दम तक यार निबाहैंगे
चाहे कुछ हो जाय उम्र भर तुझी को प्यारे चाहैंगे।
सहैंगे सब कुछ, मुहब्बत दम तक यार निबाहैंगे।।
तेरी नजर की तहर फिरेगी कभी न मेरी यार नजर!
अब तो यों ही निभैगी, यों ही जिंदगी होगी बसर।।
लाख उठाओ कौन उठे है, अब न छुटेगा तेरा दर।
जो गुजरैगी, सहैंगे, करैंगे यों ही यार गुजर।।
करोगे जो जो जुल्म न उनको दिलवर कभी उलाहैंगे।
सहैंगे सब कुछ, मुहब्बत दम तक यार निबाहैंगे।।
रुख फेरो, मत मिलो, देखने को भी दूर से तरसाओ।
इधर न देखो, रकीबों के घर में प्यारे जाओ।।
गाली दो, कोसो, झिड़की दो, ,खफा हो घर से निकलवाओ।
कत्ल करो या नीम-बिस्मिल कर प्यारे तड़पाओ।।,
जितना करोगे जुल्म हम उतना उलटा तुम्हें सराहैंगे।
सहैंगे, सब कुछ, मुहब्बत दम तक यार निबाहैंगे।।[1]
भारतेन्दु
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 154 |
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