योगिराज श्रीकृष्ण -लाला लाजपतराय
चौंतीसवां अध्याय
क्या कृष्ण परमेश्वर के अवतार थे?
क्या कृष्ण ने स्वयं कभी परमेश्वर के अवतार होने का दावा किया?
श्रीकृष्ण के जीवन की जो घटनाएँ हमने गत पृष्ठों में वर्णन की हैं, उनसे यही प्रमाणित होता है कि कृष्ण ने स्वयं कभी अवतार होने का दावा नहीं किया। भगवद्गीता के अतिरिक्त महाभारत के और किसी हिस्से में ऐसे दावे का प्रमाण भी नहीं मिलता। भगवद्गीता श्रीकृष्ण की बनाई हुई नहीं है इसलिए भगवद्गीता का प्रमाण इस विषय को पूर्ण रूप से पुष्ट भी नहीं कर सकता। परन्तु यदि आप प्रश्न करें कि भगवद्गीता के बनाने वाले ने क्यों ऐसी युक्ति दी जिससे यह परिणाम निकलता कि कृष्ण महाराज अपने आपको अवतार समझते थे? इसका उत्तर यह है कि अपने कथन को विशेष माननीय और प्रामाणिक बनाने के लिए उन्होंने ऐसा किया। भगवद्गीता का वह भाग जिसमें कृष्ण अपने को परमात्मा या परमात्मा का अवतार मानकर उपदेश करते हैं, यह प्रकट करता है कि गीता एक प्राचीन पुस्तक नहीं हैं, क्योंकि वैदिक साहित्य में जिसमें ब्राह्मण, उपनिषद और सूत्रादि भी शामिल हैं, उसमें इस प्रकार के बहुत कम प्रमाण हैं जिनमें उपदेश करने वाले को ऐसा[1] पद दिया गया हो। जहाँ तक हमने छानबीन करके मालूम किया है उपनिषदों में केवल एक ऋषि[2] के वचनों में इस तरह का वर्णन पाया जाता है और वह भी इतना स्पष्ट और बहुतायत से नहीं, जैसा भगवद्गीता में। भगवद्गीता का क्रम प्रकट करता है कि भिन्न-भिन्न समय के पंडितों की रचना से यह पुस्तक भरी है। हम स्वयं गीता की उर्दू टीका प्रकाशित करने की इच्छा रखते हैं[3] इसलिए उस पुस्तक में इस विषय पर अधिक विस्तार से लिखेंगे। अतः यह निश्चित है कि गीता कृष्ण की बनाई हुई नहीं है। गीता के प्रमाण से कोई यह नहीं कह सकता कि कृष्ण स्वयं अवतार होने का दावा करते हैं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अवतार का
- ↑ वामदेव ऋषि जिसने परमात्मा के साक्षात्कार की स्थिति में ऐसे विचार व्यक्त किये थे।
- ↑ यह पुस्तक 'दि मैसेज ऑफ भगवद्गीता' शीर्षक से 1908 में इण्डियन प्रेस, इलाहाबाद में प्रकाशित हुई।
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