चौंतीसवां अध्याय
क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे?
क्या कृष्ण के समकालीन लोग उन्हें ईश्वर का अवतार समझते थे?
युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, द्रोण, दुर्योधन, जरासंध और अन्य समकालीन लोगों का कृष्ण से व्यवहार भी यही प्रकट करता है कि उनमें से कोई भी उन्हें परमेश्वर का अवतार नहीं समझता था। ये लोग कृष्ण महाराज को केवल मनुष्य समझकर ही उनसे वैसा बर्ताव करते रहे। यदि युधिष्ठिर कृष्ण को परमेश्वर का अवतार मानते होते तो उनको जरासंध के मुकाबले में भेजने से कदापि संकोच न करते। यद्यपि महाभारत का रचियता स्पष्ट लिखता है कि महाराज युधिष्ठिर ने कृष्ण की प्रार्थना को बड़े संकोच से स्वीकार किया और जरासंध और शिशुपाल आदि कृष्ण को यदि परमेश्वर का अवतार समझते तो वे उनसे कदापि शत्रुता नहीं करते। भीष्म और द्रोण भी कभी उनके सामने लड़ने को नहीं खड़े होते। आश्चर्य तो यह है कि गीता के उपदेश को सुनने के बाद भी अर्जुन पूरे दिल से भीष्म और द्रोण के विरुद्ध नहीं लड़ा। तब श्रीकृष्ण को विराट रूप धारण कर अर्जुन को उभारने की आवश्यकता पड़ी। यदि वर्तमान में उपलब्ध महाभारत को सही मान लिया जाये तो उसके अनुसार अर्जुन ने कृष्ण और भीष्म की इस सलाह को भी स्वीकार नहीं किया कि युधिष्ठिर द्रोण को हतोत्साहित करने के लिए यह प्रसिद्ध करें कि अश्वत्थामा मर गया। परन्तु अर्जुन ने इस प्रकार की धोखेबाजी पर बहुत घृणा प्रकट की थी। तात्पर्य यह कि उन घटनाओं से यही प्रमाणित होता है कि कृष्ण के समकालीन सखा लोग भी उनको परमेश्वर का अवतार नहीं समझते थे।
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