पहला अध्याय
कृष्ण की जन्मभूमि
सिंकदर लोधी के पश्चात जहाँगीर के समय तक मथुरा ने पुनः चैन की साँस ली, परन्तु फिर औरंगजेब का आक्रमण हुआ। सन 1669 ई. में औरंगजेब ने मथुरा पर आक्रमण किया और केशवदेव के बड़े भारी मन्दिर को गिरवाकर ही लौटा। इसी अवसर पर मथुरा का नाम इस्लामाबाद या इस्लामपुर रखा गया। इस मन्दिर पर 33 लाख की लागत आई थी। इस मन्दिर की मूर्तियाँ नवाब कुदसिया बेगम की मस्जिद[1] की सीढ़ियों में दबा दी गई ताकि वे प्रत्येक आने-जाने वाले के नीचे आवें और मन्दिर की जगह एक बड़ी भारी मस्जिद तैयार की गई जो अब तक बनी हुई है। इस मन्दिर का नीचे का चबूतरा 286 × 268 फुट था। अन्ततः मुसलमानी अत्याचार का समय बीता और औरगंजेब के मरते ही हिन्दुओं का भाग्य फिर जगा! मथुरा प्रांत पर जाटों ने अधिकार जमाया और वे अंग्रेजी राज्य से लड़ते-भिड़ते इस प्रांत के कुछ-न-कुछ भाग को अपने अधीन बनाये रहे। मथुरा की वर्तमान इमारतें इसी समय की बनी हुई हैं। इन इमारतों की बनावट ऐसी उत्तम है कि ये भारतवर्ष की दर्शनीय इमारतों में गिनी जाती हैं। हम अन्य इमारतों को छोड़कर केवल उन्हीं इमारतों का यहाँ उल्लेख करेंगे जिनका कृष्ण की जीवनी से कुछ संबंध है।
(1) केशवदेव के नवीन मन्दिर के निकट एक जलाशय है जो पोतड़ा कुंड कहा जाता है, जिसमें कृष्ण महाराज के पोतड़े धोए जाते थे।
(2) इसी जलाशय के तट पर एक कोठरी है जो ‘कारागृह’ के नाम से प्रसिद्ध है, जिसमें वसुदेव और देवकी बंदी बनाकर रखे गये थे। यही कोठरी है जहाँ पुराणों के अनुसार कृष्ण ने जन्म लिया।
(3) यमुना के सब घाटों में विश्रामघाट प्रसिद्ध है। इसके विषय में किवदंती है, कि कंस का वध करके कृष्ण और बलराम ने यहाँ विश्राम किया था। इस घाट की इमारतें दर्शनीय हैं।
(4) योग घाट उस स्थान का नाम है जहाँ कहते हैं कि कंस ने नंद और यशोदा की सद्योजात बालिका योगनिद्रा को[2] देवकी की संतान समझकर जमीन पर दे मारा और वहाँ से वह देवी का रूप धारण करके आकाश मार्ग में चली गई।
(5) ‘कुब्जा कुआ’ नामक स्थान पर वृन्दावन से लौटते समय कृष्ण ने एक कुबड़ी की कमर सीधी कर दी थी। इसे एक चमत्कार माना जाता है।
(6) इसी प्रकार रणभूमि वह स्थान है जहाँ कृष्ण व बलराम ने कंस के पहलवानों से युद्ध करके उन्हें पराजित किया था।
|