- महाभारत द्रोण पर्व मेंं अभिमन्युवध पर्व के अंतर्गत 54वें अध्याय मेंं नारद ने ब्रह्मा द्वारा मृत्यु को दिये वरदान का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
ब्रह्मा-मृत्यु का संवाद तथा ब्रह्मा द्वारा उसे वरदान देना
नारद कहते हैं- राजन! मृत्यु की घोर तपस्या के कारण अविनाशी ब्रह्मा उस समय मन-ही-मन अत्यन्त प्रसन्न हो सौम्य हृदय से प्रीतिपूर्वक होकर मृत्यु से बोले - मृत्यो! तू किसलिये इस प्रकार अत्यन्त कठोर तपस्या कर रही है? तब मृत्यु ने भगवान पितामह से फिर इस प्रकार कहा - देव! प्रभों! सर्वेश्वर! मैं आपसे यही वर पाना चाहती हूँ कि मुझे रोती-चिल्लाती हुई स्वस्थ प्रजाओं का वध न करना पड़े। महाभाग! मैं अधर्म के भय से बहुत डरती हूँ, इसीलिये तपस्या में लगी हुई हूँ। अविनाशी परमेश्वर! मुझ भयभीत अबला को अभय-दान दीजिये। नाथ! में एक निरपराध नारी हूँ और आपके सामने आर्तभाव से याचना करती हूँ, आप मेरे आश्रयदाता हों। तब भूत, भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता भगवान ब्रह्मा ने उससे कहा। मृत्यो! इन प्रजाओं का संहार करने से तुझे अधर्म नहीं होगा। भद्रे! मेरी कही हुई बात किसी प्रकार झूठी नहीं हो सकती। इसलिये कल्याणि! तू चार श्रेणियों मे विभाजित समस्त प्राणियों का संहार कर। सनातन धर्म तुझे सब प्रकार से पवित्र बनाये रखेगा। लोकपाल, यम तथा नाना प्रकार की व्याधियाँ तेरी सहायता करेंगी। मैं और सम्पूर्ण देवता तुझे पुन: वरदान देंगे, जिससे तू पापमुक्त हो अपने निर्मल स्वरूप से विख्यात होगी। महाराज! उनके ऐसा कहने पर मृत्यु हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न करके उस समय पुन: यह वचन बोली। प्रभो! यदि इस प्रकार यह कार्य मेरे बिना नहीं हो सकता तो आपकी आज्ञा मैंने शिरोधार्य कर ली है, परंतु इसके विषय में मैं आपसे जो कुछ कहती हूँ, उसे (ध्यान देकर) सुनिये। लोभ, क्रोध, असूया, ईर्ष्या, द्रोह, मोह, निर्लज्जता और एक-दूसरे के प्रति कही हुई कठोर वाणी– ये विभिन्न दोष ही देहधारियों की देह का भेदन करें।
ब्रह्मा जी ने कहा– मृत्यो! ऐसा ही होगा। तू उत्तम रीति से प्राणियों का संहार कर। शुभे! इससे तुझे पाप नहीं लगेगा और मैं भी तेरा अनिष्ट-चिन्तन नहीं करूँगा। तेरे आँसुओं की बूँदे, जिन्हें मैंने हाथ में ले लिया था, प्राणियों के अपने ही शरीर से उत्पन्न हुई व्याधियाँ बनकर गतायु प्राणियों का नाश करेंगी। तुझे अधर्म की प्राप्ति नहीं होगी; इसलिये तू भय न कर। निश्चय ही, तूझे पाप नहीं लगेगा। तू प्राणियों का धर्म और उस धर्म की स्वामिनी होगी। अत: सदा धर्म में तत्पर रहने वाली और धर्मानुकूल जीवन बिताने वाली धारित्री होकर इन समस्त जीवों के प्राणों का नियन्त्रण कर। काम और क्रोध का परित्याग करके इस जगत के समस्त प्राणियों का संहार कर। ऐसा करने से तुझे अक्षय धर्म की प्राप्ति होगी। मिथ्याचारी पुरुषों को तो उनका अधर्म ही मार डालेगा।[1] तू धर्माचरण द्वारा स्वयं ही अपने आपको पवित्र कर। असत्य का आश्रय लेने से प्राणी स्वयं अपने आपको पाप-पंक में डुबों लेंगे। इसलिये अपने मन में आये हुए काम और क्रोध का त्याग करके तू समस्त जीवों का संहार कर।
नारद द्वारा अकम्पन को समझाना
नारद जी कहते हैं– राजन! वह मृत्यु नाम वाली नारी ब्रह्मा जी के उस उपदेश से और विशेषत: उनके शाप के भय से भीत होकर उनसे बोली– बहुत अच्छा, आपकी आज्ञा स्वीकार है। वही मृत्यु अन्तकाल आने पर काम और क्रोध का परित्याग करके अनासक्त भाव से समस्त प्राणियों के प्राणों का अपहरण करती है। यही प्राणियों की मृत्यु है, इसी से व्याधियों की उत्पति हुई है। व्याधि नाम है रोग का, जिससे प्राणी रूग्ण होता है[2] आयु समाप्त होने पर सभी प्राणियों की मृत्यु इस प्रकार होती है। अत: राजन! तुम व्यर्थ शोक न करो। आयु के अन्त में सारी इन्द्रियाँ प्राणियों के साथ परलोक में जाकर स्थित होती हैं और पुन: उनके साथ ही इस लोक में लौट आती हैं। नृपश्रेष्ठ! इस प्रकार सभी प्राणी देवलोक में जाकर वहाँ देवस्वरूप में स्थित होते हैं तथा वे कर्मदेवता मनुष्यों की भाँति भागों की समाप्ति होने पर पुन: इस लोक में लौट आते हैं। भयंकर शब्द करने वाला महान बलशाली भयानक प्राणवायु प्राणियों के शरीरों का ही भेदन करता है चेतन आत्मा का नहीं, क्योंकि वह सर्वव्यापी, उग्र प्रभावशाली और अनन्त तेज से सम्पन्न है। उसका कभी आवागमन नहीं होता। राजसिंह! सम्पूर्ण देवता भी मृर्त्य (मरणधर्मा) नाम से विभूषित हैं, इसलिये तुम अपने पुत्र के लिये शोक न करो। तुम्हारा पुत्र स्वर्गलोक में जा पहुँचा है और नित्य रमणीय वीर-लोकों में रहकर आनन्द का अनुभव करता है। वह दु:ख का परित्याग करके पुण्यात्मा पुरुषों से जा मिला है। प्राणियों के लिये यह मृत्यु भगवान की ही दी हुई है; जो समय आने पर यथोचित रूप से (प्रजाजनों का) संहार करती है। प्रजावर्ग के प्राण लेने वाली इस मृत्यु को स्वयं ब्रह्मा जी ने ही रचा है। सब प्राणी स्वयं ही अपने आपको मरते हैं। मृत्यु हाथ में डंडा लेकर इनका वध नहीं करती है। अत: धीर पुरुष मृत्यु को ब्रह्माजी का रचा हुआ निश्चित विधान न समझकर मरे हुए प्राणियों के लिये कभी शोक नहीं करते हैं। इस प्रकार ब्रह्माजी की बनायी हुई सारी सृष्टि को ही मृत्यु के वशीभूत जानकर तुम अपने पुत्र के मर जाने से प्राप्त होने वाले शोक का शीघ्र परित्याग कर दो।[3]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 54 श्लोक 26-42
- ↑ उसका स्वास्थ्य भंग होता है।
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 54 श्लोक 43-58
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| दुर्योधन और अर्जुन का युद्ध
| अर्जुन द्वारा दुर्योधन की पराजय
| अर्जुन का कौरव महारथियों के साथ घोर युद्ध
| अर्जुन तथा कौरव महारथियों के ध्वजों का वर्णन
| अर्जुन का नौ कौरव महारथियों के साथ अकेले युद्ध
| द्रोणाचार्य की सेना का पांडव सेना से द्वन्द्व युद्ध
| युधिष्ठिर का द्रोणाचार्य से युद्ध और रणभूमि से पलायन
| क्षेमधूर्ति तथा वीरधन्वा का वध
| निरमित्र तथा व्याघ्रदत्त का वध और दुर्मुख तथा विकर्ण की पराजय
| द्रौपदी के पुत्रों द्वारा शल का वध
| भीमसेन द्वारा अलम्बुष की पराजय
| घटोत्कच द्वारा अलम्बुष का वध
| द्रोणाचार्य और सात्यकि का युद्ध
| युधिष्ठिर का सात्यकि को कौरव सेना में प्रवेश करने का आदेश
| सात्यकि और युधिष्ठिर का संवाद
| सात्यकि की अर्जुन के पास जाने की तैयारी और उनका प्रस्थान
| सात्यकि का भीम को युधिष्ठिर की रक्षा हेतु लौटाना
| सात्यकि का पराक्रम
| सात्यकि का द्रोणाचार्य से युद्ध
| सात्यकि का कृतवर्मा से युद्ध
| धृतराष्ट्र का संजय से विषादयुक्त वचन
| संजय का धृतराष्ट्र को दोषी बताना
| कृतवर्मा का भीमसेन से युद्ध
| कृतवर्मा का शिखण्डी से युद्ध
| सात्यकि द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| सात्यकि द्वारा त्रिगर्तों की गजसेना का संहार
| सात्यकि द्वारा जलसंध का वध
| सात्यकि का पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्मा की पुन: पराजय
| सात्यकि और द्रोणाचार्य का घोर युद्ध
| सात्यकि द्वारा द्रोण की पराजय और कौरव सेना का पलायन
| सात्यकि द्वारा सुदर्शन का वध
| सात्यकि और उनके सारथि का संवाद
| सात्यकि द्वारा काम्बोजों और यवन आदि सेना की पराजय
| सात्यकि द्वारा दुर्योधन की सेना का संहार
| दुर्योधन का भाइयों सहित पलायन
| सात्यकि द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना का संहार
| दु:शासन का सेना सहित पलायन
| द्रोणाचार्य का दु:शासन को फटकारना
| द्रोणाचार्य द्वारा वीरकेतु आदि पांचालों का वध
| द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न से घोर युद्ध तथा उनका मूर्च्छित होना
| धृष्टद्युम्न का पलायन और द्रोणाचार्य की विजय
| सात्यकि का घोर युद्ध और दु:शासन की पराजय
| कौरव-पांडव सेना का घोर युद्ध
| पांडवों के साथ दुर्योधन का संग्राम
| द्रोणाचार्य द्वारा बृहत्क्षत्र का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा धृष्टकेतु का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा जरासन्धपुत्र सहदेव तथा क्षत्रधर्मा का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा चेकितान की पराजय
| अर्जुन और सात्यकि के प्रति युधिष्ठिर की चिन्ता
| युधिष्ठिर का भीमसेन को अर्जुन और सात्यकि का पता लगाने के लिए भेजना
| भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश
| भीमसेन द्वारा द्रोणाचार्य के सारथि सहित रथ को चूर्ण करना
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीमसेन का द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंकना
| भीमसेन की गर्जना सुनकर युधिष्ठिर का प्रसन्न होना
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को द्यूत का परिणाम दिखाकर युद्ध हेतु वापस भेजना
| युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय
| भीमसेन और कर्ण का घोर युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध
| कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन
| धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन
| भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध
| भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध
| भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध
| पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय
| अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन
| सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध
| सात्यकि का अद्भुत पराक्रम
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना
| सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता
| भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध
| अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद
| भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर
| भूरिश्रवा का आमरण अनशन
| सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण
| वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा
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| अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध
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| अर्जुन का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध
| अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद
| कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय
| अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा
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कौरव-पांडव सेना का युद्ध
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| सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध
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| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध
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| अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय
| धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय
| दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध
| अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण
| कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय
| कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट
| श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना
| घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध
| घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन
| कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम
| अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन
| भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप
| कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध
| घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना
| कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन
| धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर
| युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना
| उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना
| दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर
| पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध
| धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध
| युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन
| नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य का घोर कर्म
| ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश
| अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा
| द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध
| सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा
| उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना
| कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना
| धृतराष्ट्र का प्रश्न
| अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य
| कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना
| अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन
| भीमसेन के वीरोचित उद्गार
| धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन
| सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना
| भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग
| नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद
| श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा
| भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण
| श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना
| अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना
| अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय
| सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना
| सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध
| अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध
| भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता
| व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना
| व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना
| द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल
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