डटे रहते और जोर-जोर से हिनहिनाते थे, धनुषों की टंकार के साथ होने वाली बाणवर्षा तथा अस्त्र-शस्त्रों के आघात को सहन करने में समर्थ एवं शत्रुओं को जीतने का उत्साह रखने वाले थे, जो पीड़ा तथा श्वास को जीत चुके थे, वे सिन्धुदेशीय घोड़े युद्धस्थल में चिंग्घाड़ते हुए हाथियों और शंखों एवं नगाड़ों की आवाज से घबराये तो नहीं थे?[1]
क्या द्रोणाचार्य के रथ को वहन करने वाले वे शीघ्रगामी अश्व पराजित हो गये थे? तात! द्रोणाचार्य के सुवर्णमय रथ में जुते हुए और उन्हीं नरवीर आचार्य की सवारी में काम आने वाले वे घोड़े पाण्डव सेना को पार कैसे नहीं कर सके? उस सुवर्णभूषित उत्तम रथ पर आरूढ़ हो सत्यपराक्रमी द्रोणाचार्य ने युद्धस्थल में क्या किया? समस्त जगत के धनुर्धर जिनकी विद्या का आश्रय लेकर जीवन-निर्वाह करते हैं, उन सत्यपराक्रमी बलवान द्रोणाचार्य ने युद्ध में क्या किया? स्वर्ग में देवराज इन्द्र के समान जो इस लोक में श्रेष्ठ और समस्त धनुर्धरों में महान थे, उन भयंकर कर्म करने वाले द्रोणाचार्य का सामना करने के लिये उस रणक्षेत्र में कौन-कौन से रथी गये थे? उस समरांगण में दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करने वाले तथा सुवर्णमय रथ पर आरूढ़ हुए महाबली द्रोणाचार्य को देखकर तो समस्त पाण्डव योद्धा भाग खड़े होते थे। भाइयों सहित धर्मराज युधिष्ठिर ने अपनी सारी सेना के साथ जाकर धृष्टद्युम्नरूपी डोरी की सहायता से द्रोणाचार्य को घेर तो नहीं लिया? निश्चय ही अर्जुन ने अपने सीधे जाने वाले बाणों के द्वारा अन्य रथियों को आगे बढ़ने से रोक दिया था। इसलिये पापकर्मा धृष्टद्युम्न द्रोणाचार्य पर चढ़ाई कर सका। किरीटधारी अर्जुन के द्वारा सुरक्षित भयंकर स्वभाव वाले धृष्टद्युम्न को छोड़कर दूसरे किसी को मैं ऐसा नहीं देखता, जो अत्यन्त तेजस्वी द्रोणाचार्य के वध में समर्थ हो। केकय, चेदि, कारूष, मत्स्य देशीय सैनिकों तथा अन्य भूमिपालों ने आचार्य को उसी प्रकार व्याकुल कर दिया होगा, जैसे बहुत-सी चींटियाँ सर्प का विह्बल कर देती हैं; उसी अवस्था में उन पाण्डव सैनिकों द्वारा सब ओर से घिरे हुए नीच धृष्टद्युम्न ने दुष्कर कर्म में लगे हुए द्रोणाचार्य को मार डाला होगा, यही बात मेरे मन में आती है।
जो छहों अंगों तथा पंचम वेद स्थानीय इतिहास-पुराणों सहित चारों वेदों का अध्ययन करके ब्राह्मणों के लिये उसी प्रकार आश्रय बने हुए थे, जैसे नदियों के लिये समुद्र हैं। जो शत्रुओं को संताप देने वाले तथा ब्राह्मण एवं क्षत्रिय दोनों के धर्मों का अनुष्ठान करने वाले थे, वे वृद्ध ब्राह्मण द्रोणाचार्य शस्त्र द्वारा कैसे मारे गये? मैने अमर्ष में भरकर सदा कष्ट भोगने के अयोग्य कुन्तीकुमारों को क्लेश ही दिया है; परंतु मेरे इस बर्ताव को द्रोणाचार्य ने चुपचाप सह लिया था। उनके उसी कर्म का यह वधरूपी फल प्राप्त हुआ है। जगत के सम्पूर्ण धनुधर जिनके शिक्षणरूपी कर्म का आश्रय लेकर जीवन-निर्वाह करते हैं, उन सत्यप्रतिज्ञ पुण्यात्मा द्रोणाचार्य को राजलक्ष्मी के लोभियों ने कैसे मार डाला? स्वर्ग लोक में इन्द्र के समान जो इस लोक में सबसे श्रेष्ठ थे, उन महान सत्त्वशाली, महाबली द्रोणाचार्य को कुन्ती के पुत्रों ने उसी प्रकार मार डाला, जैसे छोटे मत्स्यों ने मिलकर तिमि नामक महामत्स्य को मार डाला हो। यह कैसे सम्भव हुआ? जो शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले, बलवान, दृढ़धन्वा तथा शत्रुओं का मर्दन करने वाले थे, कोई भी विजयाभिलाषी वीर जिनके बाणों का लक्ष्य बन जाने पर जीवित नहीं रह सकता था, जिन्हें जीते जी दो शब्दों ने कभी नहीं छोड़ा था- एक तो वेदाध्ययन की इच्छा वाले लोगों के समक्ष वेदध्वनि का शब्द और दूसरा धनुर्धारियों के बीच में प्रत्यंचा की टंकार का शब्द।[3]
सिंह और हाथी के समान पराक्रमी, उदार, लज्जाशील और किसी से पराजित न होने वाले पुरुषसिंह द्रोण का वध मैं नहीं सहन कर सकता। संजय! जिनके यश और बल का तिरस्कार होना असम्भव था, उन दुर्धर्ष वीर द्रोणाचार्य को समरभूमि में सम्पूर्ण नरेशों के देखते-देखते धृष्टद्युम्न ने कैसे मार डाला? कौन-कौन से वीर उस समय निकट से द्रोणाचार्य की रक्षा करते हुए उनके आगे रहकर युद्ध करते थे और कौन-कौन योद्धा दुर्गम मार्ग पर पैर बढ़ाते हुए उनके पीछे रहकर रक्षा करते थे? कौन वीर उन महात्मा के दाहिने पहिये की और कौन बायें पहिये की रक्षा करते थे? कौन उस युद्धस्थल में युद्ध परायण वीरवर द्रोणाचार्य के आगे थे और किन लोगों ने अपने शरीर का मोह छोड़कर विपक्षियों का सामना करते हुए उस रणक्षेत्र में मृत्यु का वरण किया था। किन वीरों ने युद्ध में द्रोणाचार्य को उत्तम धैर्य प्रदान किया? उनकी रक्षा करने वाले मूर्ख क्षत्रियों ने भयभीत होकर युद्धस्थल में उन्हें अकेला तो नहीं छोड़ दिया? और इस प्रकार शत्रुओं ने सूने में तो उन्हें नहीं मार डाला? जो बड़ी-से-बड़ी आपत्ति पड़ने पर भी रण में अपने शौर्य के कारण शत्रु को भयवश पीठ नहीं दिखा सकते थे, वे विपक्षियों द्वारा किस प्रकार मारे गये? संजय! बड़े भारी संकट में पड़ने पर श्रेष्ठ पुरुष को यही करना चाहिये कि वह यथाशक्ति पराक्रम दिखावे; यह बात द्रोणाचार्य में पूर्णरूप से प्रतिष्ठित थी। तात! इस समय मेरा मन मोहित हो रहा है; अत: तुम यह कथा बंद करो! संजय! फिर होश में आने पर तुमसे यह समाचार पूछूँगा।[4]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 9 श्लोक 1-18
- ↑ टोप या पगड़ी
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 9 श्लोक 19-35
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 9 श्लोक 36-44
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| भीमसेन का द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंकना
| भीमसेन की गर्जना सुनकर युधिष्ठिर का प्रसन्न होना
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को द्यूत का परिणाम दिखाकर युद्ध हेतु वापस भेजना
| युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय
| भीमसेन और कर्ण का घोर युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध
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| धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध
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| भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध
| भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध
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| सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध
| सात्यकि का अद्भुत पराक्रम
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| सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता
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| अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद
| भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर
| भूरिश्रवा का आमरण अनशन
| सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण
| वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा
| अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप
| अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध
| कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| अर्जुन का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध
| अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद
| कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय
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| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध
| दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय
| रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध
| भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध
| सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय
| द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध
| अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार
| अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध
| सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत
| कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना
| कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान
| अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना
| पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम
| अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध
| अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध
| अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम
| भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन
| सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश
| कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय
| सात्यकि द्वारा भूरि का वध
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन
| कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय
| शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय
| अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन
| शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय
| वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय
| प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध
| नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय
| शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध
| सात्यकि और कर्ण का युद्ध
| कर्ण की दुर्योधन को सलाह
| शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण
| सात्यकि से दुर्योधन की पराजय
| अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय
| धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय
| दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध
| अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण
| कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय
| कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट
| श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना
| घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध
| घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन
| कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम
| अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन
| भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप
| कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध
| घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना
| कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन
| धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर
| युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना
| उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना
| दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर
| पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध
| धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध
| युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन
| नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य का घोर कर्म
| ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश
| अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा
| द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध
| सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा
| उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना
| कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना
| धृतराष्ट्र का प्रश्न
| अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य
| कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना
| अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन
| भीमसेन के वीरोचित उद्गार
| धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन
| सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना
| भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग
| नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद
| श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा
| भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण
| श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना
| अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना
| अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय
| सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना
| सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध
| अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध
| भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता
| व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना
| व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना
| द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल
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