अभिमन्यु की मृत्यु के कारण अर्जुन का विषाद

महाभारत द्रोण पर्व मेंं प्रतिज्ञा पर्व के अंतर्गत 72वें अध्याय मेंं 'संजय ने अभिमन्यु के वध के कारण अर्जुन के विषाद करने' का वर्णन दिया है, जो इस प्रकार है[1]-

संजय द्वारा अर्जुन और कृष्ण के संवाद का वर्णन

धृतराष्‍ट्र ने पूछा– संजय! जब अर्जुन संशप्‍तकों के साथ युद्ध कर रहे थे, जब बलवानों में श्रेष्‍ठ बालक अभिमन्‍यु मारा गया और जब महर्षियों में श्रेष्ठ व्‍यास (युधिष्ठिर को सान्‍त्‍वना देकर) चले गये, तब शोक से व्‍याकुल चित्त वाले युधिष्ठिर और अन्‍य पाण्‍डवों ने क्‍या किया? कपिध्‍वज अर्जुन संशप्‍तकों की ओर से कैसे लौटे तथा किसने उनसे कहा कि तुम्‍हारा अग्नि के समान तेजस्‍वी पुत्र सदा के लिये शान्‍त हो गया। इन सब बातों को तुम यथार्थ रूप से मुझे बताओ। संजय बोले– भरतश्रेष्‍ठ! प्राणधारियों का संहार करने वाले उस भयंकर दिन के बीत जाने पर जब सूर्यदेव अस्‍तांचल को चले गये और संध्‍याकाल उपस्थित हुआ, उस समय समस्‍त सैनिक जब शिबिर में विश्राम के लिये चल दिये, तब विजयशील श्रीमान कपिध्‍वज अर्जुन अपने दिव्यास्त्रों द्वारा संशप्‍तक समूहों का वध करके अपने उस विजयी रथ पर बैठे हुए शिविर की ओर चले। चलते-चलते ही वे अश्रुगद्गदकण्‍ठ हो भगवान गोविन्‍द से इस प्रकार बोले- ‘केशव! न जाने क्‍यों आज मेरा हृदय धड़क रहा है, वाणी लड़खड़ा रही है, अनिष्‍टसूचक बायें अंग फड़कर रहे हैं और शरीर शिथिल होता जा रहा है। मेरे हृदय में अनिष्‍ट की चिन्‍ता घुसी हुई है, जो किसी प्रकार वहाँ से निकलती ही नहीं है। पृथ्‍वी पर तथा सम्‍पूर्ण दिशाओं में होने वाले भयंकर उत्‍पात मुझे डरा रहे हैं। ये उत्‍पात अनेक प्रकार के दिखायी देते हैं और सब-के-सब भारी अमंगल की सूचना दे रहे हैं। क्‍या मेरे पूज्‍य भ्राता राजा युधिष्ठिर अपने मंत्रियों सहित सकुशल होंगे?’

भगवान श्रीकृष्‍ण बोले- 'अर्जुन! शोक न करो। मुझे स्‍पष्‍ट जान पड़ता है कि मंत्रियों सहित तुम्‍हारे भाई का कल्‍याण ही होगा। इस अपशकुन के अनुसार कोई दूसरा ही अनिष्‍ट हुआ होगा।' संजय कहते हैं– राजन! तदनन्‍तर वे दोनों वीर उस वीर संहारक रणभूमि में संध्‍या-वंदन करके पुन: रथ पर बैठकर युद्धसम्‍बन्‍धी बातें करते हुए आगे बढ़े। फिर श्रीकृष्‍ण और अर्जुन जो अत्‍यन्‍त दुष्‍कर कर्म करके आ रहे थे, अपने शिविर के निकट आ पहुँचे। उस समय वह शिविर आनन्‍द शून्‍य और श्रीहीन दिखायी देता था। अपनी छावनी को विध्‍वस्‍त हुई-सी देखकर शत्रुवीरों का संहार करने वाले अर्जुन का हृदय चिन्तित हो उठा। अत: वे भगवान श्रीकृष्‍ण से इस प्रकार बोले- ‘जनार्दन! आज इस शिविर में मांगलिक बाजे नहीं बज रहे हैं। दुन्‍दुभि-नाद तथा तुरही के शब्‍दों के साथ मिली हुई शंखध्‍वनि भी नहीं सुनायी देती है। ढाक और करतार की ध्‍वनि के साथ आज वीणा भी नहीं बज रही है। मेरी सेनाओं में वन्‍दीजन न तो मंगलगीत गा रहे हैं और न स्‍तुतियुक्‍त मनोहर श्‍लोकों का ही पाठ करते हैं। मेरे सैनिक मुझे देखकर नीचे मुख किये लौट जाते हैं। पहले की भाँति अभिवादन करके मुझसे युद्ध का समाचार नहीं बता रहे हैं। माधव! क्‍या आज मेरे भाई सकुशल होंगे? आज इन स्‍वजनों को व्‍याकुल देखकर मेरे हृदय की आशंका नहीं दूर होती है। दूसरों को मान देने वाले अच्‍युत श्रीकृष्‍ण! राजा द्रुपद, विराट तथा मेरे अन्‍य सब योद्धाओं का समुदाय तो सकुशल होगा न। आज प्रतिदिन की भाँति सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु अपने भाइयों के साथ हर्ष में भरकर हँसता हुआ-सा युद्ध से लौटते हुए मेरी उचित अगवानी करने नहीं आ रहा है (इसका क्‍या कारण है?)'[1]

अर्जुन का विषाद करना

संजय कहते हैं– राजन! इस प्रकार बातें करते हुए उन दोनों ने शिविर में पहुँचकर देखा कि पाण्‍डव अत्‍यन्‍त व्‍याकुल और हतोत्‍साह हो रहे हैं। भाइयों तथा पुत्रों को इस अवस्‍था में देख और सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु को वहाँ न पाकर कपिध्‍वज अर्जुन का मन अत्‍यन्‍त उदास हो गया तथा वे इस प्रकार बोले[1]- ‘आज आप सभी लोगों के मुख की कान्ति अप्रसन्‍न दिखायी दे रही है, इधर मैं अभिमन्‍यु को नहीं देख पाता हूँ और आप लोग भी मुझसे प्रसन्‍नतापूर्वक वार्तालाप नहीं कर रहे हैं। मैंने सुना है कि आचार्य द्रोण ने चक्रव्‍यूह की रचना की थी। आप लोगों में से बालक अभिमन्‍यु के सिवा दूसरा कोई उस व्‍यूह का भेदन नहीं कर सकता था। परंतु मैंने उसे उस व्‍यूह से निकलने का ढंग अभी नहीं बताया था। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ कि आप लोगों ने उस बालक को शत्रु के व्‍यूह में भेज दिया हो। शत्रुवीरों का संहार करने वाला महाधनुर्धर सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु युद्ध में शत्रुओं के उस व्‍यूह का अनेकों वार भेदन करके अन्‍त में वहीं मारा तो नहीं गया। पर्वतों में उत्‍पन्‍न हुए सिंह के समान लाल नेत्रों वाले, श्रीकृष्‍णतुल्‍य पराक्रमी महाबाहु अभिमन्‍यु के विषय में आप लोग बतावें। वह युद्ध में किस प्रकार मारा गया? इन्‍द्र के पौत्र तथा मुझे सदा प्रिय लगने वाले सुकुमार शरीर महाधनुर्धर अभिमन्‍यु के विषय में बताइये। वह युद्ध में कैसे मारा गया? सुभद्रा और द्रौपदी के प्‍यारे पुत्र अभिमन्‍यु को, जो श्रीकृष्‍ण और माता कुन्‍ती का सदा दुलारा रहा है, किसने काल से मोहित होकर मारा है? वृष्णिकुल के वीर महात्‍मा केशव के समान पराक्रमी, शास्‍त्रज्ञ और महत्त्वशाली अभिमन्‍यु युद्ध में किस प्रकार मारा गया है?[2]

सुभद्रा के प्राणप्‍यारे शूरवीर पुत्र को, जिसको मैंने सदा लाड़-प्‍यार किया है, यदि नहीं देखूँगा तो मैं भी यमलोक चला जाऊँगा। जिसके केशप्रान्‍त कोमल और घुँघराले थे, दोनों नेत्र मृगछौने के समान चंचल थे, जिसका पराक्रम मत वाले हाथी के समान और शरीर नूतन शालवृक्ष के समान ऊँचा था, जो मुसकराकर बातें करता था, जिसका मन शान्‍त था, जो सदा गुरुजनों की आज्ञा का पालन करता था, बाल्‍यावस्‍था में भी जिसके पराक्रम की कोई तुलना नहीं थी, जो सदा प्रिय वचन बोलता और किसी से ईर्ष्‍या-द्वेष नहीं रखता था, जिसमें महान उत्‍साह भरा था, जिसकी भुजाएँ बड़ी-बड़ी और दोनों नेत्र विकसित कमल के समान सुन्‍दर एवं विशाल थे, जो भक्‍तजनों पर दया करता, इन्द्रियों को वश में रखता और नीच पुरुषों का साथ कभी नहीं करता था, जो कृतज्ञ, ज्ञानवान, अस्‍त्र-विद्या में पारंगत, युद्ध से मुँह न मोड़ने वाला, युद्ध का अभिनन्‍दन करने वाला तथा सदा शत्रुओं का भय बढ़ाने वाला था, जो स्‍वजनों के प्रिय और हित में तत्‍पर तथा अपने पितृकुल की विजय चाहने वाला था, संग्राम में जिसे कभी घबराहट नहीं होती थी और जो शत्रु पर पहले प्रहार नहीं करता था, अपने उस पुत्र बालक अभिमन्‍यु को यदि नहीं देखूँगा तो मैं भी यमलोक की राह लूँगा। रथियों के गणना होते समय जो महारथी गिना गया था, जिसे युद्ध में मेरी अपेक्षा ड्यौढ़ा समझा जाता था तथा अपनी भुजाओं से सुशोभित होने वाला जो तरुण वीर प्रद्युम्न को, श्रीकृष्‍ण को और भी सदैव प्रिय था, उस पुत्र को यदि मैं नहीं देखूँगा तो यमराज के लोक में चला जाऊँगा। जिसकी नासिका, ललाट प्रान्‍त, नेत्र, भौंह तथा ओष्‍ठ- ये सभी परम सुन्‍दर थे, अभिमन्‍यु के उस मुख को न देखने पर मेरे हृदय में क्‍या शान्ति होगी?[2]


अभिमन्‍यु का स्‍वर वीणा की ध्‍वनि के समान सुखद, मनोहर तथा कोयल की काकली के तुल्‍य मधुर था। उसे न सुनने पर मेरे हृदय को क्‍या शान्ति मिलेगी? उसके रूप की कहीं तुलना नहीं थी। देवताओं के लिये भी वैसा रूप दुर्लभ है। यदि वीर अभिमन्‍यु के उस रूप को नहीं देख पाता हूँ तो मेरे हृदय को क्‍या शान्ति मिलेगी? प्रणाम करने में कुशल और पितृवर्ग की आज्ञा का पालन करने में तत्‍पर अभिमन्‍यु को यदि आज मैं नहीं देखता हूँ तो मेरे हृदय को क्‍या शान्ति मिलेगी? जो सदा बहुमूल्‍य शय्या पर सोने के योग्‍य और सुकुमार था, वह सनाथशिरोमणि वीर अभिमन्‍यु आज निश्चय ही अनाथ की भाँति पृथ्‍वी पर सो रहा है। आज से पहले सोते समय परम सुन्‍दरी स्त्रियाँ जिसकी उपासना करती थीं, अपने क्षत-विक्षत अंगों से पृथ्‍वी पर पड़े हुए उस अभिमन्‍यु के पास आज अमंगलजनक शब्‍द करने वाली सियारिनें बैठी होंगी। जिसे पहले सो जाने पर सूत, मागध और बन्‍दीजन जगाया करते थे, उसी अभिमन्‍यु को आज निश्चय ही हिंसक जन्‍तु अपने भयंकर शब्‍दों द्वारा जगाते होंगे। उसका वह सुन्‍दर मुख सदा छत्र की छाया में रहने योग्‍य था, परंतु आज युद्ध भूमि में उड़ती हुई धूल उसे आच्‍छादित कर देगी। हा पुत्र! मैं बड़ा भाग्‍यहीन हूँ। निरन्‍तर तुम्‍हें देखते रहने पर भी मुझे तृप्ति नहीं होती थी, तो भी काल आज बलपूर्वक तुम्‍हें मुझसे छीनकर लिये जा रहा है। निश्‍चय ही वह संयमनी पुरी सदा पुण्‍यवानों का आश्रय है, जो आज अपनी प्रभा से प्रकाशित और मनोहारिणी होती हुई भी तुम्‍हारे द्वारा अत्‍यन्‍त उद्भासित हो उठी होगी। अवश्‍य ही आज वैवस्‍वत यम, वरुण, इन्‍द्र और कुबेर वहाँ तुम जैसे निर्भय वीर को अपने प्रिय अतिथि के रूप में पाकर तुम्‍हारा बड़ा आदर-सत्‍कार करते होंगे।'

इस प्रकार बारंबार विलाप करके टूटे हुए जहाज वाले व्‍यापारी की भाँति महान दु:ख से व्‍याप्‍त अर्जुन ने युधिष्ठिर से इस प्रकार पूछा- ‘कुरुनन्‍दन! क्‍या उन श्रेष्‍ठ वीरों के साथ युद्ध करता हुआ अभिमन्‍यु रणभूमि में शत्रुओं का संहार करके सम्‍मुख मारा जाकर स्‍वर्ग लोक में गया है? अवश्‍य ही बहुत-से श्रेष्‍ठ एवं सावधानी के साथ प्रयत्‍नपूर्वक युद्ध करने वाले योद्धाओं के साथ अकेले लड़ते हुए अभिमन्‍यु ने सहायता की इच्‍छा से मेरा बारंबार स्‍मरण किया होगा। जब कर्ण, द्रोण और कृपाचार्य आदि ने चमकते हुए अग्रभाग वाले नाना प्रकार के तीखे बाणों द्वारा मेरे पुत्र को पीड़ित किया होगा और उसकी चेतना मन्‍द होने लगी होगी, उस समय अभिमन्‍यु ने बारंबार विलाप करते हुए यह कहा होगा कि यदि यहाँ मेरे पिताजी होते तो मेरे प्राणों की रक्षा हो जाती। मैं समझता हूँ, उसी अवस्‍था में उन निर्दयी शत्रुओं ने उसे पृथ्वी पर मार गिराया होगा। अथवा वह मेरा पुत्र, श्रीकृष्‍ण का भानजा था, सुभद्रा की कोख से उत्‍पन्‍न हुआ था, इसलिये ऐसी दीनतापूर्ण बात नहीं कह सकता था। निश्‍चय ही मेरा यह हृदय अत्‍यन्‍त सुदृढ एवं वज्रसार का बना हुआ है, तभी तो लाल नेत्रों वाले महाबाहु अभिमन्‍यु को न देखने पर भी यह फट नहीं जाता है।[3] उन क्रूरकर्मा महान धनर्धरों ने श्रीकृष्‍ण के भानजे और मेरे बालक पुत्र पर मर्मभेदी बाणों का प्रहार कैसे किया?

जब मैं शत्रुओं को मारकर शिबिर को लौटता था, उस समय जो प्रतिदिन प्रसन्‍नचित्‍त हो आगे बढ़कर मेरा अभिनन्‍दन करता था, वह अभिमन्‍यु आज मुझे क्‍यों नहीं देख रहा है? निश्‍चय ही शत्रुओं ने उसे मार गिराया है और वह खून से लथपथ होकर धरती पर पड़ा सो रहा है एवं आकाश से नीचे गिराये हुए सूर्य की भाँति वह अपने अंगों से इस भूमि की शोभा बढ़ा रहा है। मुझे बारंबार सुभद्रा के लिये शोक हो रहा है, जो युद्ध से मुँह न मोड़ने वाले अपने वीर पुत्र को रणभूमि में मारा गया सुनकर शोक से आतुर हो प्राण त्‍याग देगी। अभिमन्‍यु को न देखकर सुभद्रा मुझे क्‍या कहेगी? द्रौपदी भी मुझसे किस प्रकार वार्तालाप करेगी, इन दोनों दु:ख कातर देवियों को मैं क्‍या जवाब दूँगा? निश्चय ही मेरा हृदय वज्रमार का बना हुआ है, जो शोकर से कातर हुई बहू उत्तरा को रोती देखकर सहस्‍त्रों टुकड़ों में विदीर्ण नहीं हो जाता। मैंने घमंड में भरे हुए धृतराष्‍ट्रपुत्रों का सिंहनाद सुना है और श्रीकृष्‍ण ने यह भी सुना है कि युयुत्सु उन कौरव वीरों को इस प्रकार उपालम्‍भ दे रहा था- युयुत्‍सु कह रहा था, धर्म को न जानने वाले महारथी कौरवों! अर्जुन पर जब तुम्‍हारा वश न चला, तब तुम एक बालक की हत्‍या करके क्‍यों आनन्‍द मना रहे हो? कल पाण्‍डवों का बल देखना। रणक्षेत्र में श्रीकृष्‍ण और अर्जुन का अपराध करके तुम्‍हारे लिये शोक का अवसर उपस्थित है, ऐसे समय में तुम लोग प्रसन्‍न होकर सिंहनाद कैसे कर रहे हो? तुम्‍हारे पापकर्म का फल तुम्‍हें शीघ्र ही प्राप्‍त होगा। तुम लोगों ने घोर पाप किया है। उसका फल मिलने में अधिक विलम्‍ब कैसे हो सकता है। राजा धृतराष्‍ट्र की वैश्‍यजातीय पत्‍नी का परम बुद्धिमान पुत्र युयुत्‍सु कोप और दु:ख से युक्‍त हो कौरवों से उपर्युक्‍त बातें कहकर शस्त्र त्‍यागकर चला आया है। श्रीकृष्‍ण! आपने रणक्षेत्र में ही यह बात मुझसे क्‍यों नहीं बता दी? मैं उसी समय उन समस्‍त क्रूर महारथियों को जलाकर भस्‍म कर डालता।'[4]


टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 72 श्लोक 1-18
  2. 2.0 2.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 72 श्लोक 19-35
  3. महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 72 श्लोक 36-52
  4. महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 72 श्लोक 53-69

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द्रोणाभिषेक पर्व
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संशप्तकवध पर्व
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अभिमन्युवध पर्व
दुर्योधन का उपालम्भ तथा द्रोणाचार्य की प्रतिज्ञा | अभिमन्यु वध के वृत्तान्त का संक्षेप में वर्णन | संजय द्वारा अभिमन्यु की प्रशंसा | द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह का निर्माण | युधिष्ठिर और अभिमन्यु का संवाद | चक्रव्यूह भेदन के लिए अभिमन्यु की प्रतिज्ञा | अभिमन्यु द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | अभिमन्यु द्वारा अश्मकपुत्र का वध | शल्य का मूर्छित होना और कौरव सेना का पलायन | अभिमन्यु द्वारा शल्य के भाई का वध | द्रोणाचार्य की रथसेना का पलायन | द्रोणाचार्य द्वारा अभिमन्यु की प्रशंसा | दुर्योधन के आदेश से दु:शासन का अभिमन्यु से युद्ध | अभिमन्यु द्वारा दु:शासन और कर्ण की पराजय | अभिमन्यु द्वारा कर्ण के भाई का वध | अभिमन्यु द्वारा कौरव सेना का संहार | जयद्रथ का पांडवों को चक्रव्यूह में प्रवेश करने से रोकना | जयद्रथ का पांडवों के साथ युद्ध और व्यूहद्वार को रोक रखना | अभिमन्यु द्वारा वसातीय आदि अनेक योद्धाओं का वध | अभिमन्यु द्वारा सत्यश्रवा, रुक्मरथ और सैकड़ों राजकुमारों का वध | अभिमन्यु द्वारा दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध | अभिमन्यु द्वारा क्राथपुत्र का वध | अभिमन्यु द्वारा वृन्दारक तथा बृहद्वल का वध | अभिमन्यु द्वारा अश्वकेतु, भोज और कर्ण के मंत्री आदि का वध | कौरव महारथियों द्वारा अभिमन्यु के धनुष और तलवार आदि का नाश | कौरव महारथियों के सहयोग से अभिमन्यु का वध | युधिष्ठिर द्वारा भागती हुई पांडव सेना को आश्वासन | तेरहवें दिन के युद्ध की समाप्ति एवं रणभूमि का वर्णन | युधिष्ठिर का विलाप | युधिष्ठिर के पास व्यास का आगमन | व्यास द्वारा मृत्यु की उत्पत्ति का प्रसंग आरम्भ करना | शंकर और ब्रह्मा का संवाद | मृत्यु की उत्पत्ति | मृत्यु की घोर तपस्या | ब्रह्मा द्वारा मृत्यु को वर की प्राप्ति | नारद-अकम्पन संवाद का उपंसहार | नारद की कृपा से राजा सृंजय को पुत्र की प्राप्ति | दस्युओं द्वारा राजा सृंजय के पुत्र का वध | नारद द्वारा सृंजय को मरुत्त का चरित्र सुनाना | राजा सुहोत्र की दानशीलता | राजा पौरव के अद्भुत दान का वृत्तान्त | राजा शिबि के यज्ञ और दान की महत्ता | भगवान श्रीराम का चरित्र | राजा भगीरथ का चरित्र | राजा दिलीप का उत्कर्ष | राजा मान्धाता की महत्ता | राजा ययाति का उपाख्यान | राजा अम्बरीष का चरित्र | राजा शशबिन्दु का चरित्र | राजा गय का चरित्र | राजा रन्तिदेव की महत्ता | राजा भरत का चरित्र | राजा पृथु का चरित्र | परशुराम का चरित्र | नारद द्वारा सृंजय के पुत्र को जीवित करना | व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अन्तर्धान होना
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वध | अर्जुन द्वारा अद्भुत जलाशय का निर्माण | श्रीकृष्ण द्वारा अश्वपरिचर्या | अर्जुन का शत्रुसेना पर आक्रमण और जयद्रथ की ओर बढ़ना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आगे बढ़ा देख कौरव सैनिकों की निराशा | जयद्रथ की रक्षा हेतु दुर्योधन का अर्जुन के समक्ष आना | श्रीकृष्ण का अर्जुन की प्रशंसापूर्वक प्रोत्साहन देना | अर्जुन और दुर्योधन का एक-दूसरे के सम्मुख आना | दुर्योधन का अर्जुन को ललकारना | दुर्योधन और अर्जुन का युद्ध | अर्जुन द्वारा दुर्योधन की पराजय | अर्जुन का कौरव महारथियों के साथ घोर युद्ध | अर्जुन तथा कौरव महारथियों के ध्वजों का वर्णन | अर्जुन का नौ कौरव महारथियों के साथ अकेले युद्ध | द्रोणाचार्य की सेना का पांडव सेना से द्वन्द्व युद्ध | युधिष्ठिर का द्रोणाचार्य से युद्ध और रणभूमि से पलायन | क्षेमधूर्ति तथा वीरधन्वा का वध | निरमित्र तथा व्याघ्रदत्त का वध और दुर्मुख तथा विकर्ण की पराजय | द्रौपदी के पुत्रों द्वारा शल का वध | भीमसेन द्वारा अलम्बुष की पराजय | घटोत्कच द्वारा अलम्बुष का वध | द्रोणाचार्य और सात्यकि का युद्ध | युधिष्ठिर का सात्यकि को कौरव सेना में प्रवेश करने का आदेश | सात्यकि और युधिष्ठिर का संवाद | सात्यकि की अर्जुन के पास जाने की तैयारी और उनका प्रस्थान | सात्यकि का भीम को युधिष्ठिर की रक्षा हेतु लौटाना | सात्यकि का पराक्रम | सात्यकि का द्रोणाचार्य से युद्ध | सात्यकि का कृतवर्मा से युद्ध | धृतराष्ट्र का संजय से विषादयुक्त वचन | संजय का धृतराष्ट्र को दोषी बताना | कृतवर्मा का भीमसेन से युद्ध | कृतवर्मा का शिखण्डी से युद्ध | सात्यकि द्वारा कृतवर्मा की पराजय | सात्यकि द्वारा त्रिगर्तों की गजसेना का संहार | सात्यकि द्वारा जलसंध का वध | सात्यकि का पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्मा की पुन: पराजय | सात्यकि और द्रोणाचार्य का घोर युद्ध | सात्यकि द्वारा द्रोण की पराजय और कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सुदर्शन का वध | सात्यकि और उनके सारथि का संवाद | सात्यकि द्वारा काम्बोजों और यवन आदि सेना की पराजय | सात्यकि द्वारा दुर्योधन की सेना का संहार | दुर्योधन का भाइयों सहित पलायन | सात्यकि द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना का संहार | दु:शासन का सेना सहित पलायन | द्रोणाचार्य का दु:शासन को फटकारना | द्रोणाचार्य द्वारा वीरकेतु आदि पांचालों का वध | द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न से घोर युद्ध तथा उनका मूर्च्छित होना | धृष्टद्युम्न का पलायन और द्रोणाचार्य की विजय | सात्यकि का घोर युद्ध और दु:शासन की पराजय | कौरव-पांडव सेना का घोर युद्ध | पांडवों के साथ दुर्योधन का संग्राम | द्रोणाचार्य द्वारा बृहत्क्षत्र का वध | द्रोणाचार्य द्वारा धृष्टकेतु का वध | द्रोणाचार्य द्वारा जरासन्धपुत्र सहदेव तथा क्षत्रधर्मा का वध | द्रोणाचार्य द्वारा चेकितान की पराजय | अर्जुन और सात्यकि के प्रति युधिष्ठिर की चिन्ता | युधिष्ठिर का भीमसेन को अर्जुन और सात्यकि का पता लगाने के लिए भेजना | भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश | भीमसेन द्वारा द्रोणाचार्य के सारथि सहित रथ को चूर्ण करना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीमसेन का द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंकना | भीमसेन की गर्जना सुनकर युधिष्ठिर का प्रसन्न होना | भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को द्यूत का परिणाम दिखाकर युद्ध हेतु वापस भेजना | युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध | भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय | भीमसेन और कर्ण का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध | कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन | धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध | भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन | भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध | भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध | भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध | पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय | अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन | सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध | सात्यकि का अद्भुत पराक्रम | श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना | सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता | भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध | अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद | भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर | भूरिश्रवा का आमरण अनशन | सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध | भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण | वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा | अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप | अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | अर्जुन का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध | अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद | कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय | अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन | दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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