विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
चौथा अध्याय
द्वारकालीला
दशम प्रकरण
महाभारत के युद्ध का अंत[1]
कुन्ती तथा भीष्म द्वारा की गयी स्तुतियाँ
श्रीकृष्ण जी की फूफी कुन्ती का विवाह इन्द्रप्रस्थ के राजा पाण्डु के साथ हुआ था। महाराज पाण्डु के पाँच पुत्र हुए। पुत्रों की बालावस्था में ही महाराज पाण्डु का देहावसान हो गया था। इसलिए पाण्डु के भाई धृतराष्ट्र राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए और पाण्डु के पुत्रों की रक्षा का भार भी उन्होंने अपने ऊपर लिया। धृतराष्ट्र जन्मान्ध थे। उनके दुर्योधनादि सौ पुत्र थे। दुर्योधन पाण्डु के पुत्रों को कुछ न देकर सारा राज्य स्वयं हड़पना चाहता था, इसीलिए कोई न कोई बहाना निकालकर पाण्डवों को सदा सताया करता था, धृतराष्ट्र भी उसके इस कृत्य से सहमत था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भा. स्क. 1 अध्याय 7 से 9 तक
- ↑ भा. स्क. 1।8।9 के अंतर्गत उत्तर द्वारा कृत स्तुति का अर्थ-
हे महोयोगिन्! हे जगत् पालक! हे देवदेव! मेरी रक्षा करो, रक्षा करो, मेरे भय को दूर करने वाला आपके सिवा दूसरा कोई नहीं है क्योंकि संसार के सब जीव मृत्यु से ग्रस्त होने के कारण रक्षा करने में असमर्थ हैं।।
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