गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 82

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

दसवाँ अध्याय

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बुद्धि, ज्ञान आदि और महर्षि आदि मेरे से ही उत्पन्न होते हैं- यह करने में आपका क्या तात्पर्य है?
जो मेरी इस विभूति और योग को[1] श्रद्धा से दृढ़तापूर्वक मान लेता है, उसकी मेरे में अविचल भक्ति हो जाती है, इसमें कोई सन्देह नहीं है।।7।।

वह दृढ़ता से मानना क्या है?
मैं संसारमात्र का मूल कारण हूँ और मेरे से ही सारा संसार चेष्टा कर रहा है- ऐसा मेरे को दृढ़ता से मानकर मेरे में ही श्रद्धा-प्रेम रखते हुए बुद्धिमान् भक्त मेरा ही भजन करते हैं।।8।।

उनके भजन का प्रकार क्या है भगवन्?
मेरे में मनवाले, मेरे में प्राणों को अर्पण करने वाले भक्तजन आपस में मेरे गुण, प्रभाव आदि को जानते हुए और उनका कथन करते हुए नित्य-निरन्तर सन्तुष्ट रहते हैं और मेरे में ही प्रेम करते हैं।।9।।

ऐसे भक्तों के लिये आप क्या करते हैं?
ऐसे नित्य-निरन्तर मेरे में लगे हुए और प्रेमपूर्वक मेरा भजन करने वाले भक्तों को मैं ही अपनी ओर से वह बुद्धियोग (समता) देता हूँ, जिससे वे मुझे प्राप्त कर लेते हैं।।10।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
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अध्याय 10 86
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अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153
  1. भगवान् की सामर्थ्य का नाम योग है और इस योग से प्रकट होने वाला जितना ऐश्वर्य है, उसका नाम ‘विभूति’ है।

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