अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद

महाभारत द्रोण पर्व मेंं जयद्रथवध पर्व के अंतर्गत 141वें अध्याय मेंं कृष्ण और अर्जुन संवाद तथा अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा को उच्छेदित करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]

कृष्ण का अर्जुन से संवाद

संजय कहते है- भारत! इस प्रकार सात्यकि और भूरिश्रवा परस्पर जूझते हुए मल्ल-युद्ध की जो बत्तीस कलाएं हैं, उनका प्रदर्शन करने लगे। तदन्तर जब अस्त्र-शस्त्र नष्ट हो जाने पर सात्यकि युद्ध कर रहे थे, उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा- पार्थ! रण में समस्त धनुर्धारियों में श्रेष्ठ इस सात्यकि की ओर देखो। यह रथहीन होकर युद्ध कर रहा है। कुन्तीनन्दन! देखो, सात्यकि शिथिल हो गया है। इसकी रक्षा करो। भारत! पाण्डुनन्दन! तुम्हारे पीछे-पीछे यह कौरव-सेना का व्यूह भेद कर भीतर घुस आया है और भरतवंश के प्रायः सभी महापराक्रमी योद्धाओं के साथ युद्ध कर चुका है। दुर्योधन की सेना में जो मुख्य योद्धा और प्रधान महारथी थे, वे सैकड़ों और हजारों की संख्या में इस वृष्णिवंशी के वीर के हाथ से मारे गये हैं। अर्जुन! यहाँ आता हुआ योद्धाओं में श्रेष्ठ सात्यकि बहुत थक गया है, तो भी उसके साथ युद्ध करने की इच्छा से यज्ञों में पर्याप्त दक्षिणा देने वाले भूरिश्रवा आये हैं। यह युद्ध समान योग्यता का नहीं है।

राजन! इसी समय क्रोध में भरे हुए रणदुर्मद भूरिश्रवा ने उद्योग करके सात्यकि पर उसी प्रकार आघात किया, जैसे एक मतवाला हाथी दूसरे मदोन्मत्त हाथी पर चोट करता है। नरेश्वर! समरांगण में रथ पर बैठे हुए क्रोध भरे योद्धाओं में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण और अर्जुन वह युद्ध देख रहे थे। तब महाबाहु श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा-पार्थ! देखो, वृष्णि और अंधकवंश का वह श्रेष्ठ वीर भूरिश्रवा के वश में हो गया है।[1] ‘वह अत्यन्त दुष्कर कर्म करके परिश्रम से चूर-चूर हो पृथ्वी पर गिर गया है। अर्जुन! वीर सात्यकि तुम्हारा ही शिष्य है। उसकी रक्षा करो। पुरुषसिंह अर्जुन! प्रभो! यह श्रेष्ठ वीर तुम्हारे लिये यज्ञशील भूरिश्रवा के अधीन न हो जाय, ऐसा शीघ्र प्रयत्न करो।

तब अर्जुन ने प्रसन्नचित्त होकर भगवान श्रीकृष्ण से कहा- भगवन! देखिये, जैसे कोई सिंहों का यूथपति वन में मतवाले महान गज के साथ क्रीड़ा कर, उसी प्रकार कुरुकुल शिरोमणि भूरिश्रवा वृष्णिवंश के प्रमुख वीर सात्यकि के साथ रणक्रीड़ा कर रहे हैं।

भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि को विर्दीण करना

संजय कहते हैं- भरतश्रेष्ठ! पाण्डुनन्दन अर्जुन इस प्रकार कह ही रहे थे कि सैनिकों में महान हाहाकार मच गया। महाबाहु भूरिश्रवा ने सात्यकि को उठाकर धरती पर पटक दिया। जैसे सिंह किसी मतवाले हाथी को खींचता है, उसी प्रकार प्रचुर दक्षिणा देने वाले कुरुश्रेष्ठ भूरिश्रवा युद्ध स्थल में सात्वत वंश के प्रमुख वीर सात्यकि को घसीटते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे। तदनन्तर भूरिश्रवा ने रणभूमि में तलवार को म्यान से बाहर निकाल कर सात्यकि की चुटिया पकड़ ली और उनकी छाती में लात मारी। फिर उसने उनके कुण्डलमण्डित मस्तक को धड़ से अलग कर देने का उद्योग आरम्भ किया। उस समय सात्यकि भी बड़ी शीघ्रता के साथ अपने मस्तक को घुमाने लगे। भारत! जैसे कुम्हार छेद में डंडा डालकर अपनी चाक को घुमाता है, उसी प्रकार केश पकड़े हुए भूरिश्रवा के बांह के साथ ही सात्यकि अपने सिर को घुमाने लगे।[2]

कृष्ण का अर्जुन से सात्यकि की रक्षा के लिये कहना

राजन! इस प्रकार युद्धभूमि में केश खींचे जाने के कारण सात्यकि को कष्ट पाते देख भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से पुनः इस प्रकार बोले- महाबाहो! देखो, वृष्णि और अन्धकवंश का वह सिंह भूरिश्रवा के वश में पड़ गया है। यह तुम्हारा शिष्य है और धनुर्विद्या में तुमसे कम नहीं है। पार्थ! पराक्रम मिथ्या है, जिसका आश्रय लेने पर भी वृष्णि वंशी सत्यपराक्रमी सात्यकि से रणभूमि में भूरिश्रवा बढ़ गये है।

अर्जुन द्वारा सात्यकि की भूरिश्रवा से रक्षा करना

भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डुपुत्र महाबाहु अर्जुन ने मन ही मन युद्धस्थल में भूरिश्रवा की प्रशंसा की।। कुरुकुल की कीर्ति बढ़ाने वाले भूरिश्रवा इस युद्धस्थल में सात्वत कुल के श्रेष्ठ वीर सात्यकि को घसीटते हुए खेल सा कर रहे हैं और बारंबार मेरा हर्ष बढ़ा रहे हैं। जैसे सिंहवन में किसी महान गजराज को खींचता है, उसी प्रकार ये भूरिश्रवा वृष्णिवंश के प्रमुख वीर सात्यकि को खींच रहे है, उसे मार नहीं रहे हैं। राजन! इस प्रकार मन ही मन उस कुरुवंशी वीर की प्रशंसा करके महाबाहु कुन्तीकुमार अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा- प्रभो! मेरी दृष्टि सिन्धुराज जयद्रथ पर लगी हुई थी। इसलिये मैं सात्यकि को नहीं देख रहा था; परंतु अब मैं इस यदुवंशी वीर की रक्षा के लिये यह दुष्कर कर्म करता हूं’। ऐसा कहकर भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा का पालन करते हुए पाण्डुनन्दन अर्जुन ने गाण्डीव धनुष पर एक तीखा क्षुरप्र रखा। अर्जुन की भुजाओं से छोड़े गये उस क्षुरप्र ने आकाश से गिरी हुई बहुत बड़ी उल्का के समान उन यज्ञशील भूरिश्रवा के बाजूबंद विभूषित (दाहिनी) भुजा को खग सहित काट गिराया।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 142 श्लोक 37-53
  2. 2.0 2.1 महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 142 श्लोक 54-72

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प्रतिज्ञा पर्व
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जयद्रथवध पर्व
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कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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