- महाभारत द्रोण पर्व मेंं जयद्रथवध पर्व के अंतर्गत 93वें अध्याय मेंं 'संजय ने धृतराष्ट्र से अर्जुन द्वारा श्रुतायु, अच्युतायु, नियतायु, दीर्घायु और अम्बष्ठ आदि के वध' का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
अर्जुन का अभीषाह, शूरसेन आदि देशो के सैनिकों के साथ युद्ध
संजय कहते हैं-राजन! काम्बोजराज सुदक्षिण और वीर श्रुतायुध के मारे जाने पर आपके सारे सैनिक कुपित हो बड़े वेग से अर्जुन पर टूट पड़े। महाराज! वहाँ अभीषाह, शूरसेन, शिबि और वसाति देशीय सैनिकगण अर्जुन पर बाणों की वर्षा करने लगे। उस समय पाण्डुकुमार अर्जुन ने उपर्युक्त सेनाओं के छ: हजार सैनिकों तथा अन्य योद्धाओं को भी अपने बाणों द्वारा मथ डाला। जैसे छोटे-छोटे मृग बाघ से डरकर भागते है, उसी प्रकार वे अर्जुन से भयभीत हो वहाँ से पलायन करने लगे। उस समय अर्जुन रणक्षेत्र में शत्रुओं पर विजय पाने की इच्छा से उनका संहार कर रहे थे। यह देख उन भागे हुए सैनिकों ने पुन: लौटकर पार्थ को चारों ओर से घेर लिया। उन आक्रमण करने वाले योद्धाओं के मस्तकों और भुजाओं को अर्जुन ने गाण्डीव धनुष द्वारा छोड़े हुए बाणों से तुरंत ही काट गिराया। वहाँ गिराये हुए मस्तकों से वह रणभूमि ठसाठस भर गयी थी और उस युद्धस्थल में कौओं तथा गीधों की सेना के आ जाने से वहाँ मेघ की छाया-सी प्रतीत होती थी।
श्रुतायु और अच्युतायु का अर्जुन को विर्दीण करना
इस प्रकार जब उन समस्त सैनिकों का संहार होने लगा, तब श्रुतायु तथा अच्युतायु–ये दो वीर क्रोध और अमर्ष में भरकर अर्जुन के साथ युद्ध करने लगे। वे दोनों बलवान, अर्जुन से स्पर्धा रखने वाले, वीर, उत्तम कुल में उत्पन्न और अपनी भुजाओं से सुशोभित होने वाले थे। उन दोनों ने अर्जुन पर दायें-बायें से बाण बरसाना आरम्भ किया। महाराज! वे दोनों वीर महान यश की अभिलाषा रखते हुए आपके पुत्र के लिये अर्जुन के वध की इच्छा रखकर हाथ में धनुष ले बड़ी उतावली के साथ बाण चला रहे थे। जैसे दो मेघ किसी तालाब को भरते हों, उसी प्रकार क्रोध में भरे हुए उन दोनों वीरों ने झुकी हुई गांठ वाले सहस्त्रों बाणों द्वारा अर्जुन को आच्छादित कर दिया। फिर रथियों में श्रेष्ठ श्रुतायु ने कुपित होकर पानीदार तीखी धारवाले तोमर से अर्जुन पर आघात किया। उस बलवान शत्रु के द्वारा अत्यन्त घायल किये हुए शत्रुसूदन अर्जुन उस रणक्षेत्र में श्री कृष्ण को मोहित करते हुए स्वयं भी अत्यन्त मूर्च्छित हो गये। इसी समय महारथी अच्युतायु ने अत्यन्त तीखे शूल के द्वारा पाण्डुकुमार अर्जुन पर प्रहार किया। उसने इस प्रहार द्वारा महामना पाण्डुपुत्र अर्जुन के घाव पर नमक छिड़क दिया। अर्जुन भी अत्यन्त घायल होकर ध्वजदण्ड के सहारे टिक गये। प्रजानाथ! उस समय अर्जुन को मरा हुआ मानकर आपके सारे सैनिक जोर-जोर से सिंहनाद करने लगे। अर्जुन को अचेत हुआ देख भगवान श्रीकृष्ण अत्यन्त संतप्त हो उठे और मन को प्रिय लगने वाले वचनों द्वारा वहाँ उन्हें आश्रवासन देने लगे। तदनन्तर रथियों में श्रेष्ठ श्रुतायु और अच्युतायु ने अपना लक्ष्य सामने पाकर अर्जुन तथा वृष्णिवंशी श्रीकृष्ण पर चारों ओर से बाण वर्षा करके चक्र, कूबर, रथ, अश्व, ध्वज और पताका सहित उन्हें उस रणक्षेत्र में अदृश्य कर दिया। वह अद्भुत-सी बात हो गयी।
अर्जुन द्वारा श्रुतायु और अच्युतायु का वध
भारत! फिर अर्जुन धीर-धीरे सचेत हुए, मानो यमराज के नगर में पहुंकर पुन: वहाँ से लौटे हों। उस समय भगवान श्रीकृष्ण सहित अपने रथ को बाण समूह से आच्छादित और सामने खड़े हुए दोनों शत्रुओं को अग्नि के समान देदीप्यमान देखकर महारथी अर्जुन ने ऐन्द्रास्त्र प्रकट किया। उससे झुकी हुई गांठवाले सहस्त्रों बाण प्रकट होन लगे।[1] उन बाणों ने उन दोनों महाधनुर्धरों को तथा उनके छोड़े हुए सायकों को भी छिन्न-भिन्न कर दिया। अर्जुन के बाणों से टुकड़े-टुकड़े होकर उन शत्रुओं के बाण आकाश में विचरने लगे। अपने बाणों के वेग से शत्रुओं के बाणों को नष्ट करके पाण्डु कुमार अर्जुन ने जहाँ-तहाँ अन्य महारथियों से युद्ध करने के लिये प्रस्थान किया। अर्जुन के उन बाणसमूहों से श्रुतायु और अच्युतायु के मस्तक कट गये। भुजाएं छिन्न-भिन्न हो गयीं। वे दोनों आंधी के उखाड़े हुए वृक्षों के समान ध्राशायी हो गयी। श्रुतायु और अच्युतायुका वह वध समुद्रशोषण के समान सब लोगों को आश्रय में डालने वाला था। उन दोनों के पीछे आने वाले पचास रथियों को मारकर अर्जुन ने श्रेष्ठ-श्रेष्ठ वीरों को चुन-चुनकर मारते हुए पुन: कौरव सेना में प्रवेश किया।[2]
भारत! श्रुतायु तथा अच्युतायु को मारा गया देख उन दोनों के पुत्र नरश्रेष्ठ नियुतायु और दीर्घायु पिता के वध से दुखी हो अत्यन्त क्रोध में भरकर नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करते हुए कुन्तीकुमार अर्जुन का सामना करने के लिये आये। तब अर्जुन ने अत्यन्त कुपित हो झुकी हुई गांठ वाले बाणों द्वारा दो ही घड़ी में उन दोनों को यमराज के घर भेज दिया। जैसे हाथी कमलों से भरे हुए सरोवर को मथ डालता हो, उसी प्रकार आपकी सेनाओं का मन्थन करते हुए पार्थ को आपके क्षत्रिय शिरोमणि योद्धा रोक न सके।
अर्जुन द्वारा कलिंग आदि देशों के सौनिकों का संहार करना
राजन! इसी समय युद्ध विषयक शिक्षा पाये हुए अंग देश के सहस्त्रों गजारोही योद्धाओं ने क्रोध में भरकर हाथियों के समूह द्वारा पाण्डुकुमार अर्जुन को सब ओर से घेर लिया। फिर दुर्योधन की आज्ञा पाकर पूर्व और दक्षिण देशों के कलिंग आदि नरेशों ने भी अर्जुन पर पर्वताकार हाथियों द्वारा घेरा डाल दिया। तब उग्र रुपधारी अर्जुन ने गाण्डीव धनुष से छोड़े हुए बाणों द्वारा उन सारे आक्रमणकारियों के मस्तकों तथा उत्तम भूषण भुषित भुजाओं को भी शीघ्र ही काट डाला। उस समय उन मस्तकों और भुजबंद सहित भुजाओं से आच्छादित हुई वहाँ की भूमि सर्पों से घिरी हुई स्वर्ण प्रस्तरयुक्त भूमि के समान शोभा पा रही थी। बाणों से छिन्न भिन्न हुई भुजाएं और कटे हुए मस्तक इस प्रकार गिरते दिखायी दे रहे थे, मानो वृक्षों से पक्षी गिर रहे हों। सहस्त्रों बाणों से बिंधकर खून की धारा बहाते हुए हाथी वर्षा काल में गेरुमिश्रित जल के झरने बहाने वाले पर्वतों के समान दिखायी देते थी। अर्जुन के तीखे बाणों से मारे जाकर दूसरे-दूसरे म्लेच्छ– सैनिक हाथी की पीठ पर ही लेट गये थे। उनकी नाना प्रकार की आकृति बड़ी विकृत दिखायी देती थी। राजन! नाना प्रकार के वेश धारण करने वाले तथा अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों से सम्पन्न योद्धा अर्जुन के विचित्र बाणों से मारे जाकर अद्भुत शोभा पा रहे थे। उनके सारे अंग खून से लथपथ हो रहे थे। सवारों और अनुचरों सहित सहस्त्रों हाथी अर्जुन के बाणों से आहत हो मुंह से रक्त वमन करते थे। उनकें सम्पूर्ण अंग छिन्न-भिन्न हो रहे थे। बहुत –से हाथी चिग्घाड़ रहे थे, बहुतेरे धराशायी हो गये थे, दूसरे कितने ही हाथी सम्पूर्ण दिशाओं में चक्कर काट रहे थे और बहुत से गज अत्यनत भयभीत हो भागते हुए अपने ही पक्ष के योद्धाओं को कुचल रहे थे। तीक्ष्ण विषवाले सर्पो के समान भंयकर वे सभी गुप्तास्त्रधारी सैनिकों से युक्त थे।[2]
जो आसुरी माया को जानते हैं, जिनकी आकृति अत्यन्त भयंकर है तथा जो भयानक नेत्रों से युक्त हैं एवं जो कौओं के समान काले, दुराचारी, स्त्रीलम्पट और कलहप्रिय होते हैं वे यवन (जनपद), पारद, शक और बाह्लीक भी वहाँ युद्ध के लिये उपस्थित हुए। मतवाले हाथियों के समान पराक्रमी द्राविड तथा नंदिनी गाय से उत्पन्न हुए काल के समान प्रहारकुशल म्लेच्छ भी वहाँ युद्ध कर रहे थे। दार्वातिसार, दादर और पुण्ड्र आदि हजारों लाखों संस्कार शून्य म्लेच्छ वहाँ उपस्थित थे, जिनकी गणना नहीं की जा सकती थी। नाना प्रकार के युद्धों में कुशल वे सभी म्लेच्छगण पाण्डु पुत्र अर्जुन पर तीखे बाणों की वर्षा करके उन्हें आच्छादित करने लगे। तब अर्जुन ने उनके उपर भी तुरंत बाणों की वर्षा प्रारम्भ की। उनकी वह बाण-वृष्टि टिड्डी-दलों की सृष्टि सी प्रतीत होती थी। बाणों द्वारा उस विशाल सेना पर बादलों की छाया-सी करके अर्जुन ने उपने अस्त्र के तेज से मुणिडत, अर्धमुणिडत, जटाधारी, अपवित्र तथा दाढ़ी भरे मुखवाले उन समस्त म्लेच्छों का, जो वहाँ एकत्र थे, संहार कर डाला। उस समय पर्वतों पर विचरने और पर्वतीय कन्दराओं में निवास करने वाले सैकड़ों म्लेचछ संघ अर्जुन के बाणों से विद्ध एवं भयभीत हो रणभूमि में भागने लगे।[3]
अर्जुन के तीखे बाणों से मरकर पृथ्वी पर गिरे हुए उन हाथीसवार और घुड़सवार म्लेच्छों का रक्त कौंए, बुगले और भेड़िये बड़ी प्रसन्नता के साथ पी रहे थे। उस समय अर्जुन ने वहाँ रक्त की एक भयंकर नदी बहा दी, जो प्रलयकाल की नदी के समान डरावनी प्रतीत होती थी। उस में पैदल मनुष्य, घोड़े, रथ और हाथियों को बिछाकर मानो पुल तैयार किया गया था, बाणों की वर्षा ही नौका के समान जान पड़ती थी। केश सवार और घास के समान जान पड़ते थे। उस भयंकर नदी से रक्त प्रवाह की ही तरगड़ें उठ रही थीं। कटी हुई अंगुलियां छोटी-छोटी मछलियों के समान जान पड़ती थीं। हाथी, घोड़े और रथों की सवारी करने वाले राजकुमारों के शरीरों से बहने वाले रक्त से लबालब भरी हुई उस नदी को अर्जुन ने स्वयं प्रकट किया था। उसमें हाथियों की लाशें व्याप्त हो रही थी। जैसे इन्द्र के वर्षा करते समय उंचे-नीचे स्थल का भान नहीं होता है, उसी प्रकार वहाँ की सारी पृथ्वी रक्त की धारा में डुबकर समतल सी जान पड़़ती थी। क्षत्रियशिरोमणि अर्जुन ने वहाँ छ: हजार घुड़सवारों तथा एक हजार श्रेष्ठ शूरवीर क्षत्रियों को मृत्यु के लोक में भेज दिया। विधि पूर्व सुसज्जित किये गये हाथी सहस्त्रों बाणों से बिंधकर वज्र के मारे हुए पर्वतों के समान धराशायी हो रहे थे। जैसे मद की धारा बहाने वाला मतवाला हाथी नरकुल के जंगलों को रौंदता चलता है, उसी प्रकार अर्जुन घोड़े, रथ और हाथियों सहित सम्पूर्ण शत्रुओं का संहार करते हुए रणभूमि में विचर रहे थे। जैसे वायुप्रेरित अग्नि सूखे ईधन, तुण और लताओं से युक्त तथा बहुसंख्यक वृक्षों और लतागुल्मों से भरे हुए जंगल को जलाकर भस्म कर देती है, उसी प्रकार श्र कृष्ण रुपी वायु प्रेरित हो बाणरुपी ज्वालाओं से युक्त पाण्डुपुत्र अर्जुन रुपी अग्नि ने कुपित होकर आपकी सेनारुप वन को दग्ध कर दिया। रथ की बैठकों को सूनी करके धरती पर मनुष्यों की लाशों-का बिछौना करते हुए चापधारी धनंजय उस युद्ध के मैदान में नृत्य-सा कर रहे थे।[3]
अर्जुन द्वारा अम्बष्ठ का वध
क्रोध में भरे हुए धनंजय ने वज्रोपम बाणों द्वारा पृथ्वी को रक्त से आप्लावित करते हुए कौरवी सेना में प्रवेश किया। उस समय सेना के भीतर जाते हुए अर्जुन को श्रुतायु तथा अम्बष्ठ ने रोका। मान्यवर! तब अर्जुन ने कंक की पंखों वाले तीखे बाणों द्वारा विजय के लिये प्रयत्न करने वाले अम्बष्ठ के घोड़ों को शीघ्र ही मार गिराया। फिर दूसरे बाणों से उसके धनुष को भी काटकर पार्थ ने विशेष बल विक्रम का परिचय दिया। तब अम्बष्ठ की आंखें क्रोध से व्याप्त हो गयीं। उसने गदा लेकर रणक्षेत्र में महारथी श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आक्रमण किया।[4]
भारत! तदनन्तर वीर अम्बष्ठ ने प्रहार करने के लिये उधत हो गदा उठाये आगे बढ़कर अर्जुन के रथ को रोक दिया और भगवान श्रीकृष्ण पर गदा से आघात किया। भरतनन्दन! शत्रुवीरों का संहार करने वाले अर्जुन भगवान श्रीकृष्ण को गदा से आहत हुआ देख अम्बष्ठ के प्रति अत्यन्त कुपित हो उठे। फिर तो जैसे बादल उदित हुए सूर्य को ढक लेता है, उसी प्रकार अर्जुन ने समरागड़ण में सोने के पंखवाले बाणों द्वारा गदासहित रथियों में श्रेष्ठ अम्बष्ठ को आच्छादित कर दिया। तत्पचात दूसरे बहुत से बाण मारकर अर्जुन ने महामना अम्बष्ठ की उस गदा को उसी समय चूर-चूर कर दिया। वह अद्भुत-सी घटना हुई। उस गदा को गिरी हुई देख अम्बष्ठ ने दूसरी विशाल गदा ले ली और श्रीकृष्ण तथा अर्जुन पर बारंबार प्रहार किया। तब अर्जुन ने उसकी गदा सहित, इन्द्रध्वज के समान उठी दोनों भुजाओं को क्षुरप्रों से काट डाला और पंख युक्त दूसरे बाण से उसके मस्तक को भी काट गिराया। राजन! यन्त्र द्वारा बन्धन मुक्त होकर गिरे हुए इन्द्रध्वज- के समान वह मरकर पृथ्वी पर धमाके की आवाज करता हुआ गिर पड़ा। उस समय रथियों की सेना में घुसकर सैकड़ों हाथियों और घोड़े से घिरे हुए कुन्तीकुमार अर्जुन बादलों में छिपे हुए सूर्य के समान दिखायी देते थे।[4]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 93 श्लोक 1-21
- ↑ 2.0 2.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 93 श्लोक 22-40
- ↑ 3.0 3.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 93 श्लोक 41-58
- ↑ 4.0 4.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 93 श्लोक 59-69
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| सात्यकि द्वारा दुर्योधन की सेना का संहार
| दुर्योधन का भाइयों सहित पलायन
| सात्यकि द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना का संहार
| दु:शासन का सेना सहित पलायन
| द्रोणाचार्य का दु:शासन को फटकारना
| द्रोणाचार्य द्वारा वीरकेतु आदि पांचालों का वध
| द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न से घोर युद्ध तथा उनका मूर्च्छित होना
| धृष्टद्युम्न का पलायन और द्रोणाचार्य की विजय
| सात्यकि का घोर युद्ध और दु:शासन की पराजय
| कौरव-पांडव सेना का घोर युद्ध
| पांडवों के साथ दुर्योधन का संग्राम
| द्रोणाचार्य द्वारा बृहत्क्षत्र का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा धृष्टकेतु का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा जरासन्धपुत्र सहदेव तथा क्षत्रधर्मा का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा चेकितान की पराजय
| अर्जुन और सात्यकि के प्रति युधिष्ठिर की चिन्ता
| युधिष्ठिर का भीमसेन को अर्जुन और सात्यकि का पता लगाने के लिए भेजना
| भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश
| भीमसेन द्वारा द्रोणाचार्य के सारथि सहित रथ को चूर्ण करना
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीमसेन का द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंकना
| भीमसेन की गर्जना सुनकर युधिष्ठिर का प्रसन्न होना
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को द्यूत का परिणाम दिखाकर युद्ध हेतु वापस भेजना
| युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय
| भीमसेन और कर्ण का घोर युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध
| कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन
| धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन
| भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध
| भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध
| भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध
| पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय
| अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन
| सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध
| सात्यकि का अद्भुत पराक्रम
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना
| सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता
| भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध
| अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद
| भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर
| भूरिश्रवा का आमरण अनशन
| सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण
| वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा
| अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप
| अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध
| कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| अर्जुन का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध
| अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद
| कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय
| अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना
| युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति
| युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन
| दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध
| दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय
| रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध
| भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध
| सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय
| द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध
| अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार
| अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध
| सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत
| कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना
| कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान
| अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना
| पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम
| अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध
| अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध
| अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम
| भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन
| सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश
| कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय
| सात्यकि द्वारा भूरि का वध
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन
| कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय
| शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय
| अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन
| शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय
| वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय
| प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध
| नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय
| शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध
| सात्यकि और कर्ण का युद्ध
| कर्ण की दुर्योधन को सलाह
| शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण
| सात्यकि से दुर्योधन की पराजय
| अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय
| धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय
| दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध
| अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण
| कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय
| कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट
| श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना
| घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध
| घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन
| कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम
| अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन
| भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप
| कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध
| घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना
| कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन
| धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर
| युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना
| उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना
| दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर
| पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध
| धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध
| युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन
| नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य का घोर कर्म
| ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश
| अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा
| द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध
| सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा
| उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना
| कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना
| धृतराष्ट्र का प्रश्न
| अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य
| कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना
| अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन
| भीमसेन के वीरोचित उद्गार
| धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन
| सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना
| भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग
| नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद
| श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा
| भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण
| श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना
| अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना
| अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय
| सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना
| सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध
| अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध
| भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता
| व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना
| व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना
| द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल
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