योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 73

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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ग्यारहवाँ अध्याय
श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध


द्वारिकापुरी में जा बसने के पश्चात कृष्ण का जीवन दो भागों में विभाजित होता है। एक वह जो महाभारत के युद्ध में दीख पड़ता है और दूसरा वह जो दूसरी लड़ाइयों के वृत्तान्तों से विदित होता है। द्वारिका में वास करने के बाद श्रीकृष्ण की राजनीति का बड़ा अंश महाभारत में व्यतीत हुआ है। महाभारत में कृष्ण की जो बातें लिखी हैं उनसे उनके जीवन का कुछ-न-कुछ पता तो अवश्य चलता है इसलिए हम पहले उन लड़ाइयों का वृतान्त इतनी अत्युक्तियों से ऐसे भरे हुए हैं कि उनमें से यथार्थ बातों का सार निकालना संभव नहीं।

(1) विष्णु पुराण में[1] उस आक्रमण का वर्णन है जो कृष्ण ने कामरूप[2] की राजधानी प्राग्ज्योतिष पर किया था। यहाँ के राजा का नाम ‘नरक’ लिखा है। इस युद्ध का कारण यह बताया जाता है कि प्राग्ज्योतिष का राजा बड़ा अन्यायी था। डराकर लोगों की स्त्रियों और कन्याओं को अपने घर में डाल देता था और जब उस प्रान्त के लोगों ने इस बात की कृष्ण से आकर शिकायत की तो उन्होंने ‘नरक’ पर चढ़ाई की और उसको मारकर उन सब स्त्रियों को छुटकारा दिया जो उसके महल में कैद थीं और जिनकी गिनती 16 हजार कही गई है।

(2) दूसरी लड़ाई जिसका वर्णन विष्णुपुराण में है कर्नाटक के राजा ‘बाण’ से हुई। इसका कारण यह जान पड़ता है कि कृष्ण के पोते अनिरुद्ध और बाण की पुत्री उषा में परस्पर प्रेम हो गया था। यह प्रेम यहाँ तक बढ़ा कि अनिरुद्ध उषा के चाञ्चल्य से बाण के महलों में जा पहुँचा। वहाँ अपनी प्रिया के संग पकड़ा गया और बन्दी बना लिया गया। जब यह समाचार द्वारिका पहुँचा, तो श्रीकृष्ण, बलराम और प्रद्युम्न उसे छुड़ाने गए। एक भयंकर लड़ाई के बाद बाण पराजित हुआ और कृष्ण अनिरुद्ध को लेकर लौट आये।

(3) तीसरी लड़ाई जिसका वर्णन विष्णुपुराण में आया है, बनारस के राजा पौण्ड्रक से हुई थी। इस राजा ने वासुदेव की उपाधि ग्रहण कर ली थी, पर कृष्ण की उपाधि भी यही थी। ऐसा कहते हैं कि इस पौण्ड्रक ने ईर्ष्यावश श्रीकृष्ण को एक उद्दण्ड संदेश कहला भेजा और इसी से दोनों में युद्ध हुआ जिसमें पौण्ड्रक मारा गया। इस लड़ाई में पहले चढ़ाई किस ओर से हुई इस विषय में मतभेद है। विष्णु पुराण के अनुसार जब कृष्ण को झूठा और छली कहा गया तो पहले उन्होंने ही चढ़ाई की, पर दूसरे लोग यह कहते हैं कि जब कृष्णचन्द्र कैलाश-यात्रा को गए हुए थे तो पौण्ड्रक पहले द्वारिका पर चढ़ आया और इसी से युद्ध आरम्भ हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 29 वाँ अध्याय
  2. आसाम

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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