विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
पञ्चम प्रकरण
पौगण्डावस्थालीला
पूर्वार्ध
कालियकृत स्तुति[1]
हे नाथ! हम जन्म से ही दूसरों को दुःख देने वाले तामसी और बड़े क्रोधी हैं। प्राणियों के लिए स्वभाव छोड़ना अति कठिन है। इसी (स्वभाव) से प्राणियों को असत् देह आदि में अहन्ता, ममतादि रूप दुराग्रह होता है।।56।। हे विधातः! विविध प्रकार के स्वभाव (घोर शान्त वृत्ति) वाले तथा देहशक्ति, इंद्रियशक्ति, मातृशक्ति, पितृशक्ति और वासनास्वरूप वाले इस विश्व को विविध प्रकार के गुणों से आपने उत्पन्न किया है।।57।। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नागपत्नियों के लिए स्तुति पर भगवान् ने कालिय सर्प को छोड़ दिया और वह दीन होकर स्तुति करने लगा।
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प्रकरण | पाठ का नाम | पृष्ठ संख्या |
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