विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
दशम प्रकरण
महाभारत के युद्ध का अंत
भीष्मकृत स्तुति[1]
इस आयु की समाप्ति तक नाना प्रकार के उपायों से मैंने अपनी निष्काम बुद्धि यादवों में श्रेष्ठ सर्वव्यापक (श्रीकृष्ण) भगवान में समर्पित की है; क्योंकि ये अपने परमानन्द में मग्न रहते हुए भी किसी समय क्रीड़ा करने के लिए माया को स्वीकार करते हैं, जिस माया से सृष्टि का प्रवाह चलता है (इससे यह सूचित हुआ कि वह माया आपके स्वरूप का तिरोधान नहीं करती है, जिस प्रकार कि जीव को अपने वश में कर लेती हैं)।।32।। (अब श्रीकृष्ण जी के स्वरूप का वर्णन करते हुए उसमें प्रतीति चाहते हैं-) तीनों लोकों में सबसे सुंदर तमाल के समान नीलवर्ण वाले तथा सूर्य के किरणों के समान चमकते हुए पीत वस्त्रधारी घुँघराले बालों से शोभायमान कमलसदृश मुखवाले, अर्जुन के सारथि के ऊपर मेरी निष्काम प्रीति हो।।33।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. स्क. 1 अ. 9; यह स्तुति वीर रसपूर्ण है।
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