भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश

महाभारत द्रोण पर्व मेंं जयद्रथवध पर्व के अंतर्गत 127वें अध्याय मेंं संजय ने भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]

संजय कहते हैं- राजन! जब युधिष्ठिर ने भीम से अर्जुन और सात्यकि का पता लगाने के लिये कहा, तब भीम ने कहा -महाराज! जो रथ पहले ब्रह्मा, महादेव, इन्द्र अैर वरुण की सवारी में आ चुका है, उसी पर बैठकर श्रीकृष्ण और अर्जुन युद्ध के लिये गये हैं। अतः उनके लिये तनिक भी भय नहीं है। तथापि आपकी आज्ञा शिरोधार्य करके मैं जा रहा हूँ। आप शोक या चिन्ता न करें। मैं उन पुरुषसिंहों से मिलकर आपको सूचना दूँगा।

भीमसेन और धृष्टद्युम्न संवाद

संजय कहते हैं - राजन! ऐसा कहकर बलवान भीमसेन राजा युधिष्ठिर को धृष्टद्युम्न तथा अन्य सुहृदों की देख रेख में सौंपकर वहाँ से चल दिये। जाते समय महाबली भीमसेन ने धृष्टद्युम्न से इस प्रकार कहा - ‘महाबाहो! तुम्हें तो यह मालूम ही है कि महारथी द्रोण सारे उपाय करके किस प्रकार धर्मराज को पकड़ने पर तुले हुए हैं। ‘अतः द्रुपदनन्दन! मेरे लिये वहाँ जाने की वैसी आवश्यकता नहीं है? जैसी यहाँ रहकर राजा की रक्षा करने की है। यही हम लोगों के लिये सबसे महान कार्य है। ‘परंतु जब कुन्तीनन्दन महाराज ने इस प्रकार मुझे वहाँ जाने की आज्ञा दे दी है, तब मैं उन्हें कोरा जवाब नहीं दे सकता-उनकी आज्ञा टाल नहीं सकता। अतः जहाँ मरणासन्न जयद्रथ खड़ा है, वहीं मैं जाऊँगा। मुझे बिना किसी संशय के धर्मराज युधिष्ठिर की आज्ञा के अधीन रहना चाहिये। ‘अतः अब मैं भाई अर्जुन तथा बुद्धिमान सात्यकि के पथ का अनुसरण करूँगा। अब तुम सावधान हो प्रयत्न पूर्वक रणभूमि में कुन्ती कुमार राजा युधिष्ठिर की रक्षा करो। इस युद्ध स्थल में यही हमारे लिये सब कार्यों से बढ़कर महान कार्य है’। महाराज! यह सुनकर धृष्टद्युम्न ने भीमसेन से कहा - ‘कुन्तीनन्दन! तुम कुछ भी सोच-विचार न करके जाओ। मैं तुम्हारी इच्छा के अनुसार सब कार्य करूँगा। ‘द्रोणाचार्य संग्राम में धृष्टद्युम्न का वध किये बिना किसी प्रकार धर्मराज को कैद नहीं कर सकेंगे’।

भीम का कौरव-सेना की ओर जाने के लिये तैयार होना

तब भीमसेन ने पाण्डुपुत्र राजा युधिष्ठिर को धृष्टद्युम्न के हाथों में सौंपकर अपने बड़े भाई को प्रणाम करके जिस मार्ग से अर्जुन गये थे, उसी पर चल दिये। भारत! उस समय धर्मराज युधिष्ठिर ने कुन्ती कंमार भीमसेन को गले लगाया, उनका सिर सूँघा और उन्हें शुभ आशीर्वाद सुनाये। तदनन्तर पूजित एवं संतुष्टचित्त हुए ब्राह्मणों की परिक्रमा करके आठ प्रकार की मांगलिक वस्तुओं का स्पर्श करने के पश्चात भीमसेन ने केरातक मधु का पान किया। फिर तो वीर भीमसेन का बल और उत्साह दुगुना हो गया, उनके नेत्र मद से लाल हो गये थे। उस समय ब्राह्मणों ने स्वस्तिवचन किया, जिससे विजय लाभ सूचित होता था। उन्हें अपनी बुद्धि विजयानन्द का अनुभव करती सी दिखायी दी। अनुकूल हवा चलकर उन्हें शीघ्र ही अवश्यम्भावी विजय की सूचना देने लगी। रथियों में श्रेष्ठ महाबाहु भीमसेन कवच, सुन्दर कुण्डल, बाजूबन्द और जलत्राण ( दस्ताने ) धारण करके रथ पर आरूढ़ हो गये। उनका काले लोहे का बना हुआ सुवर्णजटित बहुमूल्य कवच उनके सारे अंगों में सटकर बिजली सहित मेघ के समान सुशोभित हो रहा था।[1] लाल, पीले, काले और सफेद वस्त्रों से अपने शरीर को सुसज्जित करके कण्ठत्राण पहनकर वे इन्द्रधनुष युक्त मेघ के समान शोभा पा रहे थे।

युधिष्ठिर का पुन: भीम से संवाद

प्रजानाथ! जब भीमसेन युद्ध की इच्छा से आपकी सेना की ओर प्रस्थित हुए, उस समय पुनः पान्चजन्य शंख की भयंकर ध्वनि प्रकट हुई। त्रिलोकी को डरा देने वाले उस घोर एवं महान सिंहनाद को सुनकर धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने जाते हुए महाबाहु भीमसेन से पुनः इस प्रकार कहा -‘भीम! देखो, यह वृष्णि वंश के प्रमुख वीर भगवान श्रीकृष्ण ने बड़े जोर से शंख बजाया है। यह शंखराज इस समय पृथ्वी और आकाश दोनों को अपनी ध्वनि से परिपूर्ण किये देता है। निश्चय ही सव्यसाची अर्जुन के भारी संकट में पड़ जाने पर चक्र और गदा धारण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण समस्त कौरवों के साथ युद्ध कर रहे हैं। ‘आज अवश्य ही माता कुन्ती किसी दुःखद अपशकुन की चर्चा करती होंगी। बन्धुओं सहित द्रौपदी और सुभद्रा भी कोई असगुन देख रही होंगी। ‘अतः भीम! तुत तुरंत ही जहाँ अर्जुन हैं, वहाँ जाओ। आज अर्जुन को देखने के लिये मेरी सारी दिशाएँ मोहाच्छन्न सी हो रही हैं। सात्यकि को न देख पाने के कारण भी मेरे लिये सारी दिशाओं में अँधेरा छा गया है’।[2]

भीम का कौरव-सेना में प्रवेश

संजय कहते हैं- राजन! इस प्रकार ‘जाओ, जाओ’ कहकर बड़े भाई के आज्ञा देने पर उदर में वृक समान अग्नि को धारण करने वाले प्रतापी पाण्डुपुत्र भीमसेन गोह के चमड़े से बने हुए दस्ताने पहनकर हाथ में धनुष ले वहाँ से जाने के लिये तैयार हुए। वे भाई का प्रिय करने वाले भाई थे और बड़े भाई के भेजने से ही वहाँ से जाने को उद्यत हुए थे। भीमसेन ने बारंबार डंका पीटा और अनेक बार शंख बजाकर बारंबार धनुष की प्रत्यन्ची खींचते हुए सिंह के समान दहाड़ने के समान भयंकर गर्जना की। उस तुमुल शब्द के द्वारा बड़े - बड़े वीरों के दिल दहलाकर अपना भयंकर रूप दिखाते हुए उन्होंने सहसा शत्रुओं पर धावा बोल दिया। उस समय विशोक नामक सारथि के द्वारा संचालित होने वाले, मन और वायु के समान वेगशाली तीव्रगामी और सुशिक्षित सुन्दर घोड़े हर्ष सूचक शब्द करते हुए उनका भार वहन करते थे। कुन्तीकुमार भीम अपने हाथ से धनुष की डोरी खींचकर चढ़ाते, उसे भलीभाँति कान तक खींचते, बाणों की वर्षा करते तथा शत्रुओं को घायल करके उनके अंग भंग करते हुए सेना के अग्र भाग को मथ डालते थे। इस प्रकार यात्रा करते हुए महाबाहु भीमसेन के पीछे पाञ्चाल और सोमक वीर भी चले, मानो देवगण देवराज इन्द्र का अनुसरण कर रहे हों।

भीम का पराक्रम

महाराज! उस समय आप के पुत्रों ने भीमसेन का सामना करके उन्हें रोका! दुःशल, चित्रसेन, कुण्डभेदी, विविंशति, दुर्मुख, दुःसह, विकर्ण, शल, विन्द, अनुविन्द, सुमुख, दीर्घबाहु, सुदर्शन, वृन्दारक, सुहस्त, सुषेण, दीर्घलोचन, अभय, रौद्रकर्मा, सुवर्मा और दुर्विमोचन - इन शोभाशाली रथिश्रेष्ठ वीरों ने अपने सैनिकों और सेवकों के साथ सावधान एवं प्रयत्नशील होकर समरांगण में भीमसेन पर धावा किया। उन शूरवीरों के द्वारा समर भूमि में महारथी भीम सब ओर से घिर गये थे। उन सबको सामने देखकर महापराक्रम शाली कुन्ती कुमार भीमसेन उसी प्रकार वेग से आगे बढ़े, जैसे सिंह क्षुद्र मृगों की ओर बढ़ता है। परंतु जैसे बादल उगे हुए सूर्य को ढक लेता है, उसी प्रकार वे वीरगण अपने बाणों द्वारा भीमसेन को आच्छादित करते हुए वहाँ बड़े बड़े दिव्यास्त्रों का प्रदर्यान करने लगे। किंतु भीमसेन अपने वेग से उन सबको लाँघकर बाणों की वर्षा करके उनके द्वारा थोड़े ही समय में उस गजसेना को मार भगाया।[2]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 127 श्लोक 1-17
  2. 2.0 2.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 127 श्लोक 18-38

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प्रतिज्ञा पर्व
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के अपमानित होने का कारण | वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा | अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप | अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | अर्जुन का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध | अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद | कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय | अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन | दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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