विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
तृतीय प्रकरण
शिशुलीला
नलकूबर और मणिग्रीवकृत स्तुतिभा
रजः- सत्त्व तमोगुणमयी प्रकृति (शक्ति) आप ही हैं; (यह ऊपर कहा गया है कि प्रकृति के क्षोभक काल भी आप ही हैं) प्रकृति का कार्य महत भी आप ही हैं; प्रकृति के प्रवर्तक पुरुष भी आप ही हैं, क्योंकि वह भी आपका ही अंश है। सबके साक्षी भी आप ही हैं। अर्थात् देह, इंद्रिय, अंतःकरण के रोग, राग, प्रीति आदि विकारों को जानने वाले आप ही हैं।।31।। (शंका- यदि सब कुछ भगवान हैं तो किसी भी पदार्थ का (यथा घट आदि का) ज्ञान होने पर भगवान का ज्ञान क्यों नहीं होता? यदि होता है तो सब पुरुषों का ब्रह्मज्ञानी हो जाना चाहिए। समाधान-) बुद्धि, इन्द्रिय, अहंकार इत्यादि दृश्य प्रकृति के कार्यों से सकल विश्व के द्रष्टा आपका ग्रहण नहीं हो सकता, क्योंकि जीव के उत्पत्ति से पहले आप (स्वप्रकाशरूप से) वर्तमान हैं। ऐसे आपको देहादि से लिपटा हुआ कौन जीव जानने के लिए समर्थ होगा? अर्थात कोई भी समर्थ नहीं है।।32।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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