गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 72

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

आठवाँ अध्याय

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उस परमधाम की प्राप्ति कैसे हो?
हे पार्थ! जिसके अन्तर्गत सब संसार है औ जिससे सब संसार व्याप्त है, वह परम पुरुष परमात्मा अनन्यभक्त से प्राप्त होता है।।22।।

अन्य (संसार) का सम्बन्ध न रखने से और अन्य का सम्बन्ध रखने से क्या होता है?
हे अर्जुन! जिस मार्ग से गये हुए अन्य का सम्बन्ध न रखने वाले प्राणी फिर लौटकर संसार में नहीं आते और जिस मार्ग से गये हुए अन्य का सम्बन्ध रखने वाले प्राणी फिर लौटकर संसार में आते हैं, उन दोनों मार्गों को मैं कहूँगा।।23।।

वे दोनों मार्ग कौन-से हैं भगवन्?
जिस मार्ग में प्रकाशस्वरूप अग्नि, दिन, शुक्लपक्ष और छः महीनों वाले उत्तरायण के अधिपति देवता हैं, शरीर छोड़कर उस मार्ग से गये हुए ब्रह्मवेत्तालोग ब्रह्म को प्राप्त हो जाते हैं अर्थात् फिर लौटकर नहीं आते; और जिस मार्ग में धूम, रात्रि, कृष्णपक्ष औद छः महीनों वाले दक्षिणायन के अधिपति देवता हैं, शरीर छोड़कर उस मार्ग से गये हुए सकाम मनुष्य स्वर्गादि ऊँचे लोकों का सुख भोगकर फिर लौटकर आते हैं।।24-25।।

ये दोनों मार्ग कब से शुरू हुए हैं?
प्राणियों के ये दोनों शुक्ल और कृष्ण-मार्ग अनादि हैं। इनमें से शुक्लमार्ग से गये हुए को लौटकर नहीं आना पड़ता और कृष्णमार्ग से गये हुए को लौटकर आना पड़ता है।।26।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
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अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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