योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 93

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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बीसवाँ अध्याय
दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन


महाराज विराट के महल में जो सभा हुई उसकी सूचना दुर्योधन को भी पहुँच गई जिस पर उसने विचार किया कि किसी प्रकार कृष्ण को पाण्डवों की सहायता करने से रोकना चाहिए। अतएव वह द्वारिकापुरी की ओर चला। उसने यह सोच लिया था कि यदि मेरी प्रार्थना स्वीकृत हो गई तो यह समझना चाहिए कि मैंने युधिष्ठिर के दो बलवान सहायकों को कम कर दिया। दूसरी ओर यदि मेरी प्रार्थना स्वीकार न की गई तो मुझे कृष्ण से सदा के लिए यह शिकायत बनी रहेगी की यद्यपि मैं ही पहले सहायता का प्रार्थी हुआ था, पर उन्होंने मेरी सहायता नहीं की और मेरे विरुद्ध लड़े। पर संयोग ऐसा बना कि जिस दिन दुर्योधन द्वारिका पहुँचा उसी दिन अर्जुन भी वहाँ पहुँच गया। जिस समय दुर्योधन कृष्ण के महल में पहुँचा उस समय कृष्णचन्द्र सो रहे थे। दुर्योधन उनके सिरहाने एक आसन पर बैठ गया। इतने में अर्जुन भी वहाँ आ पहुँचा और उनके पैताने बैठा। जब कृष्ण जगे तो उठते ही उनकी दृष्टि अर्जुन पर पड़ी। जब दूसरी ओर देखा तो दुर्योधन को भी सिरहाने बैठा पाया। दोनों ओर से जब कुशल-क्षेम पूछी जा चुकी तो महाराज दुर्योधन बोले, "हे कृष्ण, मैं तुमसे पाण्डवों के विरुद्ध युद्ध में सहायता माँगने हेतु आया हूँ। मैं पहले आया हूँ इसलिए पहले मेरी प्रार्थना स्वीकार करनी चाहिए। हम दोनों का आपसे समान संबंध है और हम दोनों ही आपके मित्र हैं। ऐसी दशा में मेरी प्रार्थना पहले की गई और वह आपके द्वारा स्वीकृत होनी चाहिए।"

इस पर कृष्ण बोले, "हे दुर्योधन! तुमने जो कहा वह सत्य है। यद्यपि तुम पहले आये पर मेरी दृष्टि तो पहले अर्जुन पर ही पड़ी। इसके अतिरिक्त अर्जुन तुम से छोटा है। मुझे दोनों की ही सहायता करनी है। एक ओर मेरी सारी सेना है और दूसरी ओर मैं अकेला बिना किसी शस्त्र के हूँ। मैंने दृढ़ संकल्प कर लिया है कि इस लड़ाई में मैं शस्त्र नहीं चलाऊँगा। अब मैं पहले अर्जुन को अवसर देता हूँ कि वह इनमें से एक को चुन ले कि क्या वह मेरी सारी सेना को लेना पसन्द करता है या मुझे। यदि उसने मुझ अकेले की सहायता चाही तो मेरी सारी सेना तुम्हारी सहायता को प्रस्तुत है और यदि उसने मेरी सेना पसन्द की तो मैं अकेला तुम्हारी सेवा करने को उपस्थित हूँ।"

दुर्योधन ने इस बात को पसन्द किया। इसलिए जब अर्जुन से पूछा गया तो उसने उत्तर दिया कि मुझे महाराज कृष्णचन्द्र की ही सहायता चाहिए। मुझे उनकी सेना नहीं चाहिए। अर्जुन के ऐसा कहने पर दुर्योधन भीतर ही भीतर बहुत प्रसन्न हुआ और उसने कृष्णचन्द्र की सारी सेना सहायता के लिए ले जाना स्वीकार कर लिया। बलराम के साथ भी दुर्योधन ने यही चाल चली, पर उन्होंने कहा कि मैं किसी पक्ष को सहायता देना नहीं चाहता। जब दुर्योधन विदा हो चुका तो कृष्ण ने अर्जुन से पूछा, "हे राजपुत्र! तूने मेरी व्यक्तिगत सहायता को मेरी सारी सेना से क्यों श्रेष्ठ समझा?" अर्जुन ने कहा, "आपकी सारी सेना से युद्ध करने के लिए तो मैं अकेला काफी हूँ। संसार में एक बुद्धिमान पुरुष लाख मूर्खों से बढ़कर शक्ति रखता है। आपने इस युद्ध में शंख को हाथ में न लेने की प्रतिज्ञा की है, अतएव मेरी इच्छा है कि आप मेरे रथ के सारथी बनें। यदि मेरे पास आप जैसे सारथी हों तो फिर किसमें सामर्थ्य है जो मेरा सामना कर सके और मुझसे बचकर चला जाये।" कृष्ण जी ने ऐसा करना स्वीकार कर लिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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