योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
7. पुराणों की प्राचीनता
जातिबंधन के विषय में इतना कह देना पर्याप्त होगा कि स्वयं व्यास महाराज[3] जन्म से शूद्र थे,[4] जिससे सिद्ध होता है कि उस समय[5] जाति का कुछ अधिक विचार न था। यदि यह मान लें[6] तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि श्रीकृष्ण का जन्म उस समय हुआ जब देश में वैदिक धर्म अपनी वास्तविक पवित्रता में था। जाति का विचार जन्म से न था। मनुष्यों को परमात्मा का पद नहीं मिलता था। अवतारों की अभी उत्पत्ति नहीं हुई थी, मूर्तिपूजा का नाम-निशान नहीं था और हिन्दुओं की त्रिमूर्ति अभी स्थापित नहीं हुई थी। वैदिक कर्मकांड की प्रथा प्रचलित थी, बौद्ध धर्म का जन्म नहीं हुआ था, पर अनेक दर्शनों ने लोगों का विश्वास निर्बल कर दिया था और उन्हें धर्म से अश्रद्धा होने लग गई थी। इन बातों को सम्मुख रखकर और कवि वर्णित अलंकारादि का विचार करके यदि हम महाभारत तथा विष्णुपुराण में से कुछ यथार्थ बातें चाहें तो निष्फलता कदापि संभव नहीं। तथापि यह याद रखना चाहिए कि ये बातें बड़ी कठिनाई तथा अनुसन्धान द्वारा मालूम हो सकती हैं, क्योंकि वास्तविक इतिहास का मिलना असंभव है। उपर्युक्त विवेचन के पश्चात अब हम यह दिखलायेंगे कि क्या कृष्ण के जीवन-काल का निर्णय करना वास्तव में असंभव है या इसकी कुछ सम्भावना है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ तसलीस
- ↑ विष्णु, शिव और ब्रह्मा
- ↑ जो महाभारत के रचयिता हैं।
- ↑ व्यास का जन्म महर्षि पराशर और निषाद पुत्री सत्यवती से हुआ।
- ↑ जब व्यास जी ने महाभारत लिखी है।
- ↑ और इसके मानने में संकोच भी न होना चाहिए।
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज