भागवत स्तुति संग्रह पृ. 1

भागवत स्तुति संग्रह

उपोद्घात[1]

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जन्माद्यस्य[2] यतोऽन्वयादितरतश्चार्थेष्वभिज्ञः स्वराट्
तेने ब्रह्म हृदा य आदिकवये मुह्यन्ति यत्सूरयः।
तेजोवारिमृदां यथा विनिमयो यत्र त्रिसर्गोऽमृषा
धाम्ना स्वेन सदा निरस्तकुहकं सत्यं परं धीमहि।।
 

श्रीकृष्णावतार द्वापर के अंत में हुआ। उसी समय कौरव तथा पाण्डवों में भीषण महाभारत युद्ध भी हुआ था। इस युद्ध में विजय पाण्डवों की हुई, क्योंकि योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण उनके पक्ष में थे। इस युद्ध में दोनों पक्षों के प्रायः सभी वीर हत हो गये थे, थोड़े से बचे जिनमें पाँच पाण्डव, सात्यकि, युयुत्सु, कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा थे। अर्जुन का पुत्र अभिमन्यु भी वीरगति को प्राप्त हुआ, किंतु उसकी स्त्री उत्तरा गर्भवती थी। इसी से एक बड़ा प्रतापी पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम परीक्षित था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भा. स्क. 1 अ. 15 से 19 तक।
  2. भा. स्क. 1।1।1 के अंतर्गत व्यास भगवान् की स्तुति का अर्थः- अर्थों में गृहीत अन्वय (अन्वयव्यतिरेकन्याय निम्न उदाहरण से स्पष्ट होगा- यदि कोई कहे कि पर्वत में आग लग रही है क्योंकि धुआँ दिखायी देता है। यहाँ एक अनुमान यह होता है कि जहाँ-जहाँ धूम है वहाँ-वहाँ अग्नि है- जैसे चूल्हा में। यह हुआ अन्वय। दूसरा अनुमान यह होता है कि जहाँ अग्नि नहीं वहाँ धूम भी नहीं है जैसे तालाब में। यह हुआ व्यतिरेक। इसी प्रकार यह अनुमान भी हो सकता है कि आकाश आदि कार्यों में ईश्वर का सत् रूप अन्वय है और आकाश पुष्प आदि कार्यों में व्यतिरेक है। मुक्तावली में लिखा है- ‘तत्सत्त्वे तत्सतत्त्वमन्वयः, तदभावे तद्भावों व्यतिरेक’।) और व्यतिरेक से जो जगत् की उत्पत्ति, स्थिति और संहार का कारण है, जिसने आदि कवि ब्रह्मा के लिए मन से (संकल्प से) ही वेदों को प्रकाशित किया, जिसके विषय में विद्वान लोगों को भी मोह होता है, जिसमें तेज, जल और मिट्टी में परस्पर एक की दूसरे में सत्यरूप से प्रतीति होने की भाँति (तेज में जल की प्रतीति होती है जैसे मृगतृष्णा का जल। काँच- (मिट्टी-) में जल की और जल में काँच की प्रतीति भी अनुभव में आती है जैसे दुर्योधन को हुई थी। जैसे ये प्रतीतियाँ असत्य हैं वैसे ही पञ्चमहाभूत इंद्रियाँ और इनके देवताओं की सृष्टि वास्तव में सत्य नहीं है किंतु अहंकार से कल्पित है, और अधिष्ठान- (ब्रह्म-) की सत्यता से सांसारिक पुरुषों को सत्य सी प्रतीत होती है।) असत्य त्रिविध सृष्टि जिसकी सत्यता से सत्य सी भासती है, और जिसके तेज से अज्ञानान्धकार सदा निरस्त है उस सर्वज्ञ स्वतः सिद्धज्ञान, सत्य परब्रह्म परमात्मा का हम ध्यान करते हैं।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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