योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
चौथा अध्याय
बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम
अतः श्रीकृष्ण के जन्म को गुप्त रखने के लिए किसी ऐसी जाति से सहायता लेना कुछ अधिक युक्ति युक्त जान पड़ता है, क्योंकि वहाँ पर श्रीकृष्ण के छिपाए जाने का बहुत कम संदेह हो सकता था। फिर कंस को भी यह शंका नहीं हो सकती थी कि इन रमते चारवाहों की मंडली में एक राजकुमार यों पाला जा रहा है। हम ऊपर कह आए है कि वसुदेव जी के दूसरे पुत्र बलराम भी गोकुल पहुँचा दिए गए और वह भी गोपियों के पास पालन[2] हेतु रखे गए थे। इस प्रकार दोनों भाई बलराम और कृष्ण को इकट्ठे रहने का अच्छा अवसर मिला। कृष्ण के बचपन के समय की बहुत-सी आश्चर्यजनक घटनाएँ वर्णन की जाती है। उनको परमेश्वर का अवतार मनाने वाले भक्तों ने उनके जीवन की सामान्य घटनाओं का भी ऐसी रँगीली भाषा में वर्णन किया है जो किसी विचारवान के लिए कदापि विश्वसनीय नहीं हो सकतीं। पर इनके भक्तों का तो यही आशय था। सांसारिक सामान्य बातों के लिए अलौकिक शब्द प्रयोग नहीं हो सकते। अतः हर एक महापुरुष बहुत-सी ऐसी बातों का कर्ता वर्णन किया जाता है जो जनसाधारण की दृष्टि में आलौकिक तथा आश्चर्यजनक दीख पड़ती हैं। प्रत्येक महापुरुष के अनुयायी तथा भक्तों ने उसके बचपन की घटनाओं को इस प्रकार अलंकृत कर दिया है कि वे लौकिक से अलौकिक हो जाती है, पर विचारवान पुरुष अपनी विवेचना-शक्ति द्वारा उन अलौकिक व्यवहारों में से भी कुछ-न-कुछ सत्य अवश्य निकाल लेता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ जो यमुना पार स्थित था।
- ↑ अब भी बहुत लोग अपने बच्चों को पहाड़ी दाइयों के हवाले कर आते हैं, और उनके वय प्राप्त होने पर उन्हें अपने घर ले आते हैं।
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