विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
नवम् प्रकरण
देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार
श्रुतदेवकृत स्तुति[1]
हे पुरुषोत्तम! आप हमें आज ही प्राप्त हुए हैं, यह बात नहीं है किन्तु तभी प्राप्त हो गये थे जबकि आप इस ब्रह्माण्ड को अपनी सत्त्वादि शक्तियों से उत्पन्न करके अपनी सत्ता से उसमें प्रविष्ट हुए थे (केवल आपका दर्शन आज प्राप्त हुआ है)।।44।। जैसे सोया हुआ पुरुष आपकी माया द्वारा मोहित हुआ अपने मन की कल्पना से जाग्रत शरीर से भिन्न स्वप्नसंबंधी (देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि) शरीर बनाकर उसमें प्रवेश करके नाना प्रकार का प्रतीत होता है उसी प्रकार आप भी नानारूप से भासते हैं।।45।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. 10।86।
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