योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 90

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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उन्नीसवाँ अध्याय
महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा


धृतराष्ट्र ने जब युधिष्ठिर को जुए में पराजित होने के कारण बारह वर्ष का देश निकाला दिया तो उसके साथ यह भी बन्धन लगाया था कि तेरहवें वर्ष में पाण्डु पुत्र ऐसी सेवावृत्ति से पेट भरेंगे ताकि दुर्योधन और उसके साथियों को उनका पता न लगे। बारह वर्ष का देश निकाला समाप्त हो जाने पर पाँचों पांडवों ने द्रौपदी और अपने पुत्रों सहित महाराज विराट के यहाँ नौकरी कर ली। उन्होंने ऐसी युक्ति से अपने को छिपाया कि बारह महीने तक विराट को पता नहीं लगा कि उसके किंकरों में पाँच क्षत्रिय कुल भूषण वचनबद्ध होकर उसकी सेवा-टहल कर रहे हैं। उधर दुर्योधन को बहुत खोज करने पर भी उनका कुछ पता न चला। देश निकाले के दिनों में इनके भाई-बन्धु इनसे भेंट करने आते और इनकी सहायता करते थे। कृष्ण और उनके भाई बलराम भी इनके पास कई बार आये और बहुत दिनों तक उनके साथ रहे।

एक बार बलराम ने यह प्रस्ताव किया कि युधिष्ठिर इत्यादि अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार वनवास में रहें पर उनके सम्बन्धी और मित्रगण दुर्योधन पर चढ़ाई करके उसने उनका देश लौटा लें और उसे अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को प्रबन्ध के लिए सौंप दें। कृष्ण ने उत्तर में निवेदन किया कि जो कुछ आप कहते हैं वह सम्भव तो है पर पाण्डवों को यह कब स्वीकार होगा कि वे दूसरे के परिश्रम का फल खुद भोंगे और इस प्रकार अपने क्षत्रिय धर्म पर बट्टा लगायें।

कृष्ण के इस कथन पर युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुआ और कहने लगा कि मुझे राज्य की इतनी इच्छा नहीं जितना धर्म का आग्रह है। यदि मुझे स्वर्ग का राज्य भी मिले तो भी मैं सच्चाई से नहीं हट सकता। थोड़े-से जीवन के लिए मैं अपना प्रण भंग नहीं कर सकता।

युधिष्ठिर और उसके भाइयों ने बड़े कष्ट उठाये और विपत्ति तथा आपदाओं को सहन किया। अपनी प्रिय धर्मपत्नी का अपमान भी अपनी आँखों से देखा। निम्न समझी जाने वाली सेवा करना पसन्द किया, पर अपने वचन का पूरे तौर से निर्वाह किया और तेरह वर्ष तक राजपाट की ओर ध्यान तक न किया।

प्रिय पाठक! लीजिए तेहरवाँ वर्ष समाप्त होता है, और महाभारत युद्ध की नींव पड़ने लगती है। आइये, इस महान युद्ध की कथा सुनिये। इस लड़ाई का प्रथम दृश्य आज महाराज विराट के महलों में दिखाई दे रहा है। भारतवर्ष के विख्यात राजा-महाराजा और विद्वान ब्राह्मण यहाँ एकत्र हैं और सोच-विचार कर रहे हैं कि युधिष्ठिर का राज्य उसे दिलाने के लिए अब क्या कार्यवाही करनी चाहिए।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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