योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 89

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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अठारहवाँ अध्याय
कृष्ण-पाण्डव मिलन


प्रत्येक हिन्दू इस बात को भली प्रकार जानता है कि राजसूय यज्ञ की समाप्ति पर दुर्योधन और उसके पक्ष वालों ने धूर्तता से महाराज युधिष्ठिर को जुआ खेलने पर तत्पर करके उनसे उनका सारा राजपाट छीन लिया। यहाँ तक कि उसने अपनी पत्नी और स्वयं को दाँव पर लगा दिया तथा यह दाँव भी हार गया। इसके पश्चात दुःशासन का द्रौपदी को घसीटकर सभा में लाना, द्रौपदी का विलाप करना और सभा में कोलाहल मचना इत्यादि वे घटनाएँ ऐसी हैं जिनका कृष्ण के जीवन से कोई संबंध नहीं है। यहाँ इतना कह देना पर्याप्त होगा कि अन्त में महाराज धृतराष्ट्र की आज्ञा से पाण्डवगण द्रौपदी सहित बारह वर्ष के लिए देश से निकाले गये और अपना शहर छोड़ वन में विचरने लगे। जब इनके भाई-बन्धु तथा इष्ट मित्रों को इस विपत्ति का समाचार मिला तो वे एक-एक करके इनसे मिलने और सहानुभूति प्रकट करने के लिए आने लगे। महाराज कृष्ण ने जब यह वृत्तान्त सुना तो वे बड़े दुखित हुए और बहुत-से साथियों को लेकर इनसे मिलने को चले।

युधिष्ठिर और अर्जुन इत्यादि की बुरी दशा देखकर वे बड़े क्रुद्ध हुए, पर जब द्रौपदी के सामने गये तो उसने विलाप के द्वारा पृथ्वी-आकाश एक कर दिये। वह रो-रोकर अपने पति और दूसरे सम्बन्धियों को बुरा-भला कहने लगी। उसने अपने अपमान की कथा सुनाकर भीम और अर्जुन की वीरता पर आक्षेप किया और अन्त में यहाँ तक कह दिया कि मेरे लिए तो ये सब संबंधी और मित्र मर ही गये, क्योंकि जब शत्रुओं ने भरी सभा में मेरा अपमान किया तो किसी ने मेरी सहायता नहीं की।

द्रौपदी के इस विलाप को सुनकर कृष्ण ने उसे समक्ष प्रतिज्ञा की, "हे कृष्णा! मैं प्रतिज्ञा करता हूँ कि तेरे शत्रुओं से इस अनीति का बदला लूँगा, तुझे तेरा राजपाट पुनः दिलाकर राज-सिंहासन पर बिठाऊँगा। हे द्रौपदी! तू रो मत। चाहे आकाश टूट पड़े, धरती फट जावे, पर मेरा प्रण मिथ्या न होगा।"

इस प्रकार उसे सम्बोधन कर कृष्णचन्द्र महाराज युधिष्ठिर के पास आये और उनको बहुत कुछ उपदेश किया। वे उनके समक्ष जुआ खेलने की हानि बताते रहे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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