योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
प्रस्तावना
इसके अतिरिक्त शायद इस बात की भी आवश्यकता है कि मैं कुछ शब्द अपनी भाषा व लेख के संबंध में कहूँ। मैंने कई बार यह शिकायत सुनी है कि आर्यसामाजिक उर्दू साधारणतः और मेरी उर्दू विशेषतः खिचड़ी होती है। एक मुसलमान मित्र ने तो यह कहा कि हमने उर्दू को संयुक्त बना दिया है, परन्तु असल बात यह है कि आर्यसमाज की स्थिति से पहले उर्दू भाषा में हिन्दू धर्म की पुस्तकें बहुत थोड़ी थीं क्योंकि संस्कृत व हिन्दी जानने वाले हिन्दुओं ने कभी अपनी धार्मिक पुस्तकों को उर्दू में लिखने का उद्योग नहीं किया। यदि किया भी तो केवल उर्दू (फारसी) अक्षरों का प्रयोग किया। आर्यसमाज ने इस आवश्यकता को अनुभव किया कि पंजाब व संयुक्त प्रांत[4] की शिक्षितमंडली के लिए अपनी धर्म पुस्तकों को उर्दू भाषा में तैयार करके उर्दू अक्षरों में प्रकाशित किया जाए। मुसलमानों ने उर्दू भाषा में फारसी व अरबी के शब्दों का प्रयोग किया था, क्योंकि साधारणतः उर्दू के लेखक फारसी व अरबी से भिज्ञ थे और उन लोगों को मुसलमानों के धार्मिक विचारों को प्रकट करने के लिए फारसी व अरबी के शब्दों के प्रयोग की आवश्यकता पड़ती थी, लेकिन जब अंग्रेजी सरकार ने पंजाब और संयुक्त प्रांत में उर्दू अक्षरों को सरकारी अदालतों में प्रचलित किया और शिक्षा का प्रचार भी इन्हीं अक्षरों में प्रचलित हुआ तो इन अक्षरों के जानने वाले हिन्दुओं की आवश्यकता को पूरा करने के लिए यह आवश्यक हुआ कि उन अक्षरों में ऐसी पुस्तकें तैयार की जाएँ, जिनमें हिन्दू धर्म की शिक्षा हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पूरा नाम एफ0 ग्राउस- मथुरा के जिलाधीश थे। हिन्दी - प्रेमी इस विदेशी विद्वान ने रामचरितमानस का हिन्दी अनुवाद किया है। -सम्पादक
- ↑ Memoir
- ↑ अर्थात कृष्ण महाराज की जन्मभूमि
- ↑ वर्तमान उत्तर प्रदेश
संबंधित लेख
अध्याय | अध्याय का नाम | पृष्ठ संख्या |
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज