विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
दूसरा अध्याय
माधुर्यलीला
नवम प्रकरण
ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ[1]
गोपीकृत विनती
भगवान ने गोपियों को पुनः मिलने का वचन दिया था, वह अवसर कई वर्ष पीछे प्राप्त हुआ। एक समय सूर्य ग्रहण का पर्व आया। उस समय श्रीकृष्ण और बलराम सब यादवों सहित अतिपुण्यकारक कुरुक्षेत्र में गये, उसी समय भरतखण्ड के बहुत से लोग वहाँ गये और नन्दादि गोप तथा गोपियाँ भी गयीं। वहाँ परस्पर मिलने से सबके मन में आनन्द उमड़ आया, नेत्रों से आँसू की धारा बहने लगी और शरीर में रोमाञ्च खड़े हो गये। श्रीकृष्ण बलराम ने अपने माता-पिता नन्द-यशोदा को नमस्कार और आलिंगन किया। उस समय प्रेम से कण्ठ भर आने के कारण वे कुछ भी बोलने में समर्थ न हुए। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. स्क. 10 अ. 82।
- ↑ भा. 10।82 के अंतर्गत श्लोक 31 का अर्थ-
तुमसे भगवान् का दर्शन, स्पर्श, अनुगमन, वार्तालाप, सोना, बैठना, भोजन, विवाह और दैहिक संबंध है, इस कारण तुम्हारा जन्म सफल है, क्योंकि प्रवृत्तिमार्ग में रहने वाले तुमलोगो के घर में स्वर्ग और मोक्ष का भी लोभ छुड़ाने वाले श्रीकृष्ण स्वयं रहे हैं।
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