पर इसके सिवाय आपे जो और बातें कहीं हैं, उनको किससे कहना चाहिये?
मेरे भक्तों से कहना चाहिये। जो मनुष्य मरेी पराभक्ति के उद्देश्य से इस परम गोपनीय गीता-ग्रन्थ को मेरे भक्तों में कहेगा, वह निःसन्देह मेरे को ही प्राप्त हो जायगा। इतना ही नहीं, उसके समान मेरा अत्यन्त प्रिय कार्य करने वाला भी मनुष्यों में कोई नहीं होगा और इस भूमण्डल पर उसके समान मेरा प्रिय भी कोई नहीं होगा।।68-69।।
अगर कोई ऐसा कार्य न कर सके तो?
जो मेरे और तुम्हारे इस धर्ममय संवाद का अध्ययन भी करेगा, उसके द्वारा मैं ज्ञानयज्ञ से पूजित होऊँगा-ऐसा मेरा मत है।।70।।
कोई अध्ययन न कर सके तो भगवन्?
दोषरहित जो मनुष्य केवल श्रद्धापर्वूक मेरे इस उपदेश को सुन भी लेगा, वह भी सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर पुण्यकारियों के ऊँचे लोकों को प्राप्त हो जायगा।।71।।
हे पार्थ! मैं तुमसे यह पूछता हूँ कि क्या तुमने इस उपदेश को एकाग्रचित्त से सुना? और हे धनन्जय! क्या तुम्हारा अज्ञान से उत्पन्न मोह नष्ट हुआ?।।72।।
अर्जुन बोले- हे अच्युत! मेरा मोह नष्ट हो गया है और स्मृति प्राप्त हो गयी है, पर यह सब हुआ है आपकी कृपा से, उपदेश सुनने से नहीं! मैं सन्देहरहित होकर स्थित हूँ। अब मैं आपकी आज्ञा का पालन करूँगा।।73।।
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