योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय पृ. 19

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय

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प्रस्तावना


ये पुस्तकें ऐसे लोगों को बनानी पड़ी जिन्होंने सरकारी स्कूलों में साधारण उर्दू, फारसी की शिक्षा पाई थी। जब उन्होंने अपने धर्म की छानबीन में या धार्मिक शिक्षा में संस्कृत और हिन्दी की पुस्तकों का अवलोकन किया और उन विषयों पर भाषण या व्याख्यान सुना तो उनकी जुबान पर बहुत-से हिन्दी व संस्कृत के शब्द चढ़ गये, जिसका परिणाम यह हुआ कि वह अपने भाषणों में उन्हीं शब्दों का प्रयोग करने लगे यहाँ तक कि लेख इत्यादि में भी उनके प्रयोग से न रुक सके और उनकी उर्दू एक विशेष प्रकार की उर्दू बन गई जिसमें यदि फारसी व अरबी के शब्द पाये जाते हैं तो साथ ही हिन्दी व संस्कृत के शब्द भी मिलते हैं। इसके अतिरिक्त मैं नहीं समझ सकता कि किसी मनुष्य को इस उर्दू पर क्या आक्षेप हो सकता है?

उर्दू वास्तव में भारतवासियों की भाषा का नाम है, बल्कि किसी-किसी अवसर पर उर्दू और हिन्दुस्तानी शब्द एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं। मुसलमानी राज्य में मुसलमानी साहित्य का जोर था और इसलिए पढ़े-लिखे हिन्दुस्तानियों की भाषा में फारसी और अरबी के शब्दों की अधिकता थी। जब कभी उनको गूढ़ विषयों के प्रकट करने के लिए विशेष शब्दों की आवश्यकता पड़ती थी तो वे मुसलमानी साहित्य से सहायता लेते थे। जब अंग्रेजी राज्य हुआ तो उस हिन्दुस्तानी भाषा में अंग्रेजी के शब्द आने आरम्भ हुए और इसी तरह हिन्दुओं की भाषा में संस्कृत व हिन्दी के शब्दों का प्रचलन बढ़ने लगा। कोई कारण नहीं मालूम होता कि क्यों हिन्दू लोग अपने धार्मिक विचारों को प्रकट करने के लिए मुसलमानी साहित्य की भाषा का प्रयोग करें और हिन्दी व संस्कृत के शब्दों के स्थान में फारसी व अरबी के शब्द तलाश करें। भाषा वह है जो बोली जाए। बस, जब समय के हेर-फेर से हिन्दुओं की बोलचाल में अंग्रेजी, हिन्दी व संस्कृत के शब्दों का चलन हो गया तो कोई कारण मालूम नहीं होता, कि वे लेख भी उसी भाषा में न लिखे जाएँ जिसको वे बोलते हैं। भेद इतना ही है कि अंग्रेजी सरकार फारसी के अक्षरों को हिन्दुस्तानी भाषा में लिखने के लिए प्रयोग करती है और सरकारी स्कूलों में इस हिन्दुस्तानी भाषा की शिक्षा फारसी अक्षरों में दी जाती है। इस कारण लाचारी से उन्हें फारसी अक्षरों का प्रयोग करना पड़ता है। हम प्रामाणिक उर्दू जानने वाले विद्वानों के विचारों के लेखों में हिन्दी के शब्दों का प्रयोग बता सकते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
ग्रन्थकार लाला लाजपतराय 1
प्रस्तावना 17
भूमिका 22
2. श्रीकृष्णचन्द्र का वंश 50
3. श्रीकृष्ण का जन्म 53
4. बाल्यावस्था : गोकुल ग्राम 57
5. गोकुल से वृन्दावन गमन 61
6. रासलीला का रहस्य 63
7. कृष्ण और बलराम का मथुरा आगमन और कंस-वध 67
8. उग्रसेन का राज्यारोहण और कृष्ण की शिक्षा 69
9. मथुरा पर मगध देश के राजा का जरासंध का आक्रमण 71
10. कृष्ण का विवाह 72
11. श्रीकृष्ण के अन्य युद्ध 73
12. द्रौपदी का स्वयंवर और श्रीकृष्ण की पांडुपुत्रों से भेंट 74
13. कृष्ण की बहन सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह 75
14. खांडवप्रस्थ के वन में अर्जुन और श्रीकृष्ण 77
15. राजसूय यज्ञ 79
16. कृष्ण, अर्जुन और भीम का जरासंध की राजधानी में आगमन 83
17. राजसूय यज्ञ का आरम्भ : महाभारत की भूमिका 86
18. कृष्ण-पाण्डव मिलन 89
19. महाराज विराट के यहाँ पाण्डवों के सहायकों की सभा 90
20. दुर्योधन और अर्जुन का द्वारिका-गमन 93
21. संजय का दौत्य कर्म 94
22. कृष्णचन्द्र का दौत्य कर्म 98
23. कृष्ण का हस्तिनापुर आगमन 101
24. विदुर और कृष्ण का वार्तालाप 103
25. कृष्ण के दूतत्व का अन्त 109
26. कृष्ण-कर्ण संवाद 111
27. महाभारत का युद्ध 112
28. भीष्म की पराजय 115
29. महाभारत के युद्ध का दूसरा दृश्य : आचार्य द्रोण का सेनापतित्व 118
30. महाभारत के युद्ध का तीसरा दृश्य : कर्ण और अर्जुन का युद्ध 122
31. अन्तिम दृश्य व समाप्ति 123
32. युधिष्ठिर का राज्याभिषेक 126
33. महाराज श्रीकृष्ण के जीवन का अन्तिम भाग 128
34. क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे? 130
35. कृष्ण महाराज की शिक्षा 136
36. अंतिम पृष्ठ 151

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