विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
षष्ठ प्रकरण
गोपियों से विदाई[1]
गोपी-आक्रन्दन
सभी दिन एक से नहीं होते। गोपियों के प्राणों के भी प्राण भगवान् को कई लीलाएँ करनी थीं। कई पुरुषों और स्त्रियों का उपकार करना था। फिर कंस का भी उद्धार शीघ्र ही करना था। उसका भय बढ़ गया था। उसने अधिक उत्पात करने आरंभ कर दिये थे। कंस ने एक यज्ञ करने का बहाना करके, अक्रूर जी को वृन्दावन में भेजकर, श्रीकृष्ण बलराम सहित सब गोपों की यज्ञ देखने के लिए इस विचार से मथुरा में बुलाया कि वे आवें तो उनका अंत कर दूँ। अक्रूर जी के वृन्दावन में आने का कारण सुनकर गोपियाँ अत्यंत दुःखित हुईं। कितनी ही गोपियों के मुख की कान्ति, गरम-गरम निःश्वासवायु से मलिन हो गयी; कितनी ही ऐसी दुर्बल हो गयीं कि उनके पहने हुए वस्त्र और हाथों के कंकण निकलकर गिरने लगे और चोटी के बंधन खुलकर, उनमें से फूल बिखरने लगे, कितनों की समग्र वृत्तियाँ हटकर भगवान में लग गयीं और शरीर की भी सुधि न रही, जैसे मुक्त पुरुषों को अपने शरीर की सुधि नहीं रहती। कितनी ही अन्य गोपियाँ भगवान के प्रेमयुक्त हास्य का और मनोहर चित्र-विचित्र बातों का स्मरण करके मोह को प्राप्त हुईं। उस समय श्रीकृष्ण की अति सुंदर गति, रासनृत्य, प्रेमावलोकन, शोकनाशक वार्तालाप, गोवर्धनधारण आदि चरित्रों का चिन्तन करने वाली; किन्तु अब ये लीलाएँ- देखने को नहीं मिलेंगी, इस कारण ही गोपांगनाएँ परस्पर मिलकर नेत्रो से अविरल अश्रुधारा बहाती हुई कहने लगीं। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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