'कृष्ण-नाम रसखान'
मधुर नाम है भक्त हृदय का।
दायक भक्ति मुक्ति निर्वान,
भज मन कृष्ण-नाम रसखान।।
भाव भरा प्याला प्रभु नाम का,
आनंद भवन ऋषि-मुनि संतों का।
श्रुतियाँ गाती हैं यह गान,
भज मन कृष्ण-नाम रसखान।।
अधम अंध विष कूप पड़े को,
पामर पशु अघ कीच पड़े को।
है तारक मंत्र महा बलवान,
भज मन कृष्ण-नाम रसखान।।
शंकर के मन का मन रंजन,
शेष शारदा करते वंदन।
नारद करत निरंतर गान,
पं. शिवनारायण शर्मा
टीका टिप्पणी और संदर्भ
भगवत्प्रेम अंक |लेखक: राधेश्याम खेमका |प्रकाशक: गीताप्रेस, गोरखपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 194 |
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