सुदर्शन चक्रावतार श्रीभगवन्निम्बार्काचार्य का भगवत्प्रेम 3

सुदर्शन चक्रावतार श्रीभगवन्निम्बार्काचार्य का भगवत्प्रेम


भविष्यपुराण में भगवान श्रीवेदव्यास ने निर्देश किया है-

सुदर्शनो द्वापरान्ते कृष्णाज्ञप्तो जनिष्यति।
निम्बादित्य इति ख्यातो धर्मग्लानिं हरिष्यति।।

अर्थात आयुधप्रवर चक्रराज सुदर्शन भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा से द्वापरान्त में पृथ्वी पर जन्म धारण करेंगे और निम्बादित्य (निम्बार्क) नाम से प्रख्यात होकर सनातन वैदिक धर्म, वैष्णव-सम्प्रदाय की परम्परा की शिथिलता को दूर कर प्राणिमात्र का कल्याण करेंगे।

भगवान सुदर्शन को पुत्र रूप में प्राप्तकर महर्षि अरुण और माता जयन्ती के हृदय में अद्भुत अनुराग एवं प्रेमलक्षणा भक्ति का आविर्भाव हुआ, जो भगवत्कृपैकलभ्य है अमित प्रतिभासम्पन्न श्रीनियमानन्द जी (निम्बार्काचार्य) अल्पावस्था में ही अनन्त दिव्य गुणों से युक्त होकर शोभायमान रहने लगे। जिनके दर्शन देवताओं को भी दुर्लभ हैं, ऐसे सुदर्शन प्रभु ने कुछ वर्ष परम पावन पितृ-सदन अरुणाश्रम में निवास किया।

एक समय व्रजक्षेत्र से तीर्थयात्रा करते हुए कुछ संत महात्मा अरुणाश्रम पहुँचे। महर्षि ने उनका आतिथ्य किया। सत्संग-वार्ता-प्रसंग में व्रज-वृन्दावन की महिमा बतायी। यह सुनकर श्रीनियमानन्द जी को भगवान श्रीकृष्ण की आज्ञा का स्मरण हो आया। प्रभु के नाम-रूप-लीला-धाम की साक्षात अनुभूति एवं अगाध रूप में भगवत्प्रेम जाग्रत हुआ। श्रीहरि की जन्मभूमि तथा लीला-विहारस्थली मथुरा, गोकुल, वृन्दावन, यमुना-पुलिन आदि के दर्शन की तीव्र उत्कण्ठा बढ़ी। अब एक क्षण का विलम्ब भी असह्य होने लगा। अतः वे माता-पिता सहित व्रजधाम पधारे। वहाँ पर यमुना-पुलिन, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल आदि व्रजधाम के अंगभूत स्थलों का अवलोकन कर अलौकिक प्रेमानन्द परिप्लुत होकर उनके नेत्रों से अविरल अश्रुधारा बहने लगी औश्र श्रीनियमानन्द (निम्बार्काचार्य) पराभक्ति-पयोधि में अवगाहन करने लगे।

जो स्वंय अगाध भगवत्प्रेम में निमग्न होगा वही इतर सांसारिक प्राणी को अधिकारानुसार भगवत्प्रेम प्रदान कर सकता है। जैसे पूर्वकाल में भगवत्पार्षद उद्धव जी के व्रज में पहुँचने पर समस्त व्रजवासियों के हृदय में असीम प्रेमभाव उमड़ पड़ा था, उसी प्रकार सुदर्शनावतार श्रीनियमानन्द के व्रज में पहुँचने पर सब में अपार भगवत्प्रेम प्रकट हुआ। अपने मनोमन्दिर में ध्यानपरायण हो उन्होंने निकुन्जलीलाविहारी श्रीराधा-कृष्ण की दिव्य छवि को धारण कर लिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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