योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
छठा अध्याय
रासलीला का रहस्य
इस प्रवाद में जहाँ तक सत्य का अंश है और जहाँ तक श्रीकृष्ण के जीवन से संबंध है और हमें पिछले अध्याय में दिखा चुके हैं। इससे अधिक, इसके अतिरिक्त जो कुछ कहा जाता, किया जाता, अथवा सुना जाता है वह मिथ्या है। स्मरण रखना चाहिए कि कृष्ण और बलराम 12 वर्ष से अधिक गोप लोगों में नहीं रहे। 12 वर्ष की अवस्था में या उसके लगभग अथवा उससे कुछ पश्चात वे मथुरा चले आए और फिर यावज्जीवन उनको कभी गोकुल एवं वृन्दावन में जाने का अवकाश नहीं मिला, यहाँ तक कि उन्हें मथुरा भी छोड़नी पडी। ऐसी दशा में विचारना चाहिए कि गोपियों से प्रेम या सहवास करने का उन्हें कब या किस आयु में अवसर मिला होगा। अतः वह उन सब अत्याचारों के कर्ता कैसे कहे जा सकते हैं जो उनके नाम से रासलीला या ब्रह्योत्सव में दिखाये जाते है। हिन्दुओं की सामाजिक अधोगति की यदि थाह लेनी हो केवल ब्रह्मोत्सव देख लेना चाहिए। संसार की एक ऐसी धार्मिक जाति जिसकी धर्मोनति किसी समय जगद्विख्यात थी, आज अपने उस धर्म पर यों उपहास करने पर उतारू हो गई हैं। धर्म के नाम पर हजारों पाप करने लगी है और फिर आड़ के लिए ऐसे धार्मिक महान पुरुष को चुन लिया जाता है जिसकी शिक्षा में पवित्र भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई हैं। दुःख की बात है कि हमने अपने महान पुरुषों का कैसे अपमान किया है। कदाचित यह इसी पाप का फल है कि हम इस अधःपतन को पहुँच गये और कोई हमारी रक्षा न कर सका। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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