भागवत स्तुति संग्रह पृ. 2

भागवत स्तुति संग्रह

उपोद्घात

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महाराज युधिष्ठिर ने लड़ाई के पीछे तीन अश्वमेध यज्ञ किये किंतु उनके हृदय का शोक न मिटा। इस बीच विदुर जी और राजा धृतराष्ट्र भी घर छोड़कर वन को चले गये। उन्होंने वानप्रस्थ आश्रम ग्रहण कर लिया। उधर द्वारिका से भी समाचार आया कि यादववंश का गृह-कलह से आपस में लड़-भिड़कर संहार हो गया तथा भगवान श्रीकृष्ण भी अपने लोक को पधार गये। इन सब सूचनाओं से महाराज युधिष्ठिर को ज्ञात हुआ कि कलियुग का आगमन हो गया है। अतः वे परम वैराग्यमुक्त होकर परीक्षित को राज्य देकर सब भाइयों और द्रौपदी के साथ महायात्रा को चले गये। महाराज परीक्षित बड़े धर्मात्मा और शक्तिशाली राजा थे। उन्होंने दिग्विजय भी किया था। एक समय उन्होंने कुरुक्षेत्र यात्रा करते समय एक अद्भुत दृश्य देखा। वहाँ एक वृद्ध वृषभ उनके दृष्टिगोचर हुआ, जिसके तीन पैर टूटे हुए थे, उसके साथ एक गाय थी जो अति दीन और कृश हो रही थी। यह वृद्ध वृषभ तो धर्म था और गाय पृथ्वी। इनके पास एक काले रंग का पुरुष राजचिह्न धारण किये खड़ा था। यह कलि था। [यहाँ यह ध्यान देने योग्य विषय है कि जिस-जिस स्थल में यह कहा है कि पृथ्वी गौरूप विषय है कि जिस-जिस स्थल में यह कहा है कि पृथ्वी गौरूप देखी गयी, वहाँ यह समझना चाहिए कि पृथ्वी का अभिमानी देवता उस रूप में था]

ये दोनों आपस में यह वार्ता कर रहे थे कि अब कलियुग आ गया है, भविष्य में पृथ्वी शूद्रप्राय राजाओं से भोगी जायगी, देवताओं का हविर्भाग नष्ट हो जाएगा, इन्द्र के न बरसने पर प्रजा अन्न के बिना दुःखी रहेगी, ब्राह्मण कुकर्मी होंगे तथा लोभवश सेवानिवृत्ति करेंगे, और सब प्राणी शास्त्र के विधिनिषेध को न मानकर मनमाना आचरण करेंगे, धर्म के चार चरण तप, शौच, दया और सत्य में से पहले तीन नष्ट होने पर केवल सत्य कुछ समय तक बचा रहेगा और अन्त में यह भी नष्ट हो जाएगा।

राजा परीक्षित ने यह संवाद सुनकर उस दंडधारी कलि की ओर देखा और वे धनुष चढ़ाकर उसको मारने के लिए उद्यत हुए। तब व कलि राज चिह्नों को त्याग कर, दंड के समान राजा परीक्षित के चरणों में गिर गया। दीनवत्सल परीक्षित ने उसका वध नहीं किया। कलि ने अंत में यह प्रार्थना की कि आप मेरे रहने के लिए स्थान बतला दीजिए, जहाँ आपकी आज्ञा से मैं निश्चिन्त होकर रह सकूँ; क्योंकि जहाँ-जहाँ मैं जाता हूँ वहीं मेरे वध के लिए हाथ में धनुष-बाण लिए आप मुझे दीखते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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