रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण

महाभारत द्रोण पर्व मेंं घटोत्कचवध पर्व के अंतर्गत 154वें अध्याय मेंं धृतराष्ट्र के पूछने पर संजय ने रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण करने का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]

धृतराष्ट्र का संजय से प्रश्न पूछना

धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! मेरी आज्ञा का उल्लघंन करने वाले मेरे मूर्ख पुत्र दुर्योधन से पूर्वोक्त बातें कहकर क्रोध में भरे हुए बलवान आचार्य द्रोण ने जब वहाँ पांडव सेना में प्रवेश किया, उस समय रथ पर बैठकर सेना के भीतर प्रवेश करके सब ओर विचरते हुए महाधनुर्धर शूरवीर द्रोणाचार्य को पाण्डवों ने किस प्रकार रोका। उस महासमर में बहुसंख्यक शत्रु योद्धाओं का संहार करने वाले आचार्य द्रोण के चक्र की किन लोगों ने रक्षा की तथा किन लोगों ने उनके रथ के बायें पहिये की रखवाली की? युद्ध परायण वीर रथी आचार्य के पीछे कौन-से वीर थे और शत्रुपक्ष के कौन-कौन से वीर उनके सामने खड़े हुए थे। मैं तो समझता हूँ शत्रुओं को बहुत देर तक बिना मौसम- के ही सर्दी लगने लगी होगी। जैसे शिशिर ऋतु में गायें सर्दी के मारे कांपने लगती हैं, उसी तरह वे शत्रु सैनिक भी आचार्य के भय से थर-थर कांपने लगे होंगे। क्योंकि किसी से परास्त न होने वाले, सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ महाधनुर्धर द्रोणाचार्य ने पांचालों की सेना में रथ के मार्गो पर नृत्य-सा करते हुए प्रवेश किया था। रथियों में श्रेष्ठ द्रोण क्रोध में भरे हुए धूमकेतु के समान प्रकट होकर पांचालों की समस्त सेनाओं को दग्ध कर रहे थे; फिर उनकी मृत्यु कैसी हो गयी?

संजय द्वारा धृतराष्ट्र के प्रश्न का उत्तर देना

संजय ने कहा- राजन! सांयकाल सिंधुराज जयद्रथ का वध करके राजा युधिष्ठिर से मिलकर कुन्तीकुमार अर्जुन और महाधनुर्धर सात्यकि दोनों ने द्रोणाचार्य पर ही धावा किया। इसी प्रकार राजा युधिष्ठिर और पाण्डुपुत्र भीमसेन ने भी पृथक-पृथक सेनाओं के साथ तैयार हो शीघ्रतापूर्वक द्रोणाचार्य पर ही आक्रमण किया। इसी तरह बुद्धिमान नकुल, दुर्जय वीर सहदेव, सेना-सहित धृष्टद्युम्न, राजा विराट, केकयराजकुमार तथा मत्स्य और शाल्वदेश के सैनिक अपनी सेनाओं के साथ युद्ध स्थल में द्रोणाचार्य पर ही चढ़ आये। राजन! पांचाल सैनिकों से सुरक्षित धृष्टद्युम्न पिता राजा द्रुपद ने भी द्रोणाचार्य का ही सामना किया। महाधनुर्धर द्रौपदीकुमार तथा राक्षस घटोत्कच भी अपनी सेनाओं के साथ महातेजस्वी द्रोणाचार्य की ही ओर लौट आये। प्रहार करने मे कुशल छः हजार प्रभद्रक और पांचाल योद्धा भी शिखण्डी को आगे करके द्रोणाचार्य पर ही चढ़ आये। इसी प्रकार पांडव सेना के अन्य महारथी वीर पुरुष-सिंह भी एक साथ द्विजश्रेष्ठ द्रोणाचार्य की ओर ही लौट आये। भरतश्रेष्ठ! युद्ध के उन शूरवीरों के आ पहुँचने पर वह रात बड़ी भयंकर हो गयी, जो भीरू पुरुषों के भय को बढ़ाने वाली थी।

राजन! वह रात्रि समस्त योद्वाओं के लिये अमगंल-कारक, भयंकर, यमराज के पास ले जाने वाली तथा हाथी, घोड़े और मनुष्यों के प्राणों का अन्त करने वाली थी। उस घोर रजनी में सब ओर कोलाहल करती हुई सियारिनें अपने मुंह से आग उगलती हुई घोर भय की सूचना दे रही थी। विषेशतः कौरव सेना में महान भय की सूचना देने वाले अत्यन्त दारुण उल्लू पक्षी भी दिखायी दे रहे थे। राजेन्द्र! तदनन्तर सारी सेनाओं में रणभेरी की भारी आवाज, मृदंड़ों की ध्वनि, हाथियों के चिग्घाडनें, घोड़ों के हिनहिनाने और धरती पर उनकी टाप पड़ने से चारों ओर अत्यन्त भयंकर शब्द गूंजने लगा।[1]

द्रोणाचार्य का सृंजय-वीरों के साथ भयंकर युद्ध

महाराज! तत्पश्‍चात संध्याकाल में समस्त सृंजय-वीरों तथा द्रोणाचार्य का अत्यन्त दारुण संग्राम होने लगा। सारा जगत अंधकार से तथा सेना द्वारा सब ओर उड़ायी हुई धूल से आच्छादित होने के कारण किसी को कुछ भी ज्ञात नहीं होता था। मनुष्यों, घोड़ों और हाथियों के रक्त में सन जाने के कारण हमें धरती की धूल दिखायी नहीं देती थी। हम सब लोगों पर मोह सा छा गया था। जैसे पर्वत पर रात के समय बांसों का जंगल जल रहा हो और उन बांसों के चटखने का घोर शब्द सुनायी दे रहा हो, उसी प्रकार शस्त्रों के आघात-प्रत्याघात से घोर चटखट शब्द कानों में पड़ रहा था। मृदंग और ढोलों की आवाज से, झांझ और पटहों की ध्वनि से तथा हाथी-घोड़ों के फुंकार और हींसने के शब्दों से वहाँ का सब कुछ व्याप्‍त जान पड़ता था। राजन! उस अन्धकाराच्छन्‍न प्रदेश में अपने और पराये-की पहचान नहीं होती थी। उस प्रदोषकाल में सब कुछ उन्मत-सा जान पड़ता था।[2]

राजेन्द्र! रक्त की धारा ने धरती की धूल को नष्ट कर दिया। सोने के कवचों और आभूषणों की चमक से अंधकार दूर हो गया। भरतश्रेष्ठ! उस समय रात्रिकाल में मणियों तथा सुवर्ण के आभूषणों से विभूषित हुई वह कौरव सेना नक्षत्रों से युक्त आकाश के समान सुशोभित होती थी। उस सेना के आसपास सियारों के समूह अपनी भयंकर बोली बोल रहे थे। शक्तियों और ध्वजों से सारी सेना व्याप्त थी। कहीं हाथी चिग्घाड़ रहे थे, कहीं योद्धा सिंहनाद कर रहे थे और कहीं एक सैनिक दूसरे को पुकारते तथा ललकारते थे। इन शब्दों से कोलाहल पूर्ण हुई वह सेना बड़ी भयानक जान पड़ती थी। थोडी देर में रोंगटे खड़े कर देने वाला अत्यन्त भयंकर महान शब्द गूंज उठा। ऐसा जान पड़ता था देवराज इन्द्र के वज्र की गड़गड़ाहट फैल गयी हो। वह शब्द वहाँ सारी दिशा में छा गया था। महाराज! रात के समय कौरव सेना अपने बाजूबन्‍द, कुण्डल, सोने के हार तथा अस्त्र-शस्त्रों से प्रकाशित हो रही थी। वहाँ रात्रि में सुवर्णभूषित हाथी और रथ बिजली सहित मेघों के समान दिखायी दे रहे थे।

वहाँ चारों ओर गिरते हुए ऋष्टि, शक्ति, गदा, बाण मूसल, प्रास और पट्टिश आदि अस्त्र आग के अंगारों के समान प्रकाशित दिखायी देते थे। युद्ध करने की इच्छा वाले सैनिकों ने उस अत्यन्त भयंकर सेना में प्रवेश किया, जो मेघों की घटा के समान जान पड़ती थी। दुर्योधन उसके लिये पुरवैया हवा के समान था। रथ और हाथी बादलों के दल थे। रणवाद्यों की गम्भीर ध्वनि मेघों की गर्जना के समान जान पड़ती थी। धनुष और ध्वज बिजली के समान चमक रहे थे। द्रोणाचार्य और पाण्डव पर्जन्य का काम देते थे। खंड, शक्ति और गदा का आघात ही वज्रपात था। बाणरूपी जल की वहाँ वर्षा होती थी। अस्त्र ही पवन के समान प्रतीत होते थे। सर्दी ओर गर्मी से व्याप्त हुई वह अत्यन्त भयंकर उग्र सेना सबको विस्मय में डालने वाली और योद्धाओं के जीवन का उच्छेद करने वाली थी। उससे पार होने के लिये नौकास्वरूप कोई साधन नहीं था। महान शब्द से मुखरित एवं भयंकर रात्रि का प्रथम पहर बीत रहा था, जो कायरों को डराने वाला और शूरवीरों- का हर्ष बढ़ाने वाला था।[2] जब वह अत्यन्त भयंकर और दारुण रात्रियुद्ध चल रहा था, उस समय क्रोध में भरे हुए पाण्डवों तथा सृंजयों ने द्रोणाचार्य पर एक साथ धावा किया। राजन! जो-जो प्रमुख महारथी द्रोणाचार्य के सामने आये, उस सबको उन्होंने युद्ध से विमुख कर दिया और कितनों को यमलोक पहुँचा दिया। उस प्रदोषकाल में अकेले द्रोणाचार्य ने अपने नाराचों-द्वारा एक हजार हाथी, दस हजार रथ तथा लाखों-करोड़ों पैदल एवं घुड़सवार नष्ट कर दिये।[3]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 154 श्लोक 1-20
  2. 2.0 2.1 महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 154 श्लोक 21-37
  3. महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 154 श्लोक 38-41

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के अपमानित होने का कारण | वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा | अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप | अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | अर्जुन का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध | अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद | कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय | अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन | दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

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