प्रेमदर्शन के आचार्य देवर्षि नारद और उनका भक्तिसूत्र
अहो नारद धन्योऽसि विरक्तानां शिरोमणि:।
सदा श्रीकृष्णदासानामग्रणीर्योगभास्कर:।।
सनकादि मुनिश्वरों ने कहा- नारदजी! आप धन्य हैं। आप विरक्तों के शिरोमणि हैं। श्रीकृष्ण दासों के शाश्वत पथ प्रदर्शक एवं भक्ति योग के भास्कर हैं। देवर्षि नारदजी की महत्ता क्या इयत्ता, उनके भगवत्प्रेम का क्या निरदर्शन, साक्षात् प्रेमस्वरूप प्रेमैकगम्य और परम प्रेमास्पद मनमोहन श्रीकृष्ण जिनकी इस प्रकार निरंतर स्तुति किया करते हैं, जिन्हें प्रणाम किया करते हैं-
अहं हि सर्वदा स्तौमि नारंद देवदर्शनम्।
उत्सगांद्ब्रह्मणो जातो यस्याहंता न विघते।
अंगुप्तश्रुतिचारित्रं नारदं तं नमाम्यहम् ॥
कामाद्वा यदि वा लोभाद वाचं नो नान्यथा वदेत्।
उपास्यं सर्वजंतूनां नारदं तं नमाम्यहम् ॥[1]
मैं दिव्यदृष्टि सम्पन्न श्रीनारदजी की सदा स्तुति करता हूँ। जो ब्रह्माजी की गोद से प्रकट हुए हैं, जिनके मन में अहंकार नहीं है, जिनका शास्त्रज्ञान और चरित्र किसी से छिपा नहीं हैं, उन देवर्षि नारद को मैं नमस्कार करता हूँ। जो कामना अथवा लोभवश झूठी बात मुँह से नहीं निकालते और सभी प्राणी जिनकी उपासना करते हैं, उन नारदजी को मैं नमस्कार करता हूँ।[2]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ स्कंद० माहे० कौमारिकाखण्ड
- ↑ भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 23 |
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