गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
सोलहवाँ अध्याय
18. हृदय का कोमल होना। 19. अकर्तव्य करने में लज्जा होना। 20. चपलता (उतावलापन) न होना। 21. शरीर और वाणी में तेज (प्रभाव) होना। 22. अपने में दण्ड देने की सामर्थ्य होने पर भी अपराधी के अपराध को माफ कर देना। 23. हरेक परिस्थिति में धैर्य रखना। 24. शरीर को शुद्ध रखना। 25. बदला लेने की भावना न होना। 26. अपने में श्रेष्ठता का भाव न होना। हे भरतवंशी अर्जुन! ये सभी दैवी सम्पत्ति को प्राप्त हुए मनुष्य के लक्षण हैं अर्थात् इन लक्षणों वाले को मेरी भक्ति का अधिकारी मानना चाहिये[1]।।1-3।। |