बंटी कुमार (वार्ता | योगदान) ('<div class="bgkkdiv"> <h4 style="text-align:center"> नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'</h...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
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− | + | बरसाने में आग लगी है - जलते बाबा-मैया! | |
− | + | कण-कण आर्त पुकार रहा है- 'आओ कुँवर कन्हैया!' | |
− | + | सूख गयी है पीली पोखर, खोर साँकरी रोती। | |
− | + | बेल कँटीली भी कुञ्जों में कहीं शेष तो होती! | |
− | + | भटक रहीं हैं भूली-भूली वन-वन गोपकुमारी। | |
− | + | पूछ रहीं पेड़ों-पत्तों से ये भोली सुकुकमारी - | |
− | + | 'जिसकी पद-रज से पावन है, पत्थर मारा भाल, | |
− | + | कहाँ छिपा प्राणों का प्रियतम प्रणतपाल गोपाल? | |
+ | अब भी इनके अन्तर उज्वल है अटूट विश्वास। | ||
+ | इसी भरोसे पर अवशेषित इनके तन की श्वास।। | ||
+ | टूट जायगी जिस क्षण छलनापूर्ण रही भी आश। | ||
+ | भस्म करेगी वहीं उसी पल इनकी ही निःश्वास।। | ||
+ | भटकेगी सम्पूर्ण भुवन में हाय! अधूरी प्यास! | ||
+ | बनी भूतनी, तब भी क्या तुम आ न सकोगे पास?</poem></blockquote> | ||
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10:56, 22 मार्च 2016 का अवतरण
नन्दनन्दन -सुदर्शन सिंह 'चक्र'
90. भद्रसेन
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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