- महाभारत द्रोण पर्व में जयद्रथवध पर्व के अंतर्गत 121वें अध्याय मेंं संजय ने सात्यकि का पाषाणयोधी म्लेच्छों के साथ युद्ध तथा सात्यकि के द्वारा उनकी सेना के संहार का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
धृतराष्ट्र द्वारा सात्यकि के विषय में प्रश्न करना
धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! मेरी विशाल सेना को रौंद कर जाते हुए सात्यकि और अर्जुन को देखकर मेरे उन निर्लज्ज पुत्रों ने क्या किया। वे सब-के सब मरना चाहते थे। उस समय युद्धस्थल में अर्जुन के समान ही सात्यकि का चरित्र देखकर उनकी कैसी धारणा हुई थी। वे सेना के बीच में परास्त होकर अपने क्षात्रबल का क्या वर्णन करेंगे समरांगण में महायशस्वी सात्यकि किस प्रकार सारी सेना को लांघकर आगे बढ़ गये। संजय! युद्धस्थल में मेरे पुत्रों के जीते जी शिनिनन्दन सात्यकि किस तरह आगे जा सके संजय! यह सब मुझे बताओ। तात! यह मैं तुम्हारे मुंह से अत्यंत विचित्र बात सुन रहा हूँ कि शत्रुदल के उन बहुसंख्यक महारथियों के साथ एकमात्र सात्यकि का ऐसा संग्राम हुआ। मैं अपने भाग्यहीन पुत्र के लिये सब कुछ विपरीत ही मान रहा हूं; क्योंकि समरांगण में अकेले सात्यकि ने बहुत से महारथियों का वध कर डाला है। संजय! और सब पाण्डव तो दूर रहें, क्रोध में भरे हुए अकेले सात्यकि के लिये भी मेरी सेना पर्याप्त नहीं है। जैसे सिंह पशुओं को मार डालता है, उसी प्रकार सात्यकि विचित्र युद्ध करने वाले विद्वान द्रोणाचार्य को भी युद्ध में परास्त करके मेरे पुत्रों का वध कर डालेंगे। कृतवर्मा आदि बहुत से शूरवीर समरांगण में प्रयत्न करते ही रह गये; परंतु पुरुषप्रवर सात्यकि मारे न जा सके। शिनि के महायशस्वी पौत्र सात्यकि ने वहाँ जैसा युद्ध किया, वैसा तो अर्जुन ने भी नही किया था। संजय ने कहा- राजन! आपकी खोटी सलाह और दुर्योधन की काली करतूत से यह सब कुछ हुआ है। भारत! मैं जो कुछ कहता हूं, उसे सावधान होकर सुनिये।[1]
सात्यकि द्वारा भिन्न भिन्न जातियों की सेना संहार
आपके पुत्र की आज्ञा से युद्ध के लिये अत्यन्त क्रूरतापूर्ण निश्चय करके परस्पर शपथ ले वे सभी पराजित योद्धा पुन: लौट आये। तीन हजार घुड़सवार और हाथीसवार दुर्योधन को अपना अगुआ बनाकर चले। उनके साथ शक, काम्बोज, बाह्लीक, यवन, पारद, कुलिन्द, तंगण, अम्बष्ठ, पैशाच, बर्बर तथा पर्वतीय योद्धा भी थे। राजेन्द्र! वे सब-के-सब कुपित हो हाथों में पत्थर लिये सात्यकि की ओर उसी प्रकार दौड़े, जैसे फतिंगे जलती हुई आग पर टूटे पड़ते हैं। राजन! पत्थरों द्वारा करने वाले पर्वतीयों के पांच सौ शूरवीर रथी लिये सुसज्जित हो सात्यकि पर चढ़ आये। तत्पश्चात एक हजार रथी, सौ महारथी, एक हजार हाथी और दो हजार घुड़सवारों के साथ बहुत से महारथी और असंख्य पैदल सैनिक सात्यकि पर नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करते हुए टूट पड़े। भरतवंशी महाराज! ‘इस सात्यकि को मार डालो’। इस प्रकार उन समस्त सैनिकों को प्रेरित करते हुए दु:शासन ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। वहाँ हमने सात्यकि का अद्भुत चरित्र देखा कि वे बिना किसी घबराहट के अकेले ही बहुसंख्यक योद्धाओं के साथ युद्ध कर रहे थे। उन्होंने रथ सेना और गज सेना का तथा उन समस्त घुड़ सवारों एवं लुटेरे म्लेच्छों का भी सब प्रकार से संहार कर डाला। वहाँ चूर-चूर हुए चक्कों, टूटे हुए उत्तमोत्तम आयुधों, टूक-टूक हुए धुरों, खण्डित हुए ईषादण्डों और बन्धुरों, मथे गये हाथियों, तोड़कर गिराये हुए ध्वजों, छिन्न-भिन्न कवचों और विनष्ट हुए सैनिकों की लाशों से वहाँ की पृथ्वी पट गयी थी।[1] माननीय भरतनरेश! योद्धाओं के हारों, आभूषणों, वस्त्रों और अनुकर्षों से आच्छादित हुई वहाँ की भूमि तारों से व्याप्त हुए आकाश के समान जान पड़ती थी। भारत! अज्जन और वामन नामक दिग्गज के कुल में उत्पन्न हुए पर्वताकार श्रेष्ठ गजराज भी वहाँ धराशायी हो गये थे। नरेश्वर! सुप्रतीक, महापद्य, ऐरावत तथा अन्य पुण्डरीक, पुष्पदन्त और सार्वभौम- (इन) दिग्गजों के कुलों में उत्पन्न हुए बहुतेरे दंतार हाथी भी वहाँ धरती पर लोट रहे थे। राजन! वहाँ सात्यकि ने वनायु, काम्बोज (काबुल) और बाह्लीक देशों में उत्पन्न हुए श्रेष्ठ अश्वों तथा पहाड़ी घोड़ों को भी मार गिराया।[2]
दु:शासन द्वारा म्लेच्छों को प्रेरित करना
शिनि के उस वीर पौत्र ने अनेक देशों में उत्पन्न हुए विभिन्न जाति के सैकड़ों और हजारों हाथियों का भी संहार कर डाला। वे हाथी जब काल के गाल में जा रहे थे, उस समय दु:शासन ने लूट-पाट करने वाले म्लेच्छों से इस प्रकार कहा- ‘धर्म को न जानने वाले योद्धाओं! इस तरह भाग जाने से तुम्हें क्या मिलेगा लौटो और युद्ध करो। इतने पर भी उन्हें जोर जोर से भागते देख आपके पुत्र दु:शासन ने पत्थरों द्वारा युद्ध करने वाले शूरवीर पर्वतीयों को आज्ञा दी। वीरो! तुम लोग प्रस्तरों द्वारा युद्ध करने में कुशल हो। सात्यकि को इस कला का ज्ञान नही है। प्रस्तर युद्ध को न जानते हुए भी युद्ध की इच्छा रखने वाले इस शत्रु को तुम लोग मार डालो। इसी प्रकार समस्त कौरव भी प्रस्तरयुद्ध में प्रवीण नहीं है। अत: तुम डरो मत। आक्रमण करो। सात्यकि तुम्हें नहीं पा सकता है।' जैसे मन्त्री राजा के पास जाते हैं, उसी प्रकार वे पाषाणयोधी समस्त पर्वतीय नरेश सात्यकि की ओर दौड़े। वे पर्वत निवासी योद्धा हाथी के मस्तक के समान बड़े-बड़े प्रस्तर हाथ में लेकर समरांगण में युयुधान के सामने युद्ध के लिये तैयार होकर खड़े हो गये।[2]
सात्यकि द्वारा म्लेच्छों की सेना का विध्वंश
आपके पुत्र दु:शासन से प्रेरित होकर सात्यकि के वध की इच्छा रखने वाले अन्य बहुतेरे सैनिकों ने भी क्षेपणीयास्त्र उठा कर सब ओर से सात्यकि की सम्पूर्ण दिशाओं को अवरुद्ध कर लिया। प्रस्तर युद्ध की इच्छा रखने वाले उन योद्धाओं के आक्रमण करते ही सात्यकि ने तेज किये हुए बाणों का संधान करके उन्हें उन पर चलाया। पर्वतीय सैनिकों द्वारा की हुई उस भयंकर पाषाण वर्षा को शिनिप्रवर सत्यकि ने अपने सर्पतुल्य नाराचों द्वारा छिन्न-भिन्न कर दिया। माननीय नरेश। जुगनुओं की जमातों के समान उद्भासित होने वाले उन प्रस्तरचूणों से प्राय: सारी सेनाएं आहत हो हाहाकार करने लगीं। राजन! तदनन्तर बड़े-बड़े प्रस्तर खण्ड उठाये हुए पांच सौ शूरवीर अपनी भुजाओं के कट जाने से धरती पर गिर पड़े। फिर एक हजार दूसरे योद्धा तथा एक लाख अन्य सैनिक सात्यकि तक पहुँचने भी नहीं पाये थे कि अपने हाथ में लिये शिलाखण्डों से कटी हुई बाहुओं के साथ ही धराशायी हो गये। सात्यकि के भल्ल से चूर-चूर हुए शिलाखण्डों द्वारा मारे गये म्लेच्छ प्राणशून्य होकर जहां-तहाँ पड़े थे। महामना सात्यकि द्वारा समरभूमि में मारे जाते हुए वे म्लेच्छ सैनिक उन पर बड़ी भयंकर पत्थरों की वर्षा करते थे। वे पाषाणों द्वारा युद्ध करने वाले शूरवीर विजय के लिये यत्नशील होकर रणक्षेत्र में डटे हुए थे। उनकी संख्या अनेक सहस्त्र थी; परंतु सात्यकि ने उन सबका संहार कर डाला। वह एक अद्भुत-सी घटना हुई। तदनन्तर पुन: हाथ में लोहे के गोले और त्रिशूल लिये मुंह फैलाये हुए दरद, तंगण, खस, लम्पाक और कुलिन्द देशीय म्लेच्छों ने सात्यकि पर चारों ओर से पत्थर बरसाने आरम्भ किये; परंतु प्रतीकार करने में निपुण सात्यकि ने अपने नाराचों द्वारा उन सबको छिन्न-भिन्न कर दिया। [2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 121 श्लोक 1-22
- ↑ 2.0 2.1 2.2 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 121 श्लोक 23-41
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| भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध
| भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध
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| सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध
| सात्यकि का अद्भुत पराक्रम
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| भूरिश्रवा का आमरण अनशन
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| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण
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| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत
| कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना
| कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान
| अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना
| पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम
| अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध
| अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध
| अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम
| भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन
| सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश
| कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय
| सात्यकि द्वारा भूरि का वध
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन
| कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय
| शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय
| अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन
| शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय
| वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय
| प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध
| नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय
| शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध
| सात्यकि और कर्ण का युद्ध
| कर्ण की दुर्योधन को सलाह
| शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण
| सात्यकि से दुर्योधन की पराजय
| अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय
| धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय
| दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध
| अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण
| कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय
| कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट
| श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना
| घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध
| घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन
| कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम
| अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन
| भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप
| कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध
| घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना
| कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन
| धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर
| युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना
| उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना
| दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर
| पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध
| धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध
| युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन
| नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य का घोर कर्म
| ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश
| अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा
| द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध
| सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा
| उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना
| कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना
| धृतराष्ट्र का प्रश्न
| अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य
| कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना
| अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन
| भीमसेन के वीरोचित उद्गार
| धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन
| सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना
| भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग
| नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद
| श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा
| भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण
| श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना
| अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना
| अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय
| सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना
| सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध
| अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध
| भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता
| व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना
| व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना
| द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल
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