गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 59

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

छठा अध्याय

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अर्जुन बोले- हे कृष्ण! जिसकी साधन में श्रद्धा है, पर जिसका प्रयत्न शिथिल है, ऐसे साधक की अन्तकाल में साधन में स्थिति न रहे तो वह योगसिद्धि को प्राप्त न करके किस गति में जाता है? संसार के आश्रय से रहित और परमात्मप्राप्ति के मार्ग से विचलित उभयभ्रष्ट साधक छिन्न-भिन्न बादल की तरह नष्ट तो नहीं हो जाता? हे कृष्ण! यह मेरा सन्देह है। मेरे इस सन्देह को आप ही सर्वथा मिटा सकते हैं; क्योंकि इस सन्देह को आपके सिवा दूसरा कोई मिटा ही नहीं सकता।।37-39।।

भगवान् बोले- पार्थ! उसका न तो इस लोक में और न परलोक में ही पतन होता है; क्योंकि हे प्यारे! कल्याणकारी काम करने वाला कोई भी साधक दुर्गति में नहीं जाता।।40।।

वह दुर्गति में नहीं जाता तो फिर कहाँ जाता है?
जिस साधक के भीतर सांसारिक सुख की कुछ इच्छा रह गयी है, ऐसा योगभ्रष्ट साधक पुण्यकर्म करने वालों के लोकों (स्वर्ग आदि ऊँचे लोकों) में जाता है और वहाँ बहुत वर्षों तक रहकर मृत्युलोक में शुद्ध श्रीमानों के घर में जन्म लेता है। परन्तु जिस साधक के भीतर सांसारिक सुख की इच्छा नहीं है और अन्त समय में किसी विशेष कारण से योगभ्रष्ट हो जाता है, वह स्वर्ग आदि लोकों में न जाकर सीधे ही तत्त्वज्ञ योगियों के कुल में जन्म लेता है। इस प्रकार का जन्म इस लोक में अत्यन्त दुर्लभ है।।41-42।।

तत्त्वज्ञ योगियों के कुल में जन्म लेने पर क्या होता है?
हे कुरुनन्दन! वहाँ पर उसको पूर्वजन्मकृत साधन-सामग्री अनायास ही प्राप्त हो जाती है। उससे वह साधन की सिद्धि के लिये फिर तत्परता से यत्न करता है।।43।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
अध्याय 16 129
अध्याय 17 135
अध्याय 18 153

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