योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 63

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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छठा अध्याय
रासलीला का रहस्य


हिन्दुओं में कृष्ण के नाम पर एक प्रथा प्रसिद्ध हैं जिसे रासलीला कहते हैं। इस रासलीला के विषय में अनेक मिथ्या बातें जनसाधारण में फैली हुई हैं जिससे कृष्ण के निर्मल नाम और यश पर धब्बा लगता है। यहाँ तक कि लोग उसी आशय से कृष्ण को विषयी और दुराचारी बताते हैं। लाखों हिन्दू तो कृष्ण का नाम केवल रासलीला के संबंध से ही जानते हैं। वे न कृष्ण की उच्च शिक्षा से परिचित हैं और न उनको यह ज्ञात है कि कृष्ण ने अपने जीवनकाल में अपने देश के लिए क्या-क्या कार्य किए और इतिहास उनको किस प्रतिष्ठा की दृष्टि से देखता है। वे केवल उस कृष्ण से परिचित हैं और उसी की पूजा-अर्चना करते हैं जो रासलीला में गोपियों के साथ नाचता और गाता था।

इस प्रवाद में जहाँ तक सत्य का अंश है और जहाँ तक श्रीकृष्ण के जीवन से संबंध है और हमें पिछले अध्याय में दिखा चुके हैं। इससे अधिक, इसके अतिरिक्त जो कुछ कहा जाता, किया जाता, अथवा सुना जाता है वह मिथ्या है।

स्मरण रखना चाहिए कि कृष्ण और बलराम 12 वर्ष से अधिक गोप लोगों में नहीं रहे। 12 वर्ष की अवस्था में या उसके लगभग अथवा उससे कुछ पश्चात वे मथुरा चले आए और फिर यावज्जीवन उनको कभी गोकुल एवं वृन्दावन में जाने का अवकाश नहीं मिला, यहाँ तक कि उन्हें मथुरा भी छोड़नी पडी। ऐसी दशा में विचारना चाहिए कि गोपियों से प्रेम या सहवास करने का उन्हें कब या किस आयु में अवसर मिला होगा।

अतः वह उन सब अत्याचारों के कर्ता कैसे कहे जा सकते हैं जो उनके नाम से रासलीला या ब्रह्योत्सव में दिखाये जाते है। हिन्दुओं की सामाजिक अधोगति की यदि थाह लेनी हो केवल ब्रह्मोत्सव देख लेना चाहिए। संसार की एक ऐसी धार्मिक जाति जिसकी धर्मोनति किसी समय जगद्विख्यात थी, आज अपने उस धर्म पर यों उपहास करने पर उतारू हो गई हैं। धर्म के नाम पर हजारों पाप करने लगी है और फिर आड़ के लिए ऐसे धार्मिक महान पुरुष को चुन लिया जाता है जिसकी शिक्षा में पवित्र भक्ति कूट-कूट कर भरी हुई हैं।

दुःख की बात है कि हमने अपने महान पुरुषों का कैसे अपमान किया है। कदाचित यह इसी पाप का फल है कि हम इस अधःपतन को पहुँच गये और कोई हमारी रक्षा न कर सका।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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