योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 72

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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दसवाँ अध्याय
कृष्ण का विवाह


बरार[1] के राजा भीष्मक की रूपवती पुत्री का नाम रुक्मिणी था। कृष्ण इसके सौन्दर्य का हाल सुनकर उस पर आसक्त हो गए। यह प्रेम दोनों ओर से था। वह भी कृष्णचन्द्र के रूप और गुणों पर मोहित थी। उसकी मनोकामना यही थी कि किसी प्रकार कृष्ण महाराज मेरा पाणिग्रहण करें। पर इसमें एक रुकावट यह थी कि उसका पिता भीष्मक राजा जरासंध के दबाव में था। उसने जरासंध की सम्मति से रुक्मिणी की मँगनी चेदि के राजा शिशुपाल से कर दी, जो जरासंध के साथ विवाह करने आ पहुँचा। जब कृष्ण को खबर मिली कि रुक्मिणी का पिता उसका विवाह करने लगा है तो वे[2] भी बलभद्र और दूसरे साथियों सहित भीष्मक की राजधानी कुण्डिनपुर जा पहुँचे और जब रुक्मिणी मन्दिर से लौटती हुई अपने घर जा रही थी तो उसे अपने रथ में बिठाकर ले चले।[3]

रुक्मिणी के भाई रुक्मी ने जब ये लीला सुनी तो वह बड़ा कुपित हुआ और उनका पीछा किया। जब दोनों की मुठभेड़ हुई, तो रुक्मी परास्त हुआ और निश्चय था कि वह मारा जायेगा तब उसकी बहन ने उसका पक्ष लिया और उसकी जान बचाई। इस तरह रुक्मी को नीचा दिखाकर श्रीकृष्ण रुक्मिणी को लेकर द्वारिका आए और राक्षस[4] रीति से उससे विवाह कर लिया।

इस विवाह से प्रद्युम्न उत्पन्न हुआ जिसका महाभारत में स्थान-स्थान पर वर्णन आया है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. यह विदर्भ देश के नाम से जाना जाता है।
  2. कृष्ण
  3. किसी-किसी पुराण में वर्णन है, कि रुक्मिणी ने स्वयं कृष्ण को संदेश भेजा और मंदिर जाने के बहाने अपने पिता के महल से निकल पड़ी और अपनी इच्छा से कृष्णचन्द्र के साथ चली गई।
  4. स्मृति शास्त्रों में विवाह 8 प्रकार का कहा है जिनमें से एक को राक्षस विवाह कहते हैं। जब कोई क्षत्रिय किसी लड़की को उसकी इच्छा के विरुद्ध लड़कर या चोरी से भगा ले जाता था और उससे विवाह कर लेता था, तो उसे राक्षस विवाह कहते थे। महाभारत में लिखा है कि भीष्म पितामह ने काशी के राजा की दो कन्याओं का इसी तरह हरण करके अपने भाइयों से उनका विवाह किया था। महाराज पृथ्वीराज का संयोगिता को ले जाकर उससे विवाह करना एक ऐतिहासिक घटना है। इसी तरह अर्जुन ने श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ विवाह किया था। पुराणों में कृष्ण की अनेक रानियों का वर्णन आता है, पर इसका पता लगाना कठिन जान पड़ता है कि वास्तव में कितनी थीं। यह तो निश्चित है कि रुक्मिणी श्रीकृष्ण की पटरानी थी। विष्णुपुराण, भागवत और हरिवंश के भिन्न-भिन्न वृत्तान्तों से जान पड़ता है कि कृष्ण की आठ रानियाँ थीं। टिप्पणी: बंकिमचन्द्र ने एकमात्र रुक्मिणी को ही कृष्ण की पत्नी माना है। (सम्पादक)

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योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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