भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय

महाभारत द्रोण पर्व मेंं जयद्रथवध पर्व के अंतर्गत 131वें अध्याय मेंं धृतराष्ट्र के पूछने पर संजय ने भीमसेन और कर्ण के मध्य हुए युद्ध तथा कर्ण की पराजय का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]

संजय कहते हैं- महाराज! इस प्रकार रोमांचकारी संग्राम छिड़ जाने पर जब सारी सेनाएँ सब ओर से पीड़ित और व्याकुल हो गयीं, तब राधा नन्दन कर्ण युद्ध के लिये पुनः भीमसेन के सामने आया। ठीक उसी तरह, जैसे वन में एक मतवाला हाथी दूसरे मदोन्मत्त हाथी पर आक्रमण करता है।

धृतराष्ट्र द्वारा संजय से प्रश्न पूछना

धृतराष्ट्र ने पूछा - संजय! महाबली कर्ण और भीमसेन ने अर्जुन के रथ के निकट जाकर जो बड़े वेग से युद्ध किया, उनका वह संग्राम कैसा हुआ? भीमसेन ने युद्ध में जब राधा नन्दन महारथी कर्ण को पहले ही जीत लिया था, तब वह पुनः उनका सामना करने के लिये कैसे आया? अथवा भीमसेन भूमण्डल के श्रेष्ठ एवं विख्यात महारथी सूतपुत्र कर्ण से समरांगण में युद्ध करने के लिये कैसे आगे बढ़े? भीष्म और द्रोण से पार पाकर धर्मराज युधिष्ठिर को अब महारथी कर्ण के सिवा दूसरे किसी से भय नहीं रह गया है। पहले जिस महाबाहु राधा नन्दन कर्ण के बल पराक्रम का नित्य चिन्तन करते हुए राजा युधिष्ठिर भय के मारे बहुत वर्षों तक नींद नहीं लेते थे, उसी सूत पुत्र कर्ण के साथ भीमसेन ने सूरभूमि में किस तरह युद्ध किया? जो ब्राह्मण भक्त, पराक्रम सम्पन्न और समर भूमि में कभी पीछे न हटने वाला है, योद्धाओं में श्रेष्ठ उस कर्ण के साथ भीमसेन ने किस प्रकार युद्ध किया ? जो वीर पहले आपस मे भिड़ चुके थे, वे ही महान बल और पराक्रम से सम्पन्न कर्ण और भीमसेन यहाँ पुनः कैसे युद्ध में प्रवृत्त हुए? पहले तो सूत पुत्र कर्ण ने अर्जुन के सिवा अन्य पाण्डवों के प्रति बन्धुत्व दिखाया था और वह दयालु भी है ही, तथापि कुन्ती के वचनों को बारंबार स्मरण करते हुए भी उसने भीमसेन के साथ कैसे युद्ध किया? अथवा शूरवीर भीमसेन ने पहले के किये हुए वैर का स्मरण करके सूत पुत्र कर्ण के साथ उस रण क्षेत्र में किस प्रकार युद्ध किया ?

संजय! मेरा बेटा दुर्योधन सदा यही आशा करता है कि कर्ण संग्राम में समसत पाण्डवों को जीत लेगा। युद्ध स्थल में जिसके ऊपर मेरे मूर्ख पुत्र की विजय की आशा लगी हुई है, उस कर्ण ने भयंकर कर्म करने वाले भीमसेन के साथ किस प्रकार युद्ध किया? तात! जिसका आश्रय लेकर मेरे पुत्रों ने महारथी पाण्डवों के साथ वैर ठाना है, उस सूत पुत्र कर्ण के साथ भीमसेन ने किस प्रकार युद्ध किया ? सूत पुत्र के द्वारा किये गये अनेक अपकारों को स्मरण करके भीमसेन ने उसके साथ किस तरह युद्ध किया? जिस पराक्रमी वीर ने एक मात्र रथ की सहायता से सारी पृथ्वी को जीत लिया, उस सूत पुत्र के साथ रणभूमि में भीमसेन ने किस तरह युद्ध किया ? जो जन्म से ही कवच और कण्डलों के साथ उत्पन्न हुआ था, उस सूत पुत्र के साथ समरांगण में भीमसेन ने किस प्रकार युद्ध किया ? संजय! उन दोनों वीरों में जिस प्रकार युद्ध हुआ और उनमें से जिस एक को विजय प्राप्त हुई, उसका वह सब समाचार मुझे ठीक-ठीक बताओ; क्योंकि तुम इस कार्य में कुशल हो।[1]

कर्ण का भीम को युद्ध के लिये कहना

संजय ने कहा- राजन! भीमसेन ने रथियों मे श्रेष्ठ राधा पुत्र कर्ण को छोड़कर वहाँ जाने की इच्छा की, जहाँ वीर श्रीकृष्ण और अर्जुन विद्यमान थे। महाराज! वहाँ से जाते हुए भीमसेन पर आक्रमण करके राधा पुत्र कर्ण ने उनके ऊपर कंकपत्र युक्त बाणों की उसी प्रकार वर्षा आरम्भ कर दी, जैसे बादल पर्वत पर जल की वर्षा करता है। बलवान अधिरथ पुत्र ने खिलते हुए कमल के समान मुख से हँसकर जाते हुए भीमसेन को युद्ध के लिये ललकारा। कर्ण ने कहा - भीमसेन! तुम्हारे शत्रुओं ने स्वप्न में भी यह नहीं सोचा था कि तुम युद्ध में पीठ दिखाआगे; परंतु इस समय अर्जुन से मिलने के लिये तुम मुझे पीठ क्यों दिखा रहे हो? पाण्डव नन्दन! तुम्हारा यह कार्य कुन्ती के पुत्र के योग्य नहीं है। अतः मेरे सम्मुख रहकर मुझ पर बाणों की वर्षा करो। कर्ण की ओर से रण क्षेत्र में वह युद्ध की ललकार भीमसेन न सह सके। उन्होंने अर्धमण्डल गति से घूमकर सूत पुत्र के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया।[2]

भीम और कर्ण के मध्य युद्ध

महायशस्वी भीमसेन सम्पूर्ण शस्त्रों के चलाने में निपुण, कवचधारी तथा द्वैरथ युद्ध के लिये तैयार कर्ण के ऊपर सीधे जाने वाले बाणों की वर्षा करने लगे। कलह का अन्त करने की इच्छा से महाबली भीमसेन कर्ण को मार डालना चाहते थे और इसीलिये उसे बाणों द्वारा क्षत विक्षत कर रहे थे। वे कर्ण को मारकर उसके अनुगामी सेवकों का भी वध करने की इच्छा रखते थे। माननीय नरेश! शत्रुओं को संताप देने वाले पाण्डु नन्दन भीमसेन कुपित हो अमर्षवश कर्ण पर नाना प्रकार के भयंकर बाणों की वर्षा करने लगे। उत्तम अस्त्रों का ज्ञान रखने वाले सूत पुत्र कर्ण ने अपने अस्त्रों की माया से मतवाले हाथी के समान मस्ती से चलने वाले भीमसेन की उस बाण वर्षा को ग्रस लिया। महाबाहु महाधनुर्धर कर्ण अपनी विद्या द्वारा आचार्य द्रोण के समान यथावत पूजित हो रणक्षेत्र में विचरने लगा। राजन! क्रोध पूर्वक युद्ध करने वाले कुन्ती पुत्र भीमसेन की हँसी उड़ाता हुआ सा कर्ण उनके सामने जा पहुँचा। कुन्ती कुमार भीम युद्ध स्थल में कर्ण की उस हँसी को न सह सके। सब ओर युद्ध करते हुए समसत वीरों को देखते देखते बलवान भीमसेन ने कुपित हो सामने आये हुए कर्ण की छाती में वत्सदन्त नामक बाणों द्वारा उसी प्रकार चोट पहुँचायी, जैसे महावत महान गजराज को अंकुशों द्वारा पीड़ित करता है। तत्पश्चात विचित्र कवच धारण करने वाले सूत पुत्र को सान पर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख वाले तथा अच्छी तरह छोड़े हुए इक्कीस बाणों द्वारा पुनः क्षत विक्षत कर दिया। उधर कर्ण के भीमसेन के सोने की जालियों से आच्छादित हुए वायु के समान वेगशाली घोड़ों को पाँच-पाँच बाणों से बेध दिया। राजन! तदनन्तर आधे निमेष में ही भीमसेन के रथ पर कर्ण द्वारा बाणों को जाल-सा बिछाया जाता दिखायी दिया। महाराज! वहाँ कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा उस समय रथ, ध्वज और सारथि सहित पाण्डु नन्दन भीमसेन आच्छादित हो गये। कर्ण ने चौंसठ बाण मारकर भीमसेन के सुदृढ़ कवच की धज्जियाँ उड़ा दीं। फिर कुपित होकर उसने मर्मभेदी नाराचों से कुन्ती कुमार को अच्छी तरह घायल किया।[2]

महाबाहु भीमसेन कर्ण के धनुष से छूटे हुए उन बाणों की कोई परवा न करके बिना किसी घबराहट के सूत पुत्र के इतने समीप पहुँच गये, मानो उससे सटे जा रहे हों। महाराज! कर्ण ने धनुष से छूटे हुए विषधर सर्प के समान भयंकर बाणों को अपने शरीर पर धारण करते हुए भीमसेन रणक्षेत्र में व्यथित नहीं हुए। तत्पश्चात अच्छी तरह तेज किये हुए बत्तीस तीखे भल्लों से प्रतापी भीमसेन ने समरांगण में कर्ण को भारी चोट पहुँचायी। उधर कर्ण जयद्रथ के वध की इच्छा वाले महाबाहु भीमसेन पर अनायास ही बाणों की बड़ी भारी वर्षा करने लगा। राधा नन्दन कर्ण तो भीमसेन पर कोमल प्रहार करता हुआ रणभूमि में उनके साथ युद्ध करता था; परंतु भीमसेन पहले के वैर को बारंबार स्मरण करते हुए क्रोध पूर्वक उसके साथ जूझ रहे थे। शत्रुओं का नाश करने वाले अमर्षशील भीमसेन कर्ण द्वारा दिखायी जाने वाली कोमलता या ढिलाई को अपने लिये अपमान समझकर उसे सह न सके। अतः उन्होंने भी तुरंत ही उस पर बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। युद्ध स्थल में भीमसेन के द्वारा चलाये हुए वे बाण कूजते हुए पक्षियों के समान वीर कर्ण पर सब ओर से पड़ने लगे। भीमसेन के धनुष से छूटे हुए चमचमाती हुई धर वाले सुवर्णमय पंखों से सुशोभित उन बाणों ने राधा नन्दन कर्ण को उसी प्रकार ढक दिया, जैसे पतिंगे आग को आच्छादित कर लेते हैं। भरतवंशी नरेश! इस प्रकार सब ओर से बाणों द्वारा आच्छादित होते हुए रथियों में श्रेष्ठ कर्ण ने भी भीम पर भयंकर बाण वर्षा आरम्भ कर दी। परंतु समर भूमि में शोभा पाने वाले कर्ण के उन वज्रोपम बाणों को भीमसेन ने अपने पास आने से पहले ही बहुत से भल्लों द्वारा काट गिराया। भरत नन्दन! शत्रुओं का दमन करने वाले सूर्य पुत्र कर्ण ने युद्ध में पुनः बाण वर्षा करके भीमसेन को ढक दिया। भारत! उस समय युद्ध स्थल में बाणों से चिने हुए शरीर वाले भीमसेन को सब लोगों ने कंटकों से युक्त साही के समान देखा। वीर भीमसेन ने कर्ण के धनुष से छूटे और शिला पर तेज किये हुए सुवर्ण पंख युक्त बाणों को समरांगण में अपने शरीर पर उसी प्रकार धारा किया था, जैसे अंशुमाली सूर्य अपनी किरणों को धारण करते हैं। भीमसेन का सारा शरीर खून से लथपथ हो रहा था। वे वसन्त ऋतु में खिले हुए अधिकाधिक पुष्पों से सम्पनन अशोक वृक्ष के समान सुशोभित हो रहे थे।[3]

भीम द्वारा कर्ण की पराजय

महाबाहु भीमसेन रणभूमि में विशाल बाहु कर्ण के उस चरित्र को न सह सके। उस समय क्रोध से उनके नेत्र घूमने लगे। उन्होंने कर्ण पर पचीस नाराच चलाये; उनके लगने से कर्ण छिपे हुए पैरों वाले विषैले सर्पों से युक्त श्वेत पर्वत के समान जान पड़ता था। फिर देवोपम पराक्रमी भीम ने अपने शरीर की परवा न करने वाले सूत पुत्र को उसके मर्म स्थल में छः और आठ बाण मारकर तुरंत ही कर्ण के धनुष को काट दिया। फिर शीघ्रता पूर्वक बाणो का प्रहार करके उसके चारों घोड़ों और सारथि को भी मार डाला। साथ ही सूर्य की किरणों के समान तेजस्वी नाराचों से कर्ण की छाती में भारी आघात किया। जैसे सूर्य की किरणें बादलों को भेदकर सब ओर फैल जाती हैं, उसी प्रकार भीमसेन के बाण कर्ण के शरीर को छेदकर शीघ्र ही धरती में समा गये। यद्यपि कर्ण को अपने पुरुषत्व का बड़ा अभिमान था, तो भी भीमसेन के बाणों से घायल हो धनुष कट जाने पर रथहीन होने के कारण वह बड़ी भारी घबराहट में पड़ गया और दूसरे रथ पर बैठने के लिये वहाँ से भाग निकला।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 131 श्लोक 1-18
  2. 2.0 2.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 131 श्लोक 19-37
  3. 3.0 3.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 131 श्लोक 38-58

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के अपमानित होने का कारण | वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा | अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप | अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | अर्जुन का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध | अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद | कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय | अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन | दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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