"गीता माधुर्य -रामसुखदास पृ. 40" के अवतरणों में अंतर

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कर्म में अकर्म देखना और अकर्म में कर्म देखना अर्थात् कर्म करते हुए निर्लिप्त रहना और निर्लिप्त रहते हुए कर्म करना-इस रीति से सम्पूर्ण कर्म करनेवाला ही योगी है,  
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कर्म में अकर्म देखना और अकर्म में कर्म देखना अर्थात् कर्म करते हुए निर्लिप्त रहना और निर्लिप्त रहते हुए कर्म करना-इस रीति से सम्पूर्ण कर्म करने वाला ही योगी है,  
 
बुद्धिमान् है।।18।।
 
बुद्धिमान् है।।18।।
  

01:08, 3 सितम्बर 2017 का अवतरण

गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास

चौथा अध्याय

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इस प्रकार किसी ने कर्म किये भी हैं क्या?
हाँ, पहले जो मुमुक्षु हैं, उन्होंने भी इस प्रकार (कर्मों के तत्त्वोको) जानकर धर्म किये हैं इसलिये तू भी पूर्वजोंके द्वारा सदा से किये जाने वाले कर्मो को उन्ही की तरह कर॥15॥

जिस कर्म को मुमुक्षुओं ने किया है और जिस कर्म को करने के लिये आप आज्ञा दे रहे हैं, वह कर्म क्या है?
कर्म क्या है और अकर्म क्या है-इस विषय में बड़े-बड़े विद्वान् भी मोहित हो जाते हैं। अब मैं वही कर्मतत्त्व तुझे बताता हूँ, जिसको जानकर तू संसार बन्धन से मुक्त हो जायगा। वह कर्म तीन प्रकार का है-कर्म अकर्म और विकर्म। इन तीनों के तत्त्व को जरूर जानना चाहिये; क्योंकि कर्मों का तत्त्व बड़ा ही गहन (गहरा) है।।16-17)

कर्म और अकर्म के तत्त्व को जानना क्या है?
कर्म में अकर्म देखना और अकर्म में कर्म देखना अर्थात् कर्म करते हुए निर्लिप्त रहना और निर्लिप्त रहते हुए कर्म करना-इस रीति से सम्पूर्ण कर्म करने वाला ही योगी है, बुद्धिमान् है।।18।।

वह बुद्धिमानी क्या है?
जिसके सम्पूर्ण कर्म संकल्प और कामना से रहित होते हैं तथा जिसके सम्पूर्ण कर्म ज्ञानाग्नि से जल जाते हैं, उसको ज्ञानिजन भी पण्डित (बुद्धिमान्) कहते हैं अर्थात् यही उसकी बुद्धिमानी है।।19।।

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गीता माधुर्य -रामसुखदास
अध्याय पृष्ठ संख्या
अध्याय 1 7
अध्याय 2 26
अध्याय 3 36
अध्याय 4 44
अध्याय 5 50
अध्याय 6 60
अध्याय 7 67
अध्याय 8 73
अध्याय 9 80
अध्याय 10 86
अध्याय 11 96
अध्याय 12 100
अध्याय 13 109
अध्याय 14 114
अध्याय 15 120
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