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'''कर्म और अकर्म के तत्त्व को जानना क्या है?'''<br /> | '''कर्म और अकर्म के तत्त्व को जानना क्या है?'''<br /> | ||
− | कर्म में अकर्म देखना और अकर्म में कर्म देखना अर्थात् कर्म करते हुए निर्लिप्त रहना और निर्लिप्त रहते हुए कर्म करना-इस रीति से सम्पूर्ण कर्म | + | कर्म में अकर्म देखना और अकर्म में कर्म देखना अर्थात् कर्म करते हुए निर्लिप्त रहना और निर्लिप्त रहते हुए कर्म करना-इस रीति से सम्पूर्ण कर्म करने वाला ही योगी है, |
बुद्धिमान् है।।18।। | बुद्धिमान् है।।18।। | ||
01:08, 3 सितम्बर 2017 का अवतरण
गीता माधुर्य -स्वामी रामसुखदास
चौथा अध्याय
इस प्रकार किसी ने कर्म किये भी हैं क्या? जिस कर्म को मुमुक्षुओं ने किया है और जिस कर्म को करने के लिये आप आज्ञा दे रहे हैं, वह कर्म क्या है? कर्म और अकर्म के तत्त्व को जानना क्या है? वह बुद्धिमानी क्या है? |