योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
ग्यारहवाँ अध्याय
श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध
(1) विष्णु पुराण में[1] उस आक्रमण का वर्णन है जो कृष्ण ने कामरूप[2] की राजधानी प्राग्ज्योतिष पर किया था। यहाँ के राजा का नाम ‘नरक’ लिखा है। इस युद्ध का कारण यह बताया जाता है कि प्राग्ज्योतिष का राजा बड़ा अन्यायी था। डराकर लोगों की स्त्रियों और कन्याओं को अपने घर में डाल देता था और जब उस प्रान्त के लोगों ने इस बात की कृष्ण से आकर शिकायत की तो उन्होंने ‘नरक’ पर चढ़ाई की और उसको मारकर उन सब स्त्रियों को छुटकारा दिया जो उसके महल में कैद थीं और जिनकी गिनती 16 हजार कही गई है। (2) दूसरी लड़ाई जिसका वर्णन विष्णुपुराण में है कर्नाटक के राजा ‘बाण’ से हुई। इसका कारण यह जान पड़ता है कि कृष्ण के पोते अनिरुद्ध और बाण की पुत्री उषा में परस्पर प्रेम हो गया था। यह प्रेम यहाँ तक बढ़ा कि अनिरुद्ध उषा के चाञ्चल्य से बाण के महलों में जा पहुँचा। वहाँ अपनी प्रिया के संग पकड़ा गया और बन्दी बना लिया गया। जब यह समाचार द्वारिका पहुँचा, तो श्रीकृष्ण, बलराम और प्रद्युम्न उसे छुड़ाने गए। एक भयंकर लड़ाई के बाद बाण पराजित हुआ और कृष्ण अनिरुद्ध को लेकर लौट आये। (3) तीसरी लड़ाई जिसका वर्णन विष्णुपुराण में आया है, बनारस के राजा पौण्ड्रक से हुई थी। इस राजा ने वासुदेव की उपाधि ग्रहण कर ली थी, पर कृष्ण की उपाधि भी यही थी। ऐसा कहते हैं कि इस पौण्ड्रक ने ईर्ष्यावश श्रीकृष्ण को एक उद्दण्ड संदेश कहला भेजा और इसी से दोनों में युद्ध हुआ जिसमें पौण्ड्रक मारा गया। इस लड़ाई में पहले चढ़ाई किस ओर से हुई इस विषय में मतभेद है। विष्णु पुराण के अनुसार जब कृष्ण को झूठा और छली कहा गया तो पहले उन्होंने ही चढ़ाई की, पर दूसरे लोग यह कहते हैं कि जब कृष्णचन्द्र कैलाश-यात्रा को गए हुए थे तो पौण्ड्रक पहले द्वारिका पर चढ़ आया और इसी से युद्ध आरम्भ हुआ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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