अर्जुन के भय से कौरव सेना का पलायन

महाभारत द्रोण पर्व मेंं संशप्तकवध पर्व के अंतर्गत 30वें अध्याय मेंं संजय ने अर्जुन के भय से कौरव सेना के पलायन करने का वर्णन धृतराष्ट्र से किया है, जो इस प्रकार है-[1]

अर्जुन के भय से कौरव सेना का पलायन

संजय कहते हैं- महाराज! अर्जुन के बाणों से आहत एवं भयभीत होकर शकुनि अधम मनुष्‍यों की भाँति तेज चलने वाले घोड़ों के द्वारा भाग खड़ा हुआ। तदनन्‍तर अस्‍त्रों के ज्ञाता अर्जुन शत्रुओं को अपनी फुर्ती दिखाते हुए कौरव सेना पर बाण-समूहों की वर्षा करने लगे। अर्जुन के द्वारा मारी जाती हुई आपके पुत्र दुर्योधन की विशाल सेना उसी प्रकार दो भागों में बट गयी, मानो गंगा किसी विशाल पर्वत के पास पहुँचकर दो धाराओं में विभक्‍त हो गयी हों। राजन! किरीटधारी अर्जुन से पीड़ित हो आपकी सेना के कितने ही नरश्रेष्‍ठ द्रोणाचार्य के पीछे जा छिपे और कितने ही सैनिक राजा दुर्योधन के पास भाग गये। महाराज! उस समय हम लोग उड़ती हुई धूलराशि से व्‍याप्‍त हुई सेना में कहीं अर्जुन को देख नहीं पाते थे। मुझे तो दक्षिण दिशा की ओर केवल उनके धनुष की टंकार सुनायी देती थी। शंख और दुन्‍दुभियों की ध्‍वनि, वाद्यों के शब्‍द तथा गाण्‍डीव धनुष के गम्‍भीर घोष आकाश को लाँघकर स्‍वर्ग तक जा पहुँचे।

तत्‍पश्चात् पुन: दक्षिण दिशा में विचित्र युद्ध करने वाले योद्धाओं का अर्जुन के साथ बड़ा भारी युद्ध होने लगा और मैं द्रोणाचार्य के पास चला गया। भरतनन्‍दन! युधिष्ठिर की सेना के सैनिक इधर-उधर से घातक प्रहार कर रहे थे। जैसे वायु आकाश में बादलों को छिन्‍न-भिन्‍न कर देती है, उसी प्रकार उस समय अर्जुन आपके पुत्रों की विभिन्‍न सेनाओं का विनाश करने लगे। इन्‍द्र की भाँति बाणरूपी जलराशि की अत्‍यन्‍त वर्षा करने वाले भयंकर वीर अर्जुन को आते देख कोई भी महाधनुर्धर पुरुषसिंह कौरव योद्धा उन्‍हें रोक न सके। अर्जुन की मार खाकर आपके सैनिक अत्‍यन्‍त पीड़ित हो रहे थे। उनमें से बहुतेरे तो इधर-उधर भागते समय अपने ही पक्ष के योद्धाओं को मार डालते थे। अर्जुन के द्वारा छोड़े हुए कंकपक्ष से युक्‍त बाण विपक्षी वीरों के शरीर को छेद डालने वाले थे। वे सम्‍पूर्ण दिशाओं को आच्‍छादित करते हुए टिड्डीअदल के समान वहाँ सब ओर गिरने लगे।

आर्य! वे बाण घोड़े, रथी, हाथी और पैदल सैनिकों को भी विदीर्ण करके उसी प्रकार धरती में समा जाते थे, जैसे सर्प बाँबी में प्रवेश कर जाते हैं। हाथी, घोड़े और मनुष्‍यों पर अर्जुन दूसरा बाण नहीं छोड़ते थे। वे सब-के-सब पृथक-पृथक एक ही बाण से घायल हो प्राणशून्‍य होकर धरती पर गिर पड़ते थे। बाणों के आघात से घायल होकर ढेर के ढेर मनुष्य मरे पड़े थे। चारों ओर हाथी धराशायी हो रहे थे और बहुत-से घोड़े मार डाले गये थे। उस समय कुत्‍तों और गीदड़ों के समूह से कोलाहलपूर्ण होकर वह युद्ध का प्रमुख भाग अद्भुत प्रतीत हो रहा था। वहाँ पिता पुत्र को त्‍याग देता था, सुहृद अपने श्रेष्‍ठ सुहृद को छोड़ देता था तथा पुत्र बाणों के आघात से आतुर होकर अपने पिता को भी छोड़कर चल देता था। उस समय अर्जुन के बाणों से पीड़ीत हुए सब लोग अपने-अपने प्राण बचाने की ओर ध्‍यान देकर सवारियों को भी छोड़कर भाग जाते थे।

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 30 श्लोक 24-42

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महाभारत द्रोण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


द्रोणाभिषेक पर्व
भीष्म के धराशायी होने से कौरवों का शोक | कौरवों द्वारा कर्ण का स्मरण | कर्ण की रणयात्रा | भीष्म के प्रति कर्ण का कथन | भीष्म का कर्ण को प्रोत्साहन देकर युद्ध के लिए भेजना | कर्ण द्वारा सेनापति पद हेतु द्रोणाचार्य के नाम का प्रस्ताव | दुर्योधन का द्रोणाचार्य से सेनापति बनने के लिए प्रार्थना करना | द्रोणाचार्य का सेनापति के पद पर अभिषेक | कौरव-पांडव सेनाओं का युद्ध और द्रोण का पराक्रम | द्रोणाचार्य के पराक्रम और वध का संक्षिप्त समाचार | द्रोणाचार्य की मृत्यु पर धृतराष्ट्र का शोक | धृतराष्ट्र का शोक से व्याकुल होना और संजय से युद्ध विषयक प्रश्न करना | धृतराष्ट्र का श्रीकृष्ण की संक्षिप्त लीलाओं का वर्णन करना | धृतराष्ट्र का श्रीकृष्ण और अर्जुन की महिमा बताना | द्रोणाचार्य की युधिष्ठिर को जीवित पकड़ लाने की प्रतिज्ञा | अर्जुन का युधिष्ठिर को आश्वासन देना | द्रोणाचार्य का पराक्रम | रणनदी का वर्णन | कौरव-पांडव वीरों का द्वन्द्व युद्ध | अभिमन्यु की वीरता | शल्य से भीमसेन का युद्ध तथा शल्य की पराजय | वृषसेन का पराक्रम तथा कौरव-पांडव वीरों का तुमुल युद्ध | द्रोणाचार्य द्वारा पांडव पक्ष के अनेक वीरों का वध | अर्जुन की द्रोणाचार्य की सेना पर विजय
संशप्तकवध पर्व
सुशर्मा आदि संशप्तक वीरों की प्रतिज्ञा | अर्जुन का युद्ध हेतु सुशर्मा आदि संशप्तक वीरों के निकट जाना | संशप्तक सेनाओं के साथ अर्जुन का युद्ध | अर्जुन द्वारा सुधन्वा का वध | संशप्तकगणों के साथ अर्जुन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य द्वारा गरुड़व्यूह का निर्माण और युधिष्ठिर का भय | धृष्टद्युम्न और दुर्मुख का युद्ध | संकुल युद्ध में गजसेना का संहार | द्रोणाचार्य द्वारा सत्यजित, शतानीक तथा वसुदान आदि की पराजय | द्रोण के युद्ध के विषय में दुर्योधन और कर्ण का संवाद | पांडव सेना के महारथियों के रथ, घोड़े, ध्वज तथा धनुषों का वर्णन | धृतराष्ट्र का खेद प्रकट करना और युद्ध के समाचार पूछना | कौरव-पांडव सैनिकों के द्वन्द्व युद्ध | भीमसेन का भगदत्त के हाथी के साथ युद्ध | भगदत्त और उसके हाथी का भयानक पराक्रम | अर्जुन द्वारा संशप्तक सेना के अधिकांश भाग का वध | अर्जुन का कौरव सेना पर आक्रमण | अर्जुन का भगदत्त और उसके हाथी से युद्ध | श्रीकृष्ण द्वारा भगदत्त के वैष्णवास्त्र से अर्जुन की रक्षा | अर्जुन द्वारा भगदत्त का वध | अर्जुन द्वारा वृषक और अचल का वध | शकुनि की माया और अर्जुन द्वारा उसकी पराजय | अर्जुन के भय से कौरव सेना का पलायन | कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा राजा नील का वध | भीमसेन का कौरव महारथियों के साथ संग्राम | पांडवों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | अर्जुन और कर्ण का युद्ध | कर्ण और सात्यकि का संग्राम
अभिमन्युवध पर्व
दुर्योधन का उपालम्भ तथा द्रोणाचार्य की प्रतिज्ञा | अभिमन्यु वध के वृत्तान्त का संक्षेप में वर्णन | संजय द्वारा अभिमन्यु की प्रशंसा | द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह का निर्माण | युधिष्ठिर और अभिमन्यु का संवाद | चक्रव्यूह भेदन के लिए अभिमन्यु की प्रतिज्ञा | अभिमन्यु द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | अभिमन्यु द्वारा अश्मकपुत्र का वध | शल्य का मूर्छित होना और कौरव सेना का पलायन | अभिमन्यु द्वारा शल्य के भाई का वध | द्रोणाचार्य की रथसेना का पलायन | द्रोणाचार्य द्वारा अभिमन्यु की प्रशंसा | दुर्योधन के आदेश से दु:शासन का अभिमन्यु से युद्ध | अभिमन्यु द्वारा दु:शासन और कर्ण की पराजय | अभिमन्यु द्वारा कर्ण के भाई का वध | अभिमन्यु द्वारा कौरव सेना का संहार | जयद्रथ का पांडवों को चक्रव्यूह में प्रवेश करने से रोकना | जयद्रथ का पांडवों के साथ युद्ध और व्यूहद्वार को रोक रखना | अभिमन्यु द्वारा वसातीय आदि अनेक योद्धाओं का वध | अभिमन्यु द्वारा सत्यश्रवा, रुक्मरथ और सैकड़ों राजकुमारों का वध | अभिमन्यु द्वारा दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध | अभिमन्यु द्वारा क्राथपुत्र का वध | अभिमन्यु द्वारा वृन्दारक तथा बृहद्वल का वध | अभिमन्यु द्वारा अश्वकेतु, भोज और कर्ण के मंत्री आदि का वध | कौरव महारथियों द्वारा अभिमन्यु के धनुष और तलवार आदि का नाश | कौरव महारथियों के सहयोग से अभिमन्यु का वध | युधिष्ठिर द्वारा भागती हुई पांडव सेना को आश्वासन | तेरहवें दिन के युद्ध की समाप्ति एवं रणभूमि का वर्णन | युधिष्ठिर का विलाप | युधिष्ठिर के पास व्यास का आगमन | व्यास द्वारा मृत्यु की उत्पत्ति का प्रसंग आरम्भ करना | शंकर और ब्रह्मा का संवाद | मृत्यु की उत्पत्ति | मृत्यु की घोर तपस्या | ब्रह्मा द्वारा मृत्यु को वर की प्राप्ति | नारद-अकम्पन संवाद का उपंसहार | नारद की कृपा से राजा सृंजय को पुत्र की प्राप्ति | दस्युओं द्वारा राजा सृंजय के पुत्र का वध | नारद द्वारा सृंजय को मरुत्त का चरित्र सुनाना | राजा सुहोत्र की दानशीलता | राजा पौरव के अद्भुत दान का वृत्तान्त | राजा शिबि के यज्ञ और दान की महत्ता | भगवान श्रीराम का चरित्र | राजा भगीरथ का चरित्र | राजा दिलीप का उत्कर्ष | राजा मान्धाता की महत्ता | राजा ययाति का उपाख्यान | राजा अम्बरीष का चरित्र | राजा शशबिन्दु का चरित्र | राजा गय का चरित्र | राजा रन्तिदेव की महत्ता | राजा भरत का चरित्र | राजा पृथु का चरित्र | परशुराम का चरित्र | नारद द्वारा सृंजय के पुत्र को जीवित करना | व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अन्तर्धान होना
प्रतिज्ञा पर्व
अभिमन्यु की मृत्यु के कारण अर्जुन का विषाद | अभिमन्यु की मृत्यु पर अर्जुन का क्रोध | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन को अभिमन्युवध का वृत्तान्त सुनाना | अर्जुन की जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा | अर्जुन की प्रतिज्ञा से जयद्रथ का भय | दुर्योधन और द्रोणाचार्य का जयद्रथ को आश्वासन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कौरवों के जयद्रथ की रक्षा विषयक उद्योग का समाचार बताना | अर्जुन के वीरोचित वचन | अशुभसूचक उत्पातों से कौरव सेना में भय | श्रीकृष्ण का सुभद्रा को आश्वासन | सुभद्रा का विलाप और श्रीकृष्ण द्वारा आश्वासन | पांडव सैनिकों की अर्जुन के लिए शुभाशंसा | अर्जुन की सफलता हेतु श्रीकृष्ण के दारुक से उत्साह भरे वचन | अर्जुन का स्वप्न में श्रीकृष्ण के साथ शिव के समीप जाना | अर्जुन और श्रीकृष्ण द्वारा शिव की स्तुति | अर्जुन को स्वप्न में पुन: पाशुपतास्त्र की प्राप्ति | युधिष्ठिर का ब्राह्मणों को दान देना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण का पूजन | अर्जुन की प्रतिज्ञा की सफलता हेतु युधिष्ठिर की श्रीकृष्ण से प्रार्थना | जयद्रथ वध हेतु श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को आश्वासन | युधिष्ठिर का अर्जुन को आशीर्वाद | सात्यकि और श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन का सात्यकि को युधिष्ठिर की रक्षा का आदेश
जयद्रथवध पर्व
धृतराष्ट्र का विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को उपालम्भ | द्रोणाचार्य द्वारा चक्रशकट व्यूह का निर्माण | दुर्मर्षण का अर्जुन से लड़ने का उत्साह | अर्जुन का रणभूमि में प्रवेश और शंखनाद | अर्जुन द्वारा दुर्मर्षण की गजसेना का संहार | अर्जुन से हताहत होकर दु:शासन का सेनासहित पलायन | अर्जुन और द्रोणाचार्य का वार्तालाप तथा युद्ध | अर्जुन का कौरव सैनिकों द्वारा प्रतिरोध | अर्जुन का द्रोणाचार्य और कृतवर्मा से युद्ध | श्रुतायुध का अपनी ही गदा से वध | अर्जुन द्वारा सुदक्षिण का वध | अर्जुन द्वारा श्रुतायु, अच्युतायु, नियतायु, दीर्घायु और अम्बष्ठ आदि का वध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ | अर्जुन से युद्ध हेतु द्रोणाचार्य का दुर्योधन के शरीर में दिव्य कवच बाँधना | द्रोण और धृष्टद्युम्न का भीषण संग्राम | उभय पक्ष के प्रमुख वीरों का संकुल युद्ध | कौरव-पांडव सेना के प्रधान वीरों का द्वन्द्व युद्ध | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का युद्ध | सात्यकि द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा | द्रोणाचार्य और सात्यकि का अद्भुत युद्ध | अर्जुन द्वारा तीव्र गति से कौरव सेना में प्रवेश | अर्जुन द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | अर्जुन द्वारा अद्भुत जलाशय का निर्माण | श्रीकृष्ण द्वारा अश्वपरिचर्या | अर्जुन का शत्रुसेना पर आक्रमण और जयद्रथ की ओर बढ़ना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आगे बढ़ा देख कौरव सैनिकों की निराशा | जयद्रथ की रक्षा हेतु दुर्योधन का अर्जुन के समक्ष आना | श्रीकृष्ण का अर्जुन की प्रशंसापूर्वक प्रोत्साहन देना | अर्जुन और दुर्योधन का एक-दूसरे के सम्मुख आना | दुर्योधन का अर्जुन को ललकारना | दुर्योधन और अर्जुन का युद्ध | अर्जुन द्वारा दुर्योधन की पराजय | अर्जुन का कौरव महारथियों के साथ घोर युद्ध | अर्जुन तथा कौरव महारथियों के ध्वजों का वर्णन | अर्जुन का नौ कौरव महारथियों के साथ अकेले युद्ध | द्रोणाचार्य की सेना का पांडव सेना से द्वन्द्व युद्ध | युधिष्ठिर का द्रोणाचार्य से युद्ध और रणभूमि से पलायन | क्षेमधूर्ति तथा वीरधन्वा का वध | निरमित्र तथा व्याघ्रदत्त का वध और दुर्मुख तथा विकर्ण की पराजय | द्रौपदी के पुत्रों द्वारा शल का वध | भीमसेन द्वारा अलम्बुष की पराजय | घटोत्कच द्वारा अलम्बुष का वध | द्रोणाचार्य और सात्यकि का युद्ध | युधिष्ठिर का सात्यकि को कौरव सेना में प्रवेश करने का आदेश | सात्यकि और युधिष्ठिर का संवाद | सात्यकि की अर्जुन के पास जाने की तैयारी और उनका प्रस्थान | सात्यकि का भीम को युधिष्ठिर की रक्षा हेतु लौटाना | सात्यकि का पराक्रम | सात्यकि का द्रोणाचार्य से युद्ध | सात्यकि का कृतवर्मा से युद्ध | धृतराष्ट्र का संजय से विषादयुक्त वचन | संजय का धृतराष्ट्र को दोषी बताना | कृतवर्मा का भीमसेन से युद्ध | कृतवर्मा का शिखण्डी से युद्ध | सात्यकि द्वारा कृतवर्मा की पराजय | सात्यकि द्वारा त्रिगर्तों की गजसेना का संहार | सात्यकि द्वारा जलसंध का वध | सात्यकि का पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्मा की पुन: पराजय | सात्यकि और द्रोणाचार्य का घोर युद्ध | सात्यकि द्वारा द्रोण की पराजय और कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सुदर्शन का वध | सात्यकि और उनके सारथि का संवाद | सात्यकि द्वारा काम्बोजों और यवन आदि सेना की पराजय | सात्यकि द्वारा दुर्योधन की सेना का संहार | दुर्योधन का भाइयों सहित पलायन | सात्यकि द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना का संहार | दु:शासन का सेना सहित पलायन | द्रोणाचार्य का दु:शासन को फटकारना | द्रोणाचार्य द्वारा वीरकेतु आदि पांचालों का वध | द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न 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| भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध | कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन | धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध | भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन | भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध | भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध | भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध | पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय | अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन | सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध | सात्यकि का अद्भुत पराक्रम | श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना | सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता | भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध | अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद | भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर | भूरिश्रवा का आमरण अनशन | सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध | भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण | वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा | अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप | अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | अर्जुन का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध | अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद | कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय | अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन | दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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