भागवत स्तुति संग्रह पृ. 32

भागवत स्तुति संग्रह

पहला अध्याय

बाललीला
द्वितीय प्रकरण
श्रीकृष्णजन्म

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देवकी कृत स्तुति

 
रूपं यत्तत्प्राहुरव्यक्तमाद्यं ब्रह्मज्योतिर्निर्गुणं निर्विकारम्।
सत्तामात्रं निर्विशेषं निरीहं स त्वं साक्षाद्विष्णुरध्यात्मदीपः।।24।।

(हे प्रभो! वेदों ने आपके रूप का इस प्रकार प्रतिपादन किया कि) आप व्यक्त अर्थात अद्वितीय हैं, आदिकारण हैं, (तो क्या आदिकारण होने से परमाणु हैं? नहीं;) बृहत् (ब्रह्म) हैं, (परंतु ब्रह्म तो प्रधान को भी कहते हैं क्या आप प्रधान (प्रकृति) हैं? नहीं,) चेतन (ज्योति) हैं (तो क्या आप तार्किकों के मतानुसार ज्ञानरूप गुण से युक्त चेतन हैं? नहीं;) केवल सत्तामात्र हैं, (तो क्या आप सामान्य नहीं? नहीं;) जाति, गुण आदि विशेष से रहित हैं। (तब तो आप कारण होने से सक्रिय तो नहीं है? नहीं;) निरीह हैं। तात्पर्य यह कि सन्निधिमात्र से कारण हैं। (जैसे सूर्य की सन्निधि से सब लोग अपना-अपना व्यापार करते हैं किन्तु सूर्य भगवान उन सब व्यापारों के कारण नहीं है।) इस प्रकार की अनिर्वचनीय जो अलौकिक वस्तु है, वही साक्षात् विष्णु हैं। देह, इंद्रिय अंतःकरण रूप संघात के प्रकाशक आप ही हैं। (भाव यह है कि आपको भय की शंका ही नहीं है)।।24।।

 
नष्टे लोके द्विपरार्धावसाने महाभूतेष्वादिभूतं गतेषु।
व्यक्तेऽव्यक्तं कालवेगेन याते भवानेकः शिष्यतेऽशेषसंज्ञः।।25।।

(यह भी है कि महाप्रलय में आप ही शेष रहते हैं, इस कारण भय कहाँ से हो सकता है?) काल के वेग से ब्रह्मा जी की दो परार्ध आयु का अंत होने पर जब ये चौदह लोक नष्ट होते हैं, अर्थात् पञ्च महाभूतों में लीन हो जाते हैं और महाभूत इंद्रियों सहित अहंकार में लीन हो जाते हैं, अहंकार महत्तत्त्व में, महत्तत्त्व अव्यक्त (प्रधान) में और प्रधान आप में लीन हो जाता है तब ‘यह जगत मुझमें इस प्रकार लीन हुआ है फिर इसको इस प्रकार उत्पन्न करना चाहिए’, इस तरह सबका ज्ञान रखने वाले आप ही शेष रह जाते हैं।।25।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ‘शेषसंज्ञः’ पाठ मानने पर ऐसा अर्थ करना चाहिए- अंत में एकमात्र आप ही शेष रह जाते हैं; इसलिए आपका नाम ‘शेष’ है।

संबंधित लेख

भागवत स्तुति संग्रह
प्रकरण पाठ का नाम पृष्ठ संख्या
उपोद्घात
1. श्री शुकदेव कृत स्तुति 1
पहला अध्याय
प्रथम- बाललीला 2. देवगण कृत स्तुति 13
द्वितीय- श्रीकृष्ण जन्म 3. वसुदेव कृत स्तुति 27
4. देवकी कृत स्तुति 32
तृतीय- शिशु लीला 5. नलकूबर और मणिग्रीव कृत स्तुति 36
चतुर्थ- कुमारावस्था लीला 6. ब्रह्मा कृत स्तुति 46
पंचम- पौगण्डावस्था लीला पूर्वार्ध 7. नाग पत्नियों द्वारा की हुई स्तुति 73
8. कालिय कृत स्तुति 87
षष्ठ- पौगण्डावस्था लीला उत्तरार्ध 9. इंद्र तथा कामधेनु कृत स्तुति 89
दूसरा अध्याय
प्रथम- माधुर्य लीला 10. माधुर्य का प्रादुर्भाव 99
द्वितीय- चीरहरण लीला 11. ब्राह्मणों द्वारा की हुई स्तुति 117
तृतीय- रास का आह्वन 12. गोपी कृत स्तुति 131
चर्तुर्थ- रासलीला पूर्वार्ध 13. गोपियों द्वारा विरहावस्था में की हुई स्तुति 153
पंचम- रासलीला उत्तरार्ध 14. युग्मश्लो की गोपीगीत 176
षष्ठ- गोपियों से विदाई 15. गोपी-आक्रन्दन 195
सप्तम- उद्धव जी द्वारा गोपियों को संदेश 16. गोपी क्रंदन 207
अष्टम- परिशिष्ट 17. उद्धव जी कृत गोपी स्तुति 221
नवम- ब्रह्मज्ञानवती गोपियाँ गोपी कृत विनती 234
तीसरा अध्याय
प्रथम- किशोर लीला 18. नारद कृत स्तुति 238
द्वितीय- अक्रूर जी का वैकुण्ठदर्शन 19. अक्रूर कृत स्तुति 250
तृतीय- मथुरा की लीलाएँ 20. अक्रूर जी स्तुति 271
चतुर्थ- मथुरा छोड़ना 21. मुचुकुन्द कृत स्तुति 288
चौथा अध्याय
प्रथम- द्वारका लीला 22.रुक्मिणी का पत्र 299
द्वितीय- श्रीकृष्ण जी के विवाह 23. भूमि कृत स्तुति 310
तृतीय- रुक्मिणी के साथ भगवान का विनोद 24. रुक्मिणी कृत स्तव 320
चतुर्थ- बाणासुर का अभिमान भंजन 25. ज्वर कृत स्तुति 335
26. रुद्र कृत स्तुति 341
पंचम- पौण्ड्रक और राजा नृग का उद्धार 27. नृग कृत स्तुति 348
षष्ठ- भगवान का गार्हस्थ्य जीवन 28. बन्दी राजाओं का प्रार्थना पत्र 354
सप्तम- जरासन्ध और शिशुपालादि का वध 29. कारागृह मुक्त राजाओं द्वारा की गयी स्तुति 362
अष्टम- सुदामा का चरित्र और वसुदेव जी का यज्ञ 30. ऋषि कृत स्तुति 374
नवम- देवकी के छः मृत पुत्रों का उद्धार 31. बलि कृत स्तुति 384
32. वसुदेव कृत स्तुति 392
33. श्रुतदेव कृत स्तुति 402
दशम- महाभारत के युद्ध का अंत 34. कुन्ती कृत स्तुति 406
35. भीष्म कृत स्तुति 425
एकादश- भगवान का इन्द्रप्रस्थ से जाना 36. इन्द्रप्रस्थ की स्त्रियों द्वारा कृत स्तुति 431

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