विषय सूची
भागवत स्तुति संग्रह
पहला अध्याय
बाललीला
द्वितीय प्रकरण
श्रीकृष्णजन्म
देवकी कृत स्तुति
(हे प्रभो! वेदों ने आपके रूप का इस प्रकार प्रतिपादन किया कि) आप व्यक्त अर्थात अद्वितीय हैं, आदिकारण हैं, (तो क्या आदिकारण होने से परमाणु हैं? नहीं;) बृहत् (ब्रह्म) हैं, (परंतु ब्रह्म तो प्रधान को भी कहते हैं क्या आप प्रधान (प्रकृति) हैं? नहीं,) चेतन (ज्योति) हैं (तो क्या आप तार्किकों के मतानुसार ज्ञानरूप गुण से युक्त चेतन हैं? नहीं;) केवल सत्तामात्र हैं, (तो क्या आप सामान्य नहीं? नहीं;) जाति, गुण आदि विशेष से रहित हैं। (तब तो आप कारण होने से सक्रिय तो नहीं है? नहीं;) निरीह हैं। तात्पर्य यह कि सन्निधिमात्र से कारण हैं। (जैसे सूर्य की सन्निधि से सब लोग अपना-अपना व्यापार करते हैं किन्तु सूर्य भगवान उन सब व्यापारों के कारण नहीं है।) इस प्रकार की अनिर्वचनीय जो अलौकिक वस्तु है, वही साक्षात् विष्णु हैं। देह, इंद्रिय अंतःकरण रूप संघात के प्रकाशक आप ही हैं। (भाव यह है कि आपको भय की शंका ही नहीं है)।।24।। (यह भी है कि महाप्रलय में आप ही शेष रहते हैं, इस कारण भय कहाँ से हो सकता है?) काल के वेग से ब्रह्मा जी की दो परार्ध आयु का अंत होने पर जब ये चौदह लोक नष्ट होते हैं, अर्थात् पञ्च महाभूतों में लीन हो जाते हैं और महाभूत इंद्रियों सहित अहंकार में लीन हो जाते हैं, अहंकार महत्तत्त्व में, महत्तत्त्व अव्यक्त (प्रधान) में और प्रधान आप में लीन हो जाता है तब ‘यह जगत मुझमें इस प्रकार लीन हुआ है फिर इसको इस प्रकार उत्पन्न करना चाहिए’, इस तरह सबका ज्ञान रखने वाले आप ही शेष रह जाते हैं।।25।।[1] |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ‘शेषसंज्ञः’ पाठ मानने पर ऐसा अर्थ करना चाहिए- अंत में एकमात्र आप ही शेष रह जाते हैं; इसलिए आपका नाम ‘शेष’ है।
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